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ईद-उल-अजहा पर कुर्बानी देने का कारण और महत्व

बकरीद

बकरीद

लाइफ़स्टाइल डेस्क। बकरा ईद को बकरीद, ईद-उल-अजहा या फिर ईद-उल जुहा के नामों से जाना जाता है। यह इस्लाम धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक माना जाता है।  इस्लामिक कैलैंडर के अनुसार 12वें महीने धू-अल-हिज्जा की 10 तारीख को बकरीद मनाई जाती है। यह तारीख रमजान के पवित्र महीने के खत्म होने के लगभग 70 दिनों के बाद आती है। साउदी अरब में 31 जुलाई को ही बकरीद मनाई जाएगी। वहीं भारत में 1 अगस्त को मनाई जाएगी।

बकरीद का सही अर्थ?

कई लोग बकरीद को बकरों से जोड़कर देखते हैं। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि इसका बकरा से कोई मतलब नहीं है। बल्कि यह त्योहार कुर्बानी का त्योहार है। दरअसल, अरबी भाषा में बक़र का मतलब होता है बड़ा जानवर, जिसे ज़िबा यानि जिसकी बली दी जाती है।

ईद उल अज़हा मनाने का कारण

ये ईद मुसलमानों के पैग़म्बर और हज़रत मोहम्मद के पूर्वज हज़रत इब्राहिम की क़ुर्बानी को याद करने के लिए मनाई जाती है। मुसलमानों का विश्वास है कि अल्लाह ने इब्राहिम की भक्ति की परीक्षा लेने के लिए अपनी सबसे प्यारी चीज़ की कुर्बानी मांगी थी। हजरत इब्राहिम ने अपने जवान बेटे हजरत इस्माइल को अल्लाह की राह में कुर्बान करने का फैसला कर लिया, लेकिन वो जैसे ही अपने बेटे को कुर्बान करने वाले थे अल्लाह ने उनकी जगह एक दुंबे को रख दिया। ऐसा माना जाता है कि अल्लाह सिर्फ उनकी परीक्षा ले रहे थे। अब इस दिन को हज़रत इब्राहिम को याद करते हुए मनाई जाती है। इस दिन लोग कुर्बानी के तौर पर बकरे की बली देते हैं।

बकरीद का महत्‍व

बकरीद का दिन फर्ज-ए-कुर्बान का दिन होता है। इस्लाम में गरीबों और मजलूमों का खास ध्यान रखने की परंपरा है। इसी वजह से बकरीद पर भी गरीबों का विशेष ध्यान रखा जाता है। इस दिन कुर्बानी के बाद गोश्त के तीन हिस्से किए जाते हैं। इन तीनों हिस्सों में से एक हिस्सा खुद के लिए और शेष दो हिस्से समाज के गरीब और जरूरतमंद लोगों में बांट दिए जाते हैं। ऐसा करके मुस्लिम इस बात का पैगाम देते हैं कि अपने दिल की करीबी चीज़ भी हम दूसरों की बेहतरी के लिए अल्लाह की राह में कुर्बान कर देते हैं।

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