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कब रखा जाएगा रमा एकादशी का व्रत, इस कथा के बगैर अधूरी है पूजा

Putrada Ekadashi

Putrada Ekadashi

हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का खास महत्व है. यह हर महिने में दो और साल में 24 एकादशी होती है. लेकिन कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी का अपना अलग ही महत्व है. इसे रमा एकादशी (Rama Ekadashi) के नाम से जाना जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार, रमा एकादशी इस बार 09 नवंबर, दिन गुरुवार को पड़ी है. यह खास व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है. मान्यता है कि इस व्रत को रखने और भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करने से सभी पाप मिट जाते हैं. लेकिन मान्यता यह भी है कि व्रत कथा के बगैर इस व्रत का पूर्ण फल नहीं मिलता है. जो जातक व्रत धारण करने के साथ व्रत कथा पढ़ते या सुनते हैं, उनकी हर मनोकामना पूरी होती है और जीवन में किसी चीज की कोई कमी नहीं रहती है. इसी के साथ चलिए जानते हैं रमा एकादशी (Rama Ekadashi) व्रत की कथा.

रमा एकादशी (Rama Ekadashi) व्रत की पौराणिक कथा

पुराणों के अनुसार, मुचुकंद नाम का एक प्रतापी राजा था. उनकी एक पुत्री थी, जिसका नाम चंद्रभागा था. पिता मुचुकंद ने अपनी बेटी चंद्रभागा की शादी राजा चंद्रसेन के बेटे शोभन से करा दिया. राजकुमार शोभन की एक आदत थी कि वो एक भी समय बिना खाए नहीं रहता था. इसी बीच शोभन एक बार कार्तिक के महीने में अपनी पत्नी के साथ ससुराल आया. उस दिन रमा एकादशी का व्रत भी था.

चंद्रभागा के राज्य में सभी रमा एकादशी व्रत का नियम पूर्वक पालन करते थे तो दामाद शोभन से भी ऐसा ही करने के लिए कहा गया. परंतु, शोभन इस बात को लेकर काफी परेशान हो गया. इसके बाद अपनी परेशानी को लेकर शोभन पत्नी चंद्रभागा के पास पहुंचा. तब चंद्रभागा ने कहा कि ऐसे में तो आपको राज्य के बाहर ही जाना पड़ेगा, क्योंकि पूरे राज्य के लोग इस व्रत के नियम का पालन करते हैं. यही नहीं आज के दिन यहां के जीव-जंतु भी भोजन नहीं करते हैं. चंद्रभागा की इस बात को सुनने के बाद आखिरकार शोभन को रमा एकादशी व्रत रखना ही पड़ा. लेकिन, पारण करने से पहले ही उसकी मृत्यु हो गयी. इसके बाद चंद्रभागा अपने पिता के यहां ही रहने लगी.

रमा एकादशी (Rama Ekadashi) व्रत का महत्व

एकादशी व्रत के पुण्य प्रताब से शोभन का अगला जन्म हुआ. इसबार उन्हें मंदरांचल पर्वत पर आलीशान राज्य प्राप्त हुआ. एक बार मुचुकुंदपुर के ब्राह्मण तीर्थ यात्रा करते हुए शोभन के दिव्य नगर में पहुंचे. वहां सिंहासन पर विराजमान शोभन को देखकर ही पहचान लिया. वहां ब्राह्मणों को देख शोभन भी अपने सिंहासन से उठकर पूछा कि यह सब कैसे हुआ. इसके बाद तीर्थ यात्रा से लौटने के बाद ब्राह्मणों ने चंद्रभागा को पूरी बात बताई.

चंद्रभागा बेहद खुश हुई और पति के पास जाने के लिए व्याकुल हो गई. इसके बाद वह वाम ऋषि के आश्रम पहुंची. फिर, मंदरांचल पर्वत पर गई और पति शोभन के पास पहुंच गई. इस तरह एकादशी व्रतों के पुण्य प्रभाव से दोनों का फिर से मिलन हो गया. कहते हैं, तभी से मान्यता है कि जो भी मनुष्य इस व्रत को रखता है वह ब्रह्महत्या जैसे पाप से मुक्त हो जाता है. साथ ही उसकी सारी मनोकामनाएं भी पूरी हो जाती हैं.

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