पितृपक्ष (Pitru Paksha) चल रहा है। ऐसे में पितरों को तर्पण किया जाता है। पितृपक्ष (Pitru Paksha) का महीना भाद्रपद पूर्णिमा और अश्विन मास की प्रतिपदा से शुरू होता है और अमावस्या पर खत्म होता है। इन 15 दिनों में अपने घर के पितरों का श्राद्ध किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि पितर इन 15 दिन पृथ्वी पर आते हैं और अपने कुल से तृप्त होकर उन्हें आशीर्वाद देकर जाते हैं। पितरों को तर्पण कुतुप काल में देना चाहिए। आमतौर पर 11 से 1 बजे तक का समय श्रेष्ठ माना जाता है।
श्राद्ध के लिए तांबे का चौड़ा बर्तन, जौ, तिल, चावल, गाय का कच्चा दूध, गंगाजल. सफेद फूल, पानी, कुशा घास, गाय के गोबर से बना कंड़ा, घी, खीर, पूरी, गुड़, तांबे का लोटा होना चाहिए।
श्राद्द करने वाले व्यक्ति को सुबह जल्दी उठना चाहिए और स्नान कर पितरों का ध्यान करना चाहिए। इस दिन उसे पितरों को तर्पण देने और योग्य ब्राह्मण को भोजन कराकर ही कुछ खाना चाहिए। तर्पण देने के लिए सबसे पहले तांबे के बर्तन में जौं, तिल, चावल, गाय का कच्चा दूध, गंगाजल, सफेद फूल और पानी डालें। इसके बाद लौटे में जलभर दक्षिण दिशा में घुटने को जमीन में टिकाकर बैठें और हाथों में कुशा घास रखकर सीधे हाथ के अंगूठे से अर्पित करें। 11 बार तर्पण करें और पितरों को इस दौरान ध्यान कंरे।
इसके बाद अग्यिारी दी जाती है, इसमें गाय के गोबर के उपले को जलाएं, इसमें खीर और पूड़ी की अर्पित करें। और अंगूठे से जल दें। इसके बाद जो भी खाना बनाया है, उसका अंश पांच जगह देवताओं, गाय, कुते, कौवे, चींटी के लिए निकालें और उन्हें डालकर आएं। इसके बाद किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं और उन्हें दक्षिणा दें।