पितृपक्ष (Pitru Paksha) का समय सिर्फ कर्मकांड नहीं, बल्कि पितरों के प्रति कृतज्ञता का पर्व है। लेकिन धर्मग्रंथों में साफ कहा गया है कि श्राद्ध में सिर्फ ब्राह्मण भोज ही पर्याप्त नहीं है। पितरों को तृप्त करने के लिए कुछ विशेष पात्रों को भोजन कराना आवश्यक है। आइए जानते हैं, कौन से हैं वे लोग और किस ग्रंथ में इसका स्पष्ट उल्लेख मिलता है।
ब्राह्मण -श्राद्ध का मुख्य आधार
गरुड़ पुराण (पूर्व खंड, अध्याय 104) में कहा गया है।
यथा देवाः हविर्भागं तृप्यन्ति द्विजसत्तमैः। तथा पितृगणाः सर्वे तृप्यन्ति श्राद्धभोजनैः॥
अर्थात जैसे देवता यज्ञ से तृप्त होते हैं, वैसे ही पितर ब्राह्मणों को कराए गए भोजन से संतुष्ट होते हैं।
कौवा -यमराज का दूत
विष्णुधर्मोत्तर पुराण में लिखा है कि कौवे को अन्न अर्पित करना आवश्यक है क्योंकि वही पितृलोक तक भोजन का संचार करता है।
काकः पितृगणस्य दूतो भवति। तस्मात् तस्य तृप्त्या पितरः प्रीणन्ति॥
कुत्ता और गाय -वैश्वदेव का विधान
धर्मसिंधु में उल्लेख है कि श्राद्ध के दिन भोजन का पहला अंश गौ और श्वान (कुत्ते) को देना चाहिए। यह वैश्वदेव कर् का हिस्सा है। माना जाता है कि इससे ऋषि-पितर और यक्ष-रक्षाओं की तृप्ति होती है।
अतिथि और गरीब -श्राद्ध का पुण्य द्वार
मनुस्मृति (अध्याय 3, श्लोक 82-83) में कहा गया है
अतिथिं चान्नदानेन यथाशक्ति प्रपूजयेत।
अतिथेः प्रतिग्रहेण लोकाः प्रीणन्ति पितामहाः॥
अर्थात अतिथि और जरूरतमंद को भोजन कराने से पितर प्रसन्न होते हैं और घर-परिवार पर उनका आशीर्वाद बना रहता है।
भांजा -क्षेत्रीय परंपरा का विस्तार
पद्म पुराण और मिथिला क्षेत्र की लोक परंपरा में यह उल्लेख है कि श्राद्ध में भांजे (बहन के पुत्र) को भोजन कराने से पितरों की तृप्ति होती है। यद्यपि यह सभी ग्रंथों में सार्वभौमिक नियम नहीं है, लेकिन कई क्षेत्रों में इसे अनिवार्य माना गया है।
कन्या (बहन-बेटी) -पितर विशेष प्रसन्न होते हैं
शास्त्र कहते हैं कि यदि घर में कन्या को श्रद्धाभाव से भोजन कराया जाए, तो पितर विशेष प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद देते हैं।
शास्त्र साफ कहते हैं कि श्राद्ध केवल एक कर्मकांड नहीं है। इसे सफल बनाने के लिए ब्राह्मण, कौवा, कुत्ता, गाय, अतिथि, गरीब, अन्नदान से संतुष्ट करना चाहिए। साथ ही क्षेत्रीय परंपराओं में भांजे को भोजन कराना विशेष महत्व रखता है। यही कारण है कि शास्त्रों में कहा गया कि यत्र श्राद्धं तत्र पितरः, यत्र पितरः तत्र देवाः। अर्थात जहां श्राद्ध पूर्णता से होता है, वहां पितरों के साथ देवताओं की भी कृपा मिलती है।