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राहुल अध्यक्ष बने या कोई और, कांग्रेस का बांटना लगभग तय 

Desk by Desk
19/12/2020
in Main Slider, ख़ास खबर, नई दिल्ली, राजनीति, राष्ट्रीय
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राहुल अध्यक्ष बने या कोई और Rahul becomes president or someone else

राहुल अध्यक्ष बने या कोई और

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सियाराम पांडेय “शांत”

देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस बिखराव के कगार पर है। वैसे इस पार्टी में फूट का सिलसिला तो आजादी के पहले ही हो चुका था और आजादी के बाद यह पार्टी कितनी बार टूटी, यह भी किसी से छिपा नहीं है। जिस राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की आलोचना करते कांग्रेस थकती नहीं है, उसके संस्थापक भी कभी कांग्रेस के ही अंग हुआ करते थे। 1925 में संघ की स्थापना से पूर्व तक तो वे कांग्रेसी ही थे। ‘जोड़ा बैल’ चुनाव चिह्न से पंजे तक का सफर करने वाली कांग्रेस ने कई विघटन देखे हैं। देश की 70 पार्टियां कांग्रेस से निकलकर ही बनीं और उनमें से अधिकांश कालकवलित भी हुईं लेकिन अभी भी  टीएमसी, एनसीपी, पीडीपी, विदर्भ जनता कांग्रेस, वाईएसआर कांग्रेस पार्टी, ऑल इंडिया एनआर कांग्रेस, तमिल मनीला कांग्रेस, छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस, मणिपुर पीपल्स पार्टी राजनीतिक अस्तित्व में हैं और कांग्रेस को अपने-अपने राज्यों में निरंतर चुनौती दे रही हैं।

जिस कांग्रेस पर परिवाद के आरोप लगते रहे हैं, बहुत कम लोगों को याद होगा कि उसी कांग्रेस ने 12 नवंबर, 1969 को इंदिरा गांधी को पार्टी से बर्खास्त कर दिया था। तब इंदिरा गांधी ने एक अलग पार्टी कांग्रेस रिक्वीजीशन की स्थापना की थी। इस नई पार्टी का चुनाव चिह्न गाय-बछड़ा था। जबकि मूल चुनाव चिह्न ‘जोड़ा बैल’ कांग्रेस (ऑर्गनाइजेशन) के पास रहा। लोग तब गाय-बछड़े का मतलब इंदिरा और उनके पुत्र संजय गांधी से निकाला करते थे और आज कांग्रेस का मतलब सोनिया गांधी और राहुल गांधी से निकाला जा रहा है। कांग्रेस के कुछ बड़े नेताओं ने सोनिया गांधी को पिछले महीने जो पत्र लिखे थे, उसका निहितार्थ भी कमोवेश यही है। उस समय तो वरिष्ठ कांग्रेसियों की सलाह को न केवल दरकिनार किया गया बल्कि उनसे दूरी भी बनाई गई थी लेकिन अब जब सोनिया गांधी को यह लग रहा है कि पानी सिर से ऊपर बहने लगा है और ध्यान न दिया गया तो पार्टी फिर टूट सकती है तो उन्हें पार्टी की अहम बैठक बुलाने की जरूरत महसूस हुई है। उम्मीद है कि इस बैठक में राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा के साथ ही पार्टी का वह असंतुष्ट धड़ा भी पूरा न सही, अल्प संख्या में ही शामिल जरूर होगा जिसमें सोनिया गांधी को पत्र लिखकर सांगठनिक बदलाव का अनुरोध किया था। सोनिया गांधी द्वारा बुलाई गई बैठक के साथ ही कयासों का बाजार गर्म हो गया है। कुछ लोगों का कहना है कि यह बैठक रूठे हुए वरिष्ठों को मनाने के लिए आहूत की गई है लेकिन कांग्रेस ने इस बात से इनकार किया है।

‘देर आयद, दुरुस्त आयद।’ 23 नेताओं की चिठ्ठी का देर से ही सही, कुछ असर तो हुआ। यह बैठक इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें कांग्रेस अध्यक्ष का चयन और किसान आंदोलन पर  कांग्रेस की भावी रणनीति पर चर्चा  होनी है। पार्टी के थिंक टैंक अहमद पटेल के निधन के बाद खाली हुई जगह को भरना और वहां उपयुक्त व्यक्तित्व का चयन भी कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती है। वैसे भी मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ जिस तरह से इस बैठक में आयोजन में जुटे हैं, उससे इतना तो लगता ही है कि कांग्रेस अहमद पटेल की जगह कमलनाथ को मौका दे सकती है। कमलनाथ ने अभी तक असंतुष्टों से दूरी बना रखी थी और अचानक अगर उन्होंने पैंतरा बदला है कि इसके पीछे उन्हें अपना लाभ जरूर नजर आ रहा होगा। पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु के चुनाव भी वर्ष 2021 में होने हैं और जिस तरह कांग्रेस सत्ता की राजनीति से पैदल होती जा रही है, उसमें इस बैठक की अहमियत वैसे ही बढ़ जाती है। कांग्रेस इतने महत्वपूर्ण बिंदु पर जाहिर है कि चर्चा भी करेगी और भविष्य की रणनीति भी बनाएगी।

गौरतलब है के एक माह पहले गुलाम नबी आजाद ने  कांग्रेस के कामकाज के तौर-तरीके पर सवाल उठाए थे। उन्होंने कहा था कि 5 स्टार  संस्कृति से चुनाव नहीं जीते जा सकते। पिछले 72 साल में कांग्रेस सबसे निचले पायदान पर है। कांग्रेस के पास पिछले दो कार्यकाल के दौरान लोकसभा में विपक्ष के नेता का पद भी नहीं है। बिहार चुनाव में हार के बाद कपिल सिब्बल ने तो यहां तक कह दिया था कि कांग्रेस ने शायद हर चुनाव में हार को ही नियति मान लिया है। इसे पार्टी के शीर्ष नेतृत्व मतलब सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर निशाने के तौर पर लिया गया था। यह और बात है कि कुछ कांग्रेसियों ने कपिल सिब्बल और गुलाम नबी आजाद पर भाजपा के साथ मिलकर कांग्रेस को कमजोर करने के भी आरोप लगाए थे। हालांकि गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस वर्किंग कमेटी समेत, राज्यों के प्रमुख, जिला अध्यक्ष, ब्लॉक अध्यक्ष के पदों पर भी चुनाव करवाने पर जोर दिया था। साथ ही यह भी कहा था कि जो लोग चुनाव करवाने का विरोध कर रहे हैं, उन्हें अपने पद खोने का डर है। जो वफादार होने का दावा कर रहे हैं, वे हकीकत में ओछी राजनीति कर रहे हैं। इससे पार्टी और देश को नुकसान होगा। चिट्ठी लिखने वाले नेताओं पर राहुल गांधी ने भी  भाजपा से मिलीभगत के आरोप लगा दिए थे। इस पर आजाद ने कहा था कि आरोप साबित हुए तो पार्टी छोड़ देंगे। हालांकि, बाद में उन्होंने सफाई दी कि राहुल गांधी ने मिलीभगत जैसी कोई बात नहीं कही थी।

कपिल सिब्बल के बयान पर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी आपत्ति जाहिर की थी और कांग्रेस को देश की मनोभावना का प्रतीक  तथा सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ खड़ी  अकेली पार्टी बताया था। सोनिया और राहुल के नेतृत्व पर हर कांग्रेस कार्यकर्ता  के अटूट विश्वास की बात की थी। हार-जीत लोकतंत्र का हिस्सा बताते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने लिखा था कि छत्तीसगढ़ में  कांग्रेस 15 साल बाद भी लौटी है और ठीक तरह  वह पूरे देश में लौट सकती है।  हरियाणा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कुलदीप बिश्नोई  ने कहा था कि गुलाम नबी आजाद विरोधियों से मिले हुए हैं और उनके सहयोग से वो कांग्रेस पार्टी को तोड़ना चाहते हैं। यह और बात है कि कुलदीप बिश्नोई ने 2007 में कांग्रेस को तोड़कर हरियाणा जनहित कांग्रेस बनाई थी। ऐसे और भी कई बड़े नाम हैं जिन्होंने कभी कांग्रेस को तोड़ने का काम किया और इस समय कांग्रेस में हैं। कांग्रेस से टूटकर देश में 7व पार्टियां बनीं, यह और बात है कि आज सभी 70 पार्टियां आज जिंदा नहीं हैं।  इंदिरा गांधी द्वारा लागू किए गए आपातकाल के बाद  1977 के चुनाव में कांग्रेस (आर) की जबर्दस्त हार हुई। पार्टी नेताओं ने इंदिरा गांधी की तानाशाही नीतियों को इसका जिम्मेदार बताया।  इस मुखर विरोध से नाराज इंदिरा गांधी ने फिर नई पार्टी बना ली जिसका नाम रखा कांग्रेस (आई) रखा। इसमें आई का मतलब इंदिरा है। इस बार इंदिरा ने पंजे के निशान को अपने चुनाव चिह्न के रूप में चुना। 1981 में इंदिरा गांधी  की  कांग्रेस (आई) का नाम बदलकर इंडियन नेशनल कांग्रेस हो गया।

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इतिहास गवाह है कि आजादी से पहले  भी कांग्रेस पार्टी दो बार टूटी थी। 1923 में सीआर दास और मोतीलाल नेहरू ने स्वराज पार्टी का गठन किया था तो 1939 में सुभाष चंद्र बोस ने सार्दुल सिंह और शील भद्र के साथ मिलकर अखिल भारतीय फॉरवर्ड ब्लॉक का निर्माण किया। फॉरवर्ड ब्लॉक आज भी अस्तित्व में है। आजादी के बाद पहली बार कांग्रेस 1951 में तब विभाजित हुई जब   जेबी कृपलानी ने इससे अलग होकर किसान मजदूर प्रजा पार्टी बना ली  और एन जी रंगा ने हैदराबाद स्टेट प्रजा पार्टी बना ली थी। उसी वर्ष कांग्रेस से अलग होकर सौराष्ट्र खेदुत संघ बनी। 1956 में कांग्रेस फिर टूटी जब सी राजगोपालाचारी ने इंडियन नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी बनाई।  1959 में बिहार, राजस्थान, गुजरात और ओडिशा में भी कांग्रेस  से अलग होकर कांग्रेसी नेताओं ने स्वतंत्र पार्टी बनाई थी। 1964 में के एम जॉर्ज ने केरल कांग्रेस बनाई। 1966 में उड़ीसा में हरकृष्णा महाताब ने उड़ीसा जन कांग्रेस बनाई। 1967 में कांग्रेस से पृथक होकर चौधरी चरण सिंह ने भारतीय क्रांति दल  का निर्माण किया था। बंगाल में उसी साल अजय मुखर्जी ने बांग्ला-कांग्रेस का ऐलान कर दिया।  1968 में  कांग्रेस मणिपुर में  विभाजित हो गई थी। 1969 में कांग्रेस से बीजू पटनायक और मारी चेन्ना रेड्डी अलग हुए थे और उत्कल-कांग्रेस और तेलंगाना प्रजा समिति पार्टियां गठित हुई थीं। 1978 में कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र और गोवा में कांग्रेस का विभाजन हुआ था। इन राज्यों में जो लोग कांग्रेस में बचे थे उनमें फिर 1981 में विघटन हुआ। शरद पवार  कांग्रेस से अलग हो गए और इंडियन नेशनल कांग्रेस सोशलिस्ट  पार्टी बनी।

1981 में ही बिहार में जगजीवन राम ने कांग्रेस से अलग होकर जगजीवन-कांग्रेस पार्टी की स्थापना की थी। 1986 में प्रणब मुखर्जी ने  कांग्रेस से पृथक होकर  राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस  का गठन किया था। यह और बात है कि वे फिर कांग्रेस में लौट आए। देश के राष्ट्रपति तक बने।  1988 में शिवाजी गणेशन ने तमिलानाडु में कांग्रेस को तोड़कर टीएमएम बनाई। इसी तरह 1994 में तिवारी कांग्रेस बनी जिसमें नारायण दत्त तिवारी, अर्जुन सिंह, नटवर सिंह शामिल हुए। 1996 में कांग्रेस को विभाजित करने वाले नेताओं में कर्नाटक में बंगारप्पा, अरुणाचल प्रदेश में गेगांग अपांग, तमिलनाडु में मुपनार, मध्यप्रदेश में माधवराव सिंधिया शामिल थे। 1997 में बंगाल में ममता बनर्जी ने तृणमूल कांग्रेस बनाई, वहीं तमिलनाडु में बी रामामूर्ति ने मक्काल कांग्रेस की स्थापना की। 1998 में कांग्रेस से टूटकर  गोवा राजीव कांग्रेस, अरुणाचल कांग्रेस, ऑल इंडिया इंदिरा कांग्रेस (सेक्युलर), महाराष्ट्र विकास अगाड़ी बनी थी।

1999 में सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर कांग्रेस अलग हो गए और एनसीपी बनाई थी। तारिक अनवर फिर से कांग्रेस में आ गए। जम्मू कश्मीर में मुफ्ती मोहम्मद सईद ने कांग्रेस से अलग होकर पीडीपी बनाई। फिर, 2000 से अब तक पार्टी तमिलनाडु, पुद्दुचेरी, गोवा, अरुणाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, केरल, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, बंगाल और आंध्रप्रदेश में टूट चुकी है। 2011 में आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी ने कांग्रेस को तोड़कर वाईएसआर कांग्रेस बनाई। वहीं, पुदुच्चेरी में एन. रंगास्वामी ने ऑल इंडिया एनआर कांग्रेस का निर्माण किया। तीन साल बाद 2014 में तमिलनाडु में कांग्रेस पार्टी टूट गई और जीके वासन ने तमिल मनीला कांग्रेस बनाई। छत्तीसगढ़ में 2016 में अजित जोगी ने छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस का निर्माण किया। कांग्रेस तोड़ने वाले नेताओं में पी चिदंबरम,एके एंटोनी, सुरेश कलमाड़ी आदि के नाम भी उल्लेखनीय है।

टूटना और बिखरना तो संस्थाओं के साथ लगा रहता है। कांग्रेस का विघटन का बड़ा इतिहास रहा है। इसलिए सोनिया गांधी को चाहिए कि वे जो भी निर्णय लें, ठोंक- बजाकर लें। अगर वे पुत्र मोह में राहुल गांधी को कांग्रेस की बागडोर सौंपती हैं तो भी और अगर वे किसी और को कांग्रेस की बागडोर सौंपती हैं तो भी कांग्रेस का विघटन लगभग तय है। इसे रोका नहीं जा सकता है। अगर वाकई वे कांग्रेस को मजबूती देना चाहती हैं तो उन्हें खुद कांग्रेस की बागडोर को थामे रखना है वर्ना कांग्रेस तो बनी ही है टूटने के लिए। सत्ता साथ न हो तो बगावत का बढ़ना स्वाभाविक ही है।

Tags: Congress is almost ready to distributeRahul becomes president or someone elserahul gandhiकांग्रेस का बांटना लगभग तयराहुल अध्यक्ष बने या कोई और
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