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PM मोदी देश को समर्पित करेंगे ‘स्टैच्यू ऑफ इक्वैलिटी’, जानें इस प्रतिमा की खासियत

तेलंगाना। PM मोदी शनिवार को बसंत पंचमी के मौके पर हैदराबाद जाएंगे। इस दौरान प्रधानमंत्री वैष्णव संत रामानुजाचार्य स्वामी की प्रतिमा ‘स्टैच्यू ऑफ इक्वैलिटी’ देश को समर्पित करेंगे। कार्यक्रम शाम 5 बजे से शुरू होगा। स्टैच्यू ऑफ इक्वैलिटी अष्टधातु से बनी दुनिया की सबसे बड़ी प्रतिमा है। इसे गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में शामिल किया गया है।

प्रतिमा को करीब 1000 करोड़ रुपए की लागत से बने रामानुजाचार्य मंदिर में स्थापित किया गया है। इससे पहले PM मोदी हैदराबाद के पाटनचेरु में अंतर्राष्ट्रीय फसल अनुसंधान संस्थान (ICRIST) जाएंगे और ICRIST के 50वें सालगिरह समारोह का उद्घाटन करेंगे।

संत रामानुजाचार्य स्वामी के जन्म को 1001 साल पूरे

स्टैच्यू ऑफ इक्वालिटी और रामानुजाचार्य मंदिर 45 एकड़ जमीन पर बना है। मंदिर का मूल भवन करीब 1.5 लाख स्क्वेयर फीट के क्षेत्र में फैला है, जो 58 फीट ऊंचा है। इसी पर स्टैच्यू ऑफ इक्वैलिटी रखी गई है।

स्टैच्यू ऑफ इक्वालिटी और रामानुजाचार्य मंदिर 45 एकड़ जमीन पर बना है। मंदिर का मूल भवन करीब 1.5 लाख स्क्वेयर फीट के क्षेत्र में फैला है, जो 58 फीट ऊंचा है। इसी पर स्टैच्यू ऑफ इक्वैलिटी रखी गई है।

भारत में पहली बार समानता की बात करने वाले वैष्णव संत रामानुजाचार्य स्वामी के जन्म के 1001 साल पूरे हो चुके हैं। हैदराबाद में रामानुजाचार्य का भव्य मंदिर बनाया गया है। मंदिर में रामानुजाचार्य की दो मूर्तियां हैं। पहली मूर्ति अष्टधातु की 216 फीट ऊंची है, जो स्थापित की जा चुकी है, इसे स्टैच्यू ऑफ इक्वैलिटी नाम दिया गया है।

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दूसरी प्रतिमा मंदिर के गर्भगृह में रखी गई है, जो 120 किलो सोने से बनी है। हैदराबाद से करीब 40 किमी दूर रामनगर में बने इस मंदिर में कई खूबियां हैं।

सनातन परंपरा के संत का पहला भव्य मंदिर

सनातन परंपरा के किसी भी संत के लिए अभी तक इतना भव्य मंदिर नहीं बना है। रामानुजाचार्य स्वामी पहले ऐसे संत है, जिनकी इतनी बड़ी प्रतिमा स्थापित की गई है। मंदिर का निर्माण 2014 में शुरू हुआ था। रामानुजाचार्य की बड़ी प्रतिमा चीन में बनी है। जिसकी लागत करीब 400 करोड़ रुपए है। ये अष्टधातु से बनी सबसे बड़ी प्रतिमा है। इसे गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में शामिल किया गया है।

कौन थे संत रामानुजाचार्य

वैष्णव संत रामानुजाचार्य का जन्म सन 1017 में हुआ था। वे विशिष्टाद्वैत वेदांत के प्रवर्तक थे। उनका जन्म तमिलनाड़ु में ही हुआ था और कांची में उन्होंने अलवार यमुनाचार्य जी से दीक्षा ली थी। श्रीरंगम के यतिराज नाम के संन्यासी से उन्होंने संन्यास की दीक्षा ली। पूरे भारत में घूमकर उन्होंने वेदांत और वैष्णव धर्म का प्रचार किया।

उन्होंने कई संस्कृत ग्रंथों की भी रचना की। उसमें से श्रीभाष्यम् और वेदांत संग्रह उनके सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ रहे। 120 वर्ष की आयु में 1137 में उन्होंने देहत्याग किया। रामानुजाचार्य पहले संत थे, जिन्होंने भक्ति, ध्यान और वेदांत को जाति बंधनों से दूर रखने की बात की। धर्म, मोक्ष और जीवन में समानता की पहली बात करने वाले रामानुजाचार्य ही थे।

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