संत रविदास की 644वीं जयंती आज यानी 27 फरवरी को है। हिंदू कैलेंडर के मुताबिक, संत रविदास की जयंती माघ महीने की पूर्णमा को मनाई जाती है। मध्यकालीन भारतीय संत परंपरा में संत रविदास जी का विशिष्ट स्थान है। संत रविदास जी को संत रैदास और भगत रविदास जी के नाम से भी संबोधित किया जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, गुरु रविदास जी का जन्म वर्ष 1398 में माघ महीने की पूर्णिमा के दिन वाराणसी के गांव में हुआ था। हालांकि उनके जन्म को लेकर कई विद्वानों का मत है कि 1482 से 1527 ईस्वी के बीच उनका जन्म हुआ था।
कौन हैं संत रविदास?
उनकी मां का नाम कलसा देवी और पिता का नाम श्रीसंतोख दास था। वो हमेशा लोगो बगैर किसी भेदभाव के प्रेम से रहने की शिक्षा देते थे। वो लोगों को सामाजिक छुआछूत से दूर रहने की शिक्षा देते थे। संत रविदास की जयंती के दिन उनके दोहे और भजन-कीर्तन गाए जाते है। इस दिन गंगा स्नाना का भी काफी महत्व है। रविदास जयंती के दिन उनको मानने वाले लोग गंगा में स्नान कर पुण्य लाभ लेते हैं। साथ ही उनकी महान शिक्षाओं पर विचार विमर्श और अमल करते हैं। इस मौके पर कई जगह धार्मिक आयोजन भी किए जाते हैं।
कैसे संत बने रविदास?
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, बचपन में रविदास अक्सर अपने दोस्तों के साथ खेला करते थे। लेकिन एक दिन उनका प्रिय दोस्त नहीं आया। रविदास उसे ढूंढते-ढूंढते उसके घर पर पहुंचे। वहां जाकर उन्हें पता चला कि उनके दोस्त की मौत हो गई है। रविदास जी दोस्त के शव को देखकर बहुत दुखी हुए। अपनी सारी शक्ति समेट कर वो अपने दोस्त के शव को झकझोरते हुए बोले कि अरे उठो न, देखो मैं आया हूं, ये समय सोने में न गंवाओ, तुम्हें मेरे साथ खेलने चलना होगा। उनके इस तरह कहने पर मृतक दोस्त अचानक से उठ खड़ा हुआ जिसे देखकर आस-पास के लोग हैरान रह गए।
इससे लोगों को इस बात का एहसास हो गया कि बालक रविदास कोई साधारण इंसान नहीं है। उसे दिव्य शक्तियां प्राप्त हैं। समय के साथ-साथ रविदास जी का मन भगवान राम और कृष्ण की भक्ति में रमता चला गया। वो लोगों को उपदेश करते और सामाजिक हित के काम करते करते लोगों के बीच संत के रूप में विख्यात हुए।