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रक्षाबंधन पर भाई को राखी बांधते समय जरूर पढ़े यह मंत्र, जानें इसका महत्व

Raksha bandhan

Raksha Bandhan

सावन महीने की पूर्णिमा को रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) का त्यौहार मनाया जाना हैं जो कि इस बार 31 अगस्त को पड़ रहा हैं। यह दिन (Raksha Bandhan) भाई-बहिन को समर्पित होता हैं जिसमें बहिन अपने भाई की कलाई पर राखी (Rakhi) बांधती हैं उसके लिए मंगल कामना करती हैं। भाई भी बहिन को रक्षा करने का वादा करता हैं। इस दिन का आध्यात्मिक महत्व भी बहुत होता हैं। पुराणों के अनुसार राखी बांधते समय बहिन को विशेष मंत्र का जाप करना चाहिए जो कि विशेष फलदायी साबित होता हैं। तो आइये जानते हैं इस मंत्र और इसके पीछे की पौराणिक कथा के बारे में।

राखी (Rakhi) बांधते समय पढ़ना चाह‍िए यह व‍िशेष मंत्र

‘येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल: तेन त्वाम् प्रतिबद्धनामि रक्षे माचल माचल:।’

आप भी भाई को राखी बांधते समय इस मंत्र का उच्‍चारण कर सकती हैं। इस पौराणिक मंत्र का अर्थ है- जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बांधा गया था, उसी रक्षाबंधन से मैं तुम्हें बांधता हूं, जो तुम्हारी रक्षा करेगा। हे रक्षे! (रक्षासूत्र) तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो। ब्राह्मण या पुरोहित रक्षासूत्र बांधते समय मन ही मन यह प्रार्थना करते हैं कि जिस रक्षासूत्र से दानवों के महापराक्रमी राजा बलि धर्म के बंधन में बांधे गए थे अर्थात् धर्म में प्रयुक्त किए गये थे, उसी सूत्र से मैं तुम्हें बांधता हूं, यानी धर्म के लिए प्रतिबद्ध करता हूं। इसके बाद पुरोहित रक्षासूत्र से कहता है कि हे रक्षे तुम स्थिर रहना, स्थिर रहना। इस प्रकार रक्षा सूत्र का उद्देश्य ब्राह्मणों द्वारा अपने यजमानों को धर्म के लिए प्रेरित करना है।

मंत्र के पीछे की पौराणिक कथा

राखी बांधते समय पढ़े जाने वाले इस पौराणिक मंत्र ‘येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल: तेन त्वाम् प्रतिबद्धनामि रक्षे माचल माचल:’ के बारे में वामन पुराण, भविष्य पुराण और विष्णु पुराण में एक कथा भी मिलती है। इसके अनुसार राजा बलि बहुत दानी राजा थे और भगवान विष्णु के अनन्य भक्त भी थे। एक बार उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया। इसी दौरान उनकी परीक्षा लेने के लिए भगवान विष्णु वामनावतार लेकर आए और दान में राजा बलि से तीन पग भूमि देने के लिए कहा। लेकिन उन्होंने दो पग में ही पूरी पृथ्वी और आकाश नाप लिया।

इस पर राजा बलि समझ गए कि भगवान उनकी परीक्षा ले रहे हैं। तीसरे पग के लिए उन्होंने भगवान का पग अपने सिर पर रखवा लिया। फिर उन्होंने भगवान से याचना की कि अब तो मेरा सबकुछ चला ही गया है, प्रभु आप मेरी विनती स्वीकारें और मेरे साथ पाताल में चलकर रहें। भगवान ने भक्त की बात मान ली और बैकुंठ लोक छोड़कर पाताल चले गए।

जब भगवान पाताल लोक चले गए तो उधर देवी लक्ष्मी परेशान हो गईं। फिर उन्होंने लीला रची और गरीब महिला बनकर राजा बलि के सामने पहुंचीं। राजा बलि नें महिला की गरीबी देखकर उन्हें अपने महल में रख लिया और बहन की तरह उनकी देखभाल करने लगे। श्रावण पूर्णिमा के दिन देवी लक्ष्मी ने जो एक गरीब महिला के रूप में थीं राजा बलि की कलाई में एक कच्चा धागा बांध दिया।

राजा बलि ने कहा कि आपने बहन के तौर पर मेरी कलाई में यह रक्षासूत्र बांधा है तो मैं आपको कुछ देना चाहता हूं, आपकी जो इच्छा हो मांग लीजिए। इस पर देवी लक्ष्मी अपने वास्तविक रूप में आ गईं और बोलीं कि आपके पास तो साक्षात भगवान हैं, मुझे वही चाहिए मैं उन्हें ही लेने आई हूं। मैं अपने पति भगवाव विष्णु के बिना बैकुंठ में अकेली हूं। महिला की सच्चाई जानने के बाद भी राजा बलि धर्म के पथ पर कायम रहे और वचन के अनुसार राजा बलि ने भगवान विष्णु को माता लक्ष्मी के साथ जाने दिया। हालांकि जाते समय भगवान विष्णु ने राजा बलि को वरदान दिया कि वह हर साल चार महीने पाताल में ही निवास करेंगे। यह चार महीना चर्तुमास के रूप में जाना जाता है जो देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठानी एकादशी तक होता है।

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