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कब है राम नवमी, जानें पूजा विधि व श्रीराम स्तुति

Ram Navami

Ram Navami

भगवान राम के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में हर साल रामनवमी (Ram Navami) मनाई जाती है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान विष्णु के सातवें अवतार थे। पंचांग के अनुसार, चैत्र मास की नवमी तिथि को राम नवमी के रूप में मनाया जाता है। चैत्र मास की प्रतिपदा से लेकर नवमी तक चैत्र नवरात्रि मनाई जाती है। इन दिनों भक्त वक्त रखते हैं। इस साल राम नवमी (Ram Navami) 17 अप्रैल (बुधवार) को है।

राम नवमी (Ram Navami) महत्व

रामनवमी (Ram Navami) हिंदुओं का प्रमुख त्योहार है। इस दिन रामभक्त रामायण का पाठ और रामरक्षा स्त्रोत का पाठ करते हैं। कई जगह भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता है। रघुनाथ की प्रतिमा को पालने में झुलाते हैं।

राम नवमी (Ram Navami)  की पूजा विधि

राम नवमी (Ram Navami) के दिन स्मान करके पूजा स्थाल पर पूजन सामग्री के साथ बैठ जाएं। पूजा में तुलसी और कमल का पुष्प होना चाहिए। उसके बाद पूजा करें। खीर और फल-फूल श्रीराम को अर्पित करें। पूजा के बाद घर के सभी सदस्य माथे पर तिलक लगाए।

पौराणिक मान्यताएं

रामनवमी (Ram Navami) की कहानी लंकापति रावण से शुरू होती है। रावण अपने राज्यकाल में अत्याचार करता था। उसके अत्याचार से जनता परेशानी थी। यहां तक की देवतागण भी त्रस्त थे। दशानन को भगवान ब्रह्मा से अमर होने का वरदान मिला था। उसके अत्याचार से तंग होकर देवता भगवान विष्णु के पास गए और प्रार्थना की।

राज दशरथ की पत्नी कौशल्या ने भगवान विष्णु के रूप में राम को जन्म दिया। तब से चैत्र की नवमी तिथि को रामनवमी के रूप में मनाने की परंपरा शुरू हुई। मान्यता है कि नवमी के दिन स्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना शुरू की थी।

श्रीराम स्तुति

श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भाव भय दारुणम्।

नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम्।।

कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम्।

पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरम्।।

भजु दीन बंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम्।

रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ नन्दनम्।।

सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभूषणं।

आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर-धूषणं।।

इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।

मम ह्रदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम्।।

छंद :

मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरों।

करुना निधान सुजान सिलू सनेहू जानत रावरो।।

एही भांती गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषी अली।

तुलसी भवानी पूजि पूनी पूनी मुदित मन मंदिर चली।।

।।सोरठा।।

जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।

मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे।।

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