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इस दिन गणेश जी हो गए थे महादेव के गुस्से का शिकार, पढ़े सकट चौथ की पौराणिक कथा

Ganesh

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सकट चौथ ( Sakat Chauth) को संकष्टी चतुर्थी, तिलकुट, माघ चतुर्थी के नामों से भी जाना जाता है। इस दिन विघ्नहर्ता गणेश जी की पूजा का विधान है। मान्यता है कि इस दिन जो भी माताएं गणेश जी की विधि-विधान के साथ पूजा और व्रत करती हैं, उनकी संतान हमेशा निरोग रहती है। इस दिन व्रती महिलाओं को गणेश जी के पूजन के बाद सकट चौथ ( Sakat Chauth) की कथा भी जरूर सुननी चाहिए।

सकट चौथ ( Sakat Chauth) पहली व्रत कथा

भगवान शिव और गणेश जी

हिंदू शास्त्र के अनुसार, माघ माह में आने वाली सकट चौथ का विशेष महत्व है। इसके पीछे की पौराणिक कथा विघ्नहर्ता गणेश जी से जुड़ी है। इस दिन गणेश जी पर बड़ा संकट आकर टला गया था, इसलिए इस दिन का नाम सकट चौथ पड़ा है।  कथा के अनुसार माता पार्वती एक दिन स्नान करने के लिए जा रही थीं। उन्होंने अपने पुत्र बालक गणेश को दरवाजे के बाहर पहरा देने का आदेश दिया और बोलीं कि जब तक वे स्नान करके ना लौटें किसी को भी अंदर नहीं आने दें। गणेश जी मां की आज्ञा का पालन करते हुए बाहर खड़े होकर पहरा देने लगे।  ठीक उसी वक्त भगवान शिव माता पार्वती से मिलने पहुंचे। गणेश जी ने तुरंत ही भगवान शिव को दरवाज़े के बाहर रोक दिया। ये देख शिव जी को गुस्सा आ गया और उन्होंने त्रिशूल से वार कर बालक गणेश की गर्दन धड़ से अलग कर दी। इधर पार्वती जी ने बाहर से आ रही आवाज़ सुनी तो वह भागती हुईं बाहर आईं। पुत्र गणेश की कटी हुई गर्दन देख घबरा गईं और शिव जी से अपने बेटे के प्राण वापस लाने की गुहार लगाने लगी। शिव जी ने माता पार्वती की बात मानते हुए गणेश जी को जीवन दान तो दे दिया लेकिन गणेश जी की गर्दन की जगह एक हाथी के बच्चे का सिर लगानी पड़ी। उसी दिन से सभी महिलाएं अपने बच्चों की सलामती के लिए गणेश चतुर्थी का व्रत रखती हैं।

सकट चौथ ( Sakat Chauth) की दूसरी कथा

कुम्हार

सकट चौथ की दूसरी कथा मिट्टी के बर्तन बनाने वाले एक कुम्हार से जुड़ी हुई है। कहानी के अनुसार एक राज्य में एक कुम्हार रहता था। एक दिन वह मिट्टी के बर्तन पकाने के लिए आवा ( मिट्टी के बर्तन पकाने के लिए आग जलाना ) लगा रहा था। उसने आवा तो लगा दिया लेकिन उसमें मिट्टी के बर्तन पके नहीं। ये देखकर कुम्हार परेशान हो गया और वह राजा के पास गया और सारी बात बताई।  राजा ने राज्य के राज पंडित को बुलाकर कुछ उपाय सुझाने को बोला, तब राज पंडित ने कहा कि, यदि हर दिन गांव के एक-एक घर से एक-एक बच्चे की बलि दी जाए तो रोज आवा पकेगा।

राजा ने आज्ञा दी की पूरे नगर से हर दिन एक बच्चे की बलि दी जाए।  कई दिनों तक ऐसा चलता रहा और फिर एक बुढ़िया के घर की बारी आई, लेकिन उसके बुढ़ापे का एकमात्र सहारा उसका अकेला बेटा अगर बलि चढ़ जाएगा तो बुढ़िया का क्या होगा, ये सोच-सोच वह परेशान हो गई। उसने सकट की सुपारी और दूब देकर बेटे से बोला, ‘जा बेटा, सकट माता तुम्हारी रक्षा करेंगी और खुद सकट माता का स्मरण कर उनसे अपने बेटे की सलामती की कामना करने लगी।

अगली सुबह कुम्हार ने देखा की आवा भी पक गया और बालक भी पूरी तरह से सुरक्षित है और फिर सकट माता की कृपा से नगर के अन्य बालक जिनकी बलि दी गई थी, वह सभी भी जी उठें, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार उसी दिन से सकट चौथ के दिन मां अपने बेटे की लंबी उम्र के लिए भगवान गणेश की पूजा और व्रत करती हैं।

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