इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ ने आये दिन दायर की जा रही जनहित याचिकाओं पर एक अहम फैसला दिया है। अदालत ने कहा कि एक दो लोगो व समूहों के बीच उनके निजी विवाद सम्बंधी किसी मुद्दे को जनहित याचिका के रूप में ग्रहण नहीं किया जा सकता है और न इस प्रकार के मुद्दों पर जनहित याचिका दायर की जा सकती ।
हाईकोर्ट ने इस विधि व्यवस्था के साथ प्रदेश में एम्बुलेंस आपूर्ति के टेंडर विवाद को लेकर दायर जनहित याचिका को खारिज कर दिया।
यह आदेश न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायामूर्ति जसप्रीत सिंह की खंडपीठ ने अधिवक्ता गुरमीत सिंह सोनी की जनहित याचिका पर दिया। याची का कहना था कि कोरोना काल में सहूलियतें बढाने को एम्बुलेंस सेवाओं की आपूर्ति के लिए टेंडर निकाले गए। इसके लिए सम्बंधित प्राधिकारी ने एक पक्षकार की तकनीकी बिड मंजूर कर ली जबकि इसी पक्षकार को मध्य प्रदेश की नेशनल हेल्थ मिशन योजना में एम्बुलेंस आपूर्ति के लिए में ब्लैक लिस्टेड किया गया था। ऐसे में टेंडर सम्बंधी उसकी बोली को मंजूर नहीं किया जाना चाहिए था। इसकी अनदेखी करते हुए सरकारी अफसरों ने बीती 21 मई को पक्षकार की बोली मंजूर कर ली।
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याची ने टेंडर सम्बंधी 26 मई की समरी रिपोर्ट को रद्द करने और पक्षकार को टेंडर का ‘लेटर ऑफ इंटेंट’ जारी न किये जाने की गुजारिश की थी क्योंकि यह मामला कोरोना के दौरान स्वस्थ्य सेवाओं से जुड़ा था, दूसरी ओर याचिका का कड़ा विरोध करते हुए सरकारी वकील का कहना था कि यह याचिका एक असफल बोली लगाने वाले की तरफ से टेंडर प्रक्रिया में अड़ंगा लगाने की कोशिश वाली लगती है, जिसे जनहित याचिका के रूप में बनाकर दायर किया गया। जो जनहित याचिका के पवित्र उद्देश्य को दूषित करने वाली होने की वजह से खारिज किये जाने लायक है।
अदालत ने जनहित याचिका सम्बंधी कई नजीरों का फैसले में हवाला देकर कहा कि दो विरोधी समूहों के बीच निजी विवाद सम्बंधी किसी मुद्दे को जनहित याचिका के रूप में ग्रहण नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने इस विधि व्यवस्था के साथ याचिका खारिज कर दी।