हिंदू धर्म में रामनवमी (Ram Navami) का त्योहार बड़ा विशेष है। हर साल चैत्र माह के शुक्ल पक्ष को रामनवमी मनाई जाती है। दरअसल पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि जिस दिन अध्योया के राजा दशरथ के यहां भगवान श्री राम का जन्म हुआ था वो चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि का दिन था। इसलिए चैत्र माह के शुक्ल पक्ष को रामनवमी का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन भगवान की पूजा-अराधना की जाती है। ऐसे में आइए जानते हैं पूजा का शुभ मुहूर्त और विधि।
आज है रामनवमी (Ram Navami)
हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि की शुरुआत आज शाम 7 बजकर 26 मिनट पर हो जाएगी। वहीं इस तिथि की समाप्ति आज यानी 6 अप्रैल को शाम 7 बजकर 22 मिनट पर हो जाएगी। हिंदू धर्म में कोई भी व्रत या त्योहार उदया तिथि को देखते हुए मनाया जाता है। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, कल रामनवमी का पावन त्योहार मनाया जाएगा।
पूजा का शुभ मुहूर्त
कल पूजा के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 8 मिनट से शुरु हो रहा है। पूजा का ये शुभ मुहूर्त कल दोपहर 1 बजकर 29 मिनट तक रहेगा। ऐसे में इसी शुभ मुहूर्त में भगवान श्रीराम की पूजा-उपासना की जा सकती है।
रामनवमी (Ram Navami) की पूजा विधि
राम नवमी (Ram Navami) के दिन प्रात: काल सर्व प्रथम सुबह उठकर स्नान करके साफ वस्त्र पहनने चाहिए। इसके बाद मंदिर की साफ-सफाई करनी चाहिए। फिर भगवान राम, माता सीता, लक्ष्मण और हनुमान जी की प्रतिमा या तस्वीर रखनी चाहिए। पूजा की शुरुआत से पहले हाथ में जल, अक्षत और पुष्प लेकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए। भगवान का आह्वान करना चाहिए। फिर भगवान को गंगाजल या शुद्ध जल से स्नान कराना चाहिए। उन्हें नए वस्त्र और आभूषण पहनाने चाहिए। भगवान को फल, फूल, मिठाई, खीर और पंजीरी का भोग लगाना चाहिए। पूजा में तुलसी दल अवश्य ही शामिल करना चाहिए। भगवान के सामने धूप, दीप जलाना चाहिए। भगवान के मंत्रों का जाप करना चाहिए। रामचरितमानस या रामायण का पाठ करना चाहिए। अंत में भगवान की आरती करनी चाहिए।
रामनवमी (Ram Navami) पर लगाएं ये भोग
राम नवमी के दिन भगवान राम को खास तौर पर पंजीरी और खीर का भोग अर्पित किया जा सकता है। इसके अलावा फल, मिठाई, और अन्य भोग भी लगाए जा सकते हैं।
इन मंत्रों का करें जाप
ॐ श्रीरामाय नमः
श्री राम जय राम जय जय राम
ॐ राम ॐ राम ॐ राम ह्रीं राम ह्रीं राम श्रीं राम श्रीं राम
श्री रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे रघुनाथाय नाथाय सीताया पतये नमः
श्री रामचन्द्राय नमः
आरती
श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भव भय दारुणम्।
नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम्।।
कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम्।
पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरम्।।
भजु दीन बंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम्।
रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ नन्दनम्।।
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभूषणं।
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर-धूषणं।।
इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।
मम ह्रदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम्।।
मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरों।
करुना निधान सुजान सिलू सनेहू जानत रावरो।।
एही भांती गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषी अली।
तुलसी भवानी पूजि पूनी पूनी मुदित मन मंदिर चली।।
दोहा- जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे।।
रामनवमी (Ram Navami) की कथा
रामनमवी (Ram Navami) की कथा लंका के राजा रावण से प्रारंभ होती है। दरअसल रावण ने ब्रह्मा जी की घोर तपस्या कर उनको प्रसन्न कर लिया था। फिर रावण ने ब्रह्म जी से वरदान मांगा कि वो देवताओं, गंधर्वों, यक्ष और दानवों से मारा न जाए। रावण ने ब्रह्मा जी से यह वरदान मांगा था कि उसे मारना असंभव हो जाए। ब्रह्मा जी ने उसे अमर होने का वरदान तो नहीं, लेकिन उसकी नाभि में अमृत स्थापित कर दिया। ब्रह्मा जी से वरदान पाकर रावण बहुत शक्तिशाली हो गया और उसने चारों ओर आतंक मचा दिया। उसके आतंक के डर से सभी देवता भागे-भागे भगवान विष्णु के पास गए। फिर भगवान विष्णु ने भगवान राम के रूप में कौशल्या माता के गर्भ से जन्म लिया।
