वॉशिंगटन। कोरोना महामारी के प्रकोप बीच लोगों के लिए एक राहतभरी खबर आ रही है। अमेरिकी दवा निर्माता कंपनी मॉडर्ना कोरोना वायरस वैक्सीन के लास्ट स्टेज ट्रायल की तैयारी कर रही है। कंपनी के अनुसार, 27 जुलाई को इस ट्रायल को शुरू किया जा सकता है। मॉडर्ना ने कहा कि वह अमेरिका के 87 स्थानों पर इस वैक्सीन के ट्रायल का आयोजन करेगी। परीक्षण के लिए 30 हजार लोगों को शामिल किया जाएगा। परीक्षण में सामिल लोगों को पहले दिन संभावित वैक्सीन के 100 माइक्रोग्राम की खुराक दी जाएगी, उसके 29 दिन बाद दूसरी खुराक दी जाएगी। माना जा रहा है कि तीसरे चरण के ट्रायल के सफल होने के बाद कंपनी कोई बड़ी घोषणा कर सकती है।
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अमेरिकी कंपनी मॉडर्ना की कोरोना वायरस वैक्सीन अपने पहले ट्रायल में पूरी तरह से सफल रही। न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसीन में छपे अध्ययन में कहा गया है कि 45 स्वस्थ लोगों पर इस वैक्सीन के पहले टेस्ट के परिणाम बहुत अच्छे रहे हैं। इस वैक्सीन ने प्रत्येक व्यक्ति के अंदर कोरोना से जंग के लिए एंटीबॉडी विकसित किया।
मॉडर्ना की वैक्सीन की एक और अच्छी बात यह रही कि इसका इतना कोई खास साइड इफेक्ट नहीं रहा जिसकी वजह से वैक्सीन के ट्रायल को रोक दिया जाए। शुरुआती टेस्टिंग में अगर एंटीबॉडी बनती है तो इसे बड़ी सफलता माना जाता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि यह वैक्सीन कोरोना वायरस के खात्मे में प्रभावी होगी। इस पहले टेस्ट में 45 ऐसे लोगों को शामिल किया गया था जो स्वस्थ थे और उनकी उम्र 18 से 55 साल के बीच थी।
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इस संभावित वैक्सीन का ट्रायल राजधानी वॉशिंगटन डीसी के अलावा देश के 30 अन्य राज्यों में किया जाएगा। वैक्सीन के ट्रायल को लेकर चुने गए आधे से अधिक लोकेशन कोरोना वायरस से सबसे ज्यादा प्रभावित टेक्सास, कैलिफोर्निया, फ्लोरिडा, जॉर्जिया, एरिज़ोना और उत्तरी और दक्षिण कैरोलिना में स्थित हैं।
अमेरिकी सरकार ने मॉडर्ना को वैक्सीन विकसित करने के लिए आधा मिलियन डॉलर की आर्थिक सहायता भी दी है। इस वैक्सीन के पहले दो चरण के ट्रायल्स को लेकर कंपनी ने सफल होने का दावा किया था। हालांकि, इससे जुड़े डेटा को कंपनी ने शेयर नहीं किया है।
तीन गुना बढ़े कंपनी के शेयर
रिपोर्ट्स के अनुसार, मॉडर्ना कंपनी के शेयर फरवरी के बाद से तीन गुना से ज्यादा बढ़ गए हैं। अमेरिकी शेयर मॉर्केट नैस्डैक में लिस्टेड इस कंपनी के शेयर का मूल्य मंगलवार को 74.57 डॉलर है। बताया जा रहा है कि कोरोना वायरस वैक्सीन के सफल परीक्षण के बाद अमेरिकी दवा कंपनियों के शेयर्स में ये तेजी देखी जा रही है।
बता दें कि दुनिया में वर्तमान समय में कोरोना वायरस वैक्सीन को लेकर 120 से ज्यादा प्रतिभागी काम कर रहे हैं। जबकि, इनमें से 13 वैक्सीन क्लिनिकल ट्रायल के फेज में पहुंच चुकी हैं। इनमें से सबसे ज्यादा चीन की वैक्सीन ह्यूमन ट्रायल में है। बता दें कि चीन में 5, ब्रिटेन में 2, अमेरिका में 3, रूस ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी में 1-1 वैक्सीन क्लिनिकल ट्रायल फेज में हैं।
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कोरोना वैक्सीन तैयार करने वाले देश और उनकी कंपनियां इसके उत्पादन के लिए भारत की ओर रुख कर रही हैं। आइसीएमआर के महानिदेशक डॉक्टर बलराम भार्गव के अनुसार पूरी दुनिया में कुल वैक्सीन का 60 फीसद सप्लाई करने वाले भारत की कोरोना की वैक्सीन सप्लाई चैन में केंद्रीय भूमिका सुनिश्चित है। इसके साथ ही उन्होंने दो स्वदेशी वैक्सीन के मानव ट्रायल शुरू होने की जानकारी देते हुए कहा कि इनके रास्ते में प्रशासनिक स्तर पर एक दिन भी देरी नहीं आने दी जाएगी। कोरोना संक्रमण को रोकने में वैक्सीन को अंतिम विकल्प के रूप में संकेत करते हुए डॉक्टर बलराम भार्गव ने कहा कि दुनिया के सभी देश वैक्सीन को तैयार करने की प्रक्रिया को फास्ट ट्रैक करने में जुटे हैं और इसमें सफलता मिल रही है। उन्होंने कहा कि रूस तो वैक्सीन का ट्रायल पूरा भी कर चुका है। इसी तरह चीन, अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य देश अपने-अपने यहां जल्द से जल्द वैक्सीन तैयार करने में जुटे हैं।
अपने देश में भी भारत बायोटेक और जायडस कैडिला की वैक्सीन का मानव ट्रायल शुरू हो गया है। डॉक्टर बलराम भार्गव ने कहा कि स्वदेशी वैक्सीन को फास्टट्रैक कर जल्द-से-जल्द आम लोगों के लिए उपलब्ध कराने की हमारी नैतिक जिम्मेदारी है। उन्होंने भरोसा दिलाया कि स्वदेशी वैक्सीन को तैयार करने में प्रशासनिक कारण से एक दिन की भी देरी नहीं होने दी जाएगी। अपने दो जुलाई की चिट्ठी में 15 अगस्त तक आम जनता के लिए स्वदेशी वैक्सीन उपलब्ध कराने की बात करने वाले डॉक्टर भार्गव ने अब इसके लिए किसी समय सीमा नहीं बताई। लेकिन उन्होंने भरोसा दिलाया कि दुनिया में बनने वाली कोरोना की वैक्सीन भारत में भी लोगों के लिए उपलब्ध होगी।
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उन्होंने कहा कि दुनिया की 60 फीसद वैक्सीन भारत में बनती है और यही कारण है कि आज ‘दुनिया के सभी वैक्सीन बनाने वाले भारत के संपर्क में है।’ उन्होंने कहा कि दुनिया में कहीं भी, कोई भी वैक्सीन बने, उत्पादन के लिए उसे भारत पर निर्भर होना पड़ेगा। ध्यान देने की बात है कि आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ने भी अपनी आने वाली वैक्सीन के उत्पादन के लिए भारतीय कंपनी सेरम इंस्टीट्यूट से समझौता किया है।