लखनऊ जिला जेल अधीक्षक की लापरवाही से आदर्श कारागार से फरार कैदी का अभी तक कोई सुराग नही लगा है। घटना को हुए करीब चार महीने से अधिक का समय बीत चुका है।
दिलचस्प बात यह है कि दिनदहाड़े हुई इस घटना में लखनऊ परिक्षेत्र के डीआईजी को कोई दोषी ही नही मिला। ऐसा पहली बार नही हुआ उससे पहले भी डीआईजी ने जिन घटनाओं को जांच की उसमें भी उन्हें कोई अधिकारी दोषी नही मिला। यह मामला विभागीय अफसरों में चर्चा का विषय बना है। चर्चा है कि डीआईजी को जांच में अधिकारी दोषी ही नहीं मिलते है।
मिली जानकारी के मुताबिक बीती 23 दिसंबर 2020 को आदर्श कारागार से सुरक्षा कर्मियों को चकमा देकर एक कैदी फरार हो गया। सूत्रों का कहना है कि आदर्श कारागार का प्रभार देख रहे जिला जेल अधीक्षक ने जेल की पुताई करने के लिए कैदी कमान मंगाई।
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एमएसके को धनराशि बचाने के लिए मौखिक आदेश से मंगाई गई दस कैदियों की इस कमान सेवक कैदी मौका पाकर फरार हो गया। दिनदहाड़े हुई इस घटना से जेल महकमे में हड़कम मच गया। फरारी को हुए चार महीने से अधिक का समय बीत गया लेकिन इसका अभी तक कोई सुराग नही मिला। इस फरारी की गोसाईगंज थाने में एफआईआर दर्ज कराई गई।
एक सुरक्षाकर्मी के भरोसे दस खूंखार कैदियों की कमान से फरारी की घटना की जांच लखनऊ परिक्षेत्र के डीआईजी जेल संजीव त्रिपाठी को सौंपी गई। डीआईजी ने करीब एक हफ़्ते तक घटना को जांच की। मजे की बात यह है कि इस जांच में डीआईजी जेल को को दोषी ही नही मिला। जबकि हकोकत सामने नज़र आ रही है।
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ऐसा पहली बार नही हुआ डीआईजी जेल को रायबरेली जेल से दो बंदियो की फरारी में भी कोई अधिकारी दोषी नही मिला था। जबकि इस घटना में रात्रि गस्त की डिप्टी जेलर डयूटी पर ही नही आई थी। सूत्रों की माने तो डीआईजी जेल बड़े बड़े मामलों को ले देकर निपटा ने में माहिर है। इन घटनाओं की जांच ने डीआईजी जेल की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए है। उधर इस संबंध में जब डीआईजी जेल संजीव त्रिपाठी व अधीक्षक आशीष तिवारी से बात करने का प्रयास किया गया तो दोनों ही अधिकारियों ने फ़ोन नही उठाया।