नई दिल्ली। भाजपा के सहयोगी दल शिरोमणि अकाली दल की ओर से कृषि से जुड़े विधेयकों के विरोध में उतर आने के बाद यह साफ है कि कृषि सुधार की पहल एक राजनीतिक मुद्दा बन गई है। इसी साल जून में जब ये विधेयक अध्यादेश के रूप में आए थे, तब शिरोमणि अकाली दल ने न केवल उनका समर्थन किया था, बल्कि पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह की इसके लिए आलोचना भी की थी कि वह गलतबयानी करके किसानों को गुमराह कर रहे हैं, लेकिन इन विधेयकों के संसद में पेश होने के बाद हरसिमरत कौर बादल ने केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया।
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यह इस्तीफा इसीलिए आया, क्योंकि पंजाब में कांग्रेस कृषि विधेयकों को कुछ ज्यादा ही तूल दे रही है। वास्तव में जब शिरोमणि अकाली दल को यह लगा कि कांग्रेस के असर में आए राज्य के किसान उससे नाराज हो सकते हैं तो उसने हरसिमरत कौर को त्यागपत्र देने को कह दिया। यह हास्यास्पद है कि अब इस दल के नेता यह कह रहे हैं कि इन विधेयकों पर उससे राय नहीं ली गई।
इससे ज्यादा हास्यास्पद यह है कि कांग्रेस ने बड़ी सफाई से यह भूलना पसंद किया कि 2019 के लोकसभा चुनाव में उसने अपने घोषणा पत्र में यह लिखा था कि वह कृषि उत्पाद बाजार समिति कानून यानी एपीएमसी एक्ट को खत्म करके कृषि उत्पादों की खरीद-बिक्री को प्रतिबंधों से मुक्त करेगी। महज डेढ़ साल में उसने यू टर्न ले लिया, क्योंकि उसे यह लग रहा है कि वह किसानों को उकसाकर अपना राजनीतिक उल्लू सीधा कर सकती है।
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अच्छा यह होता कि कृषि सुधारों संबंधी अध्यादेश जारी करने के बाद भाजपा किसानों तक अपनी पहुंच बढ़ाती और मंडी समितियों में आढ़तियों और बिचौलियों के वर्चस्व को खत्म करने वाले कानूनों को लेकर उनके संदेह को दूर करती। कम से कम अब तो यह काम किया ही जाना चाहिए, ताकि विपक्षी दलों के दुष्प्रचार को बेनकाब किया जा सके। विपक्षी दल भले ही किसानों के हित की बात कर रहे हों, लेकिन सच यह है कि वे आढ़तियों और बिचौलियों के वर्चस्व को बनाए रखने के पक्ष में खड़े हो गए हैं।