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Tokyo Olympics 2020 : रवि दहिया के दृढ़ इरादों ने बनाया ओलम्पिक विजेता

Ravi Dahia Tokyo Olympics 2020

योगेश कुमार गोयल

5 अगस्त का दिन टोक्यो के ‘खेलों के महाकुंभ’ में भारत के लिए ऐतिहासिक रहा। दरअसल इस दिन न केवल भारतीय हॉकी टीम ने जर्मनी को 5-4 से हराकर ओलम्पिक (Tokyo Olympics 2020 ) में भारत का 41 वर्षों का सूखा खत्म कर कांस्य पदक जीता, वहीं शानदार प्रदर्शन करते हुए भारतीय पहलवान रवि कुमार दहिया रजत पदक जीतने में सफल रहे। हालांकि भारतीय पहलवानों दीपक पूनिया, विनेश फोगाट और अंशु मलिक को निराशा हाथ लगी लेकिन खेलों के इस महाकुंभ में अभी कुछ ऐसी स्पर्धाएं हैं, जिनमें भारत को अपने कुछ और खिलाड़ियों से पदक की उम्मीद है।

वैसे रवि को ओलम्पिक (Tokyo Olympics 2020) के फाइनल में स्वर्ण पदक जीतने की पूरी उम्मीद थी लेकिन 57 किलोग्राम फ्रीस्टाइल वर्ग के फाइनल में 2018 और 2019 के विश्व चैम्पियनशिप रह चुके रूस ओलम्पिक समिति के पहलवान जावुर युगुऐव से 7-4 से हारने के बाद उनका यह सपना चकनाचूर हो गया। अभीतक कुश्ती में कोई भी भारतीय पहलवान स्वर्ण पदक जीतने में सफल नहीं हुआ है और इस बार रवि इसी उम्मीद के साथ टोक्यो गए थे। रजत जीतने के बाद उन्होंने कहा भी है कि वह गोल्ड मेडल की उम्मीद से टोक्यो आए थे और रजत से संतुष्ट नहीं हैं। वैसे ओलम्पिक में व्यक्तिगत स्पर्धा में आजतक केवल अभिनव बिंद्रा ही ऐसे खिलाड़ी हैं, जो स्वर्ण पदक जीत सके हैं। उन्होंने 2008 के बीजिंग ओलम्पिक में 10 मीटर एयर राइफल स्पर्धा में भारत की झोली में इतनी बड़ी जीत डाली थी।

भारत की झोली में आया पांचवा मेडल, रवि दहिया ने कुश्ती में जीता रजत पदक

हालांकि ओलम्पिक (Tokyo Olympics 2020) के रेसलिंग मुकाबलों में रवि का रजत पदक भी बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि ओलम्पिक खेलों के इतिहास में पदक जीतने वाले वे पांचवें पहलवान हैं और रेसलिंग में भारत का केवल छठा पदक है। पहलवान सुशील कुमार ने ओलम्पिक में लगातार दो बार पदक जीते थे। भारत को सबसे पहले 1952 में हेलसिंकी ओलम्पिक में पहलवान केडी जाधव ने कांस्य पदक दिलाया था। उसके बाद रेसलिंग में पदक के लिए 56 वर्षों का लंबा इंतजार करना पड़ा था। उस लंबे सूखे को 2008 में सुशील कुमार ने बीजिंग ओलम्पिक में कांस्य पदक जीतकर खत्म किया था। उसके बाद 2012 के लंदन ओलम्पिक में दो भारतीय पहलवानों ने जीत का परचम लहराया। सुशील कुमार रजत और योगेश्वर दत्त कांस्य पदक जीतने में सफल रहे। 2016 के रियो ओलम्पिक में साक्षी मलिक ने कांस्य पदक हासिल किया था। अगर टोक्यो ओलम्पिक की बात करें तो रवि से पहले भारोत्तोलन में मीराबाई चानू, बैडमिंटन में पीवी सिंधु, मुक्केबाजी में लवलीना बोरगोहेन और भारतीय हॉकी टीम भारत के लिए पदक जीत चुके हैं।

जहां तक 23 वर्षीय भारतीय पहलवान रवि कुमार दहिया के ओलम्पिक में प्रदर्शन की बात है, सुशील कुमार के बाद वह ओलम्पिक (Tokyo Olympics 2020) में रजत पदक जीतने वाले दूसरे भारतीय पहलवान बन गए हैं। ओलम्पिक में रवि ने पहले दौर में कोलम्बिया के टिगरेरोस उरबानो ऑस्कर एडवर्डाे को 13-2 से हराकर शानदार शुरुआत की थी और 4 अगस्त को अपने ओलम्पिक अभियान की मजबूत शुरुआत करते हुए क्वार्टर फाइनल में बुल्गारिया के जॉर्डी वेलेंटिनोव वेंगेलोव को तकनीकी दक्षता के आधार पर 14-4 से हराकर सेमीफाइनल में जगह बनाई थी।

4 अगस्त को रवि ने पुरुषों के 57 किलोग्राम भार वर्ग के सेमीफाइनल मुकाबले में कजाकिस्तान के नूरीस्लाम सानायेव को विक्ट्री बाई फॉल के जरिये पटखनी देते हुए रजत पदक पक्का कर लिया था। सेमीफाइनल मुकाबले में जब रवि ने मैच के आखिरी मिनट में कजाक पहलवान को अपनी मजबूत भुजाओं में जकड़ लिया था, तब उसने रवि की पकड़ से छूटने के लिए खेल भावना के विपरीत उनकी बांह पर दांतों से काटना शुरू कर दिया था लेकिन रवि ने अपने दबंग इरादों का परिचय देते हुए अपनी मजबूत पकड़ ढ़ीली नहीं होने दी और उसे चित्त करते हुए मुकाबला अपने नाम किया था।

12 दिसम्बर 1997 को हरियाणा के सोनीपत जिले के नाहरी गांव में जन्मे रवि कुमार दहिया ने केवल छह वर्ष की आयु में गांव के हंसराज ब्रह्मचारी अखाड़े में कुश्ती शुरू कर दी थी। दरअसल यह गांव पहलवानों का गांव माना जाता है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां का लगभग प्रत्येक बच्चा कुश्ती में अपने हाथ आजमाता है। कुछ समय बाद वह उत्तरी दिल्ली के उस छत्रसाल स्टेडियम में चले गए, जहां से दो ओलम्पिक पदक विजेता सुशील कुमार और योगेश्वर दत्त निकले हैं।

वहां 1982 के एशियाई खेलों के स्वर्ण पदक विजेता रहे सतपाल सिंह ने उन्हें दस वर्ष की आयु में ही ट्रेनिंग देनी शुरू कर दी थी। रवि के पिता राकेश एक भूमिहीन किसान थे, जो बंटाई की जमीन पर खेती किया करते थे। उनकी दिली तमन्ना थी कि उनका बेटा पूरी दुनिया में देश का नाम रोशन करे और अपनी इसी ख्वाहिश को पूरा करने के लिए उन्होंने आर्थिक संकट के बावजूद बेटे की ट्रेनिंग में कोई कमी नहीं आने दी। वह प्रतिदिन बेटे तक फल ओर दूध पहुंचाने के लिए नाहरी गांव से 40 किलोमीटर दूर छत्रसाल स्टेडियम तक जाया करते थे।

बहरहाल, दो बार के एशियन चैम्पियन रह चुके रवि ने जिस अंदाज में कुछ दिग्गज पहलवानों को हराते हुए टोक्यो ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई किया था और कजाकिस्तान के नूर सुल्तान में अपनी पहली ही 2019 विश्व रेसलिंग चैम्पियनशिप में कांस्य पदक जीतने में सफल हुए थे, उसे देखते हुए उनसे ओलम्पिक में श्रेष्ठ प्रदर्शन की उम्मीदें काफी बढ़ गई थी।

टोक्यो ओलम्पिक (Tokyo Olympics 2020) में वह भले ही स्वर्ण पदक जीतने में सफल नहीं हुए लेकिन उन्होंने भारत को अपने दमदार प्रदर्शन से रजत जीतकर निराश नहीं किया। 2019 में कजाकिस्तान के नूर सुल्तान में हुई विश्व कुश्ती चैम्पियनशिप के क्वार्टर फाइनल में जापान के युकी ताकाहाशी को 6-1 से मात देते हुए सेमीफाइनल में पहुंचकर रवि ने टोक्यो ओलम्पिक के लिए क्वालिफाई किया था और ईरान के रेजा अत्री नागाहरची को हराकर कांस्य पदक अपने नाम किया था।

विश्व चैम्पियनशिप में 57 किलोग्राम वर्ग में कई शीर्ष पहलवानों को हराकर रवि ने साबित कर दिया था कि उनमें कितना दमखम है। वह एशियन चैम्पियनशिप में दो बार स्वर्ण पदक जीत चुके हैं। 2015 में उन्होंने 55 किलोग्राम फ्रीस्टाइल वर्ग में सल्वाडोर डी बाहिया में विश्व जूनियर कुश्ती चैम्पियनशिप में रजत पदक भी जीता था।

2017 में लगी चोट के बाद वह करीब एक साल तक कुश्ती से दूर रहे थे और उसके बाद 2018 में बुखारेस्ट में विश्व अंडर-23 कुश्ती चैम्पियनशिप में 57 किलोग्राम वर्ग में रजत पदक जीतकर धमाकेदार वापसी करने में सफल हुए थे। उस चैम्पियनशिप में वह भारत का एकमात्र पदक था। नई दिल्ली में 2020 की एशियाई कुश्ती चैम्पियनशिप और अलमाटी में 2021 की एशियाई कुश्ती चैम्पियनशिप में रवि ने स्वर्ण पदक जीता।

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