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इन चीजों से करें पितरों का श्राद्ध, पितृ दोष से मिलेगी मुक्ति

Pitru Paksha

Pitru Paksha

सनातन धर्म के मान्यतानुसार अगर किसी मनुष्य का विधिपूर्वक श्राद्ध और तर्पण ना किया जाए तो देवलोक जाने की मुक्ति नहीं मिलती। ऐसा माना जाता है कि अगर पूर्वज नाराज हो जाएं, तो घर परिवार की उन्नति रुक जाती है और हर काम में बाधा आने लगती है। पितृ तर्पण (Pitru Paksha) कर अपने पुरखों की पूजा करने से वह खुश होते हैं और उनकी कृपा समस्त परिवार पर बनी रहती है। छत्तीसगढ़ देव पंचांगानुसार महालयारंभ 18 सितंबर, भाद्रपद शुक्लपक्ष प्रतिपदा दोपहर 12 बजे के बाद प्रतिपद् श्राद्ध तर्पण किया जाना है।

नवमी श्राद्ध और सर्वपितृ अमावस्या

पितृ पक्ष (Pitru Paksha) के दौरान यह दो बेहद महत्वपूर्ण तिथियों में से एक है। मातृ नवमी के दौरान जिन लोगों की मां, दादी, नानी आदि नहीं है, उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है। इस साल नवमी तिथि 25 सितंबर, 2024 को पड़ रही है। वही सर्वपितृ अमावस्या के दिन उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी तिथि के बारे में जानकारी नहीं होती है। इस साल यह 2 अक्टूबर को पड़ रही है।

पिंडदान का महत्व

आचार्य गोविन्द दुबे बताते है कि धार्मिक मान्यता अनुसार पितरों का पिंडदान करने से पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। पुराणों के अनुसार पितृपक्ष (Pitru Paksha) के समय तीन पीढ़ियों के पूर्वज स्वर्ग और पृथ्वी लोक के बीच पितृलोक में रहते हैं। इस समय अगर आप पितरों का श्राद्ध करेंगे तो उन्हें मुक्ति मिल जाति है और वो स्वर्ग लोक चले जाते हैं। इससे घर में पितृ दोष से हो रहे परेशानियां दूर होती है और सुख -शांति का संचार होता है।

15 दिनों के लिए आजाद होते है पितृ

आचार्य गोविन्द दुबे ने बताया कि ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार देवताओं को प्रसन्न करने से पहले मनुष्य को अपने पितरों यानि पूर्वजों को प्रसन्न करना चाहिए। हिन्दू ज्योतिष के अनुसार भी पितृ दोष (Pitru Paksha) को सबसे जटिल कुंडली दोषों में से एक माना जाता है। मान्यता है कि इस दौरान कुछ समय के लिए यमराज पितरों को आजाद कर देते हैं ताकि वह अपने परिजनों से श्राद्ध ग्रहण कर सकें।

इन्हे दिया जाता है महत्व

श्राद्ध में तिल, चावल, जौ आदि को अधिक महत्त्व दिया जाता है। श्राद्ध में तिल और कुशा का सर्वाधिक महत्त्व होता है। श्राद्ध में पितरों को अर्पित किए जाने वाले भोज्य पदार्थ को पिंडी रूप में अर्पित करना चाहिए। श्राद्ध का अधिकार पुत्र, भाई, पौत्र, प्रपौत्र समेत महिलाओं को भी होता है।

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