वैदिक पंचांग के अनुसार हर साल माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी (Basant Panchami) का पर्व मनाया जाता है। इस दिन शिक्षा, संगीत और कला की देवी मां सरस्वती की पूजा की जाती है। साथ ही इस दिन बच्चों का उपनयन संस्कार और गुरुकुलों में शिक्षा देने की शुरुआत भी होती है। मान्यता है कि बसंत पंचमी के दिन सरस्वती चालीसा का पाठ करने पूजा पूरी मानी जाती है। इसके अलावा व्यक्ति को ज्ञान और कला के साथ धन की भी प्राप्ति होती है।
बसंत पचंमी (Basant Panchami) कब है?
हिंदू पंचांग के अनुसार, माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि की शुरुआत 2 फरवरी को सुबह 9 बजकर 14 मिनट पर होगी। वहीं तिथि का समापन अगले दिन यानी 3 फरवरी को सुबह 6 बजकर 52 मिनट पर होगा। उदया तिथि के अनुसार, बसंत पंचमी (Basant Panchami) का पर्व 2 फरवरी को मनाया जाएगा।
॥ श्री सरस्वती चालीसा ॥
॥ दोहा ॥
जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धरि।
बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥
पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु।
दुष्जनों के पाप को, मातु तु ही अब हन्तु॥
सरस्वती चालीसा चौपाई
जय श्री सकल बुद्धि बलरासी।
जय सर्वज्ञ अमर अविनासी॥
जय जय जय वीणाकर धारी।करती सदा सुहंस सवारी॥
रूप चतुर्भुजधारी माता।सकल विश्व अंदर विख्याता॥
जग में पाप बुद्धि जब होती।जबहि धर्म की फीकी ज्योती॥
तबहि मातु ले निज अवतारा।पाप हीन करती महि तारा॥
वाल्मीकिजी थे हत्यारा।तव प्रसाद जानै संसारा॥
रामायण जो रचे बनाई।आदि कवी की पदवी पाई॥
कालिदास जो भये विख्याता।तेरी कृपा दृष्टि से माता॥
तुलसी सूर आदि विद्धाना।भये और जो ज्ञानी नाना॥
तिन्हहिं न और रहेउ अवलम्बा।केवल कृपा आपकी अम्बा॥
करहु कृपा सोइ मातु भवानी।दुखित दीन निज दासहि जानी॥
पुत्र करै अपराध बहुता।तेहि न धरइ चित्त सुंदर माता॥
राखु लाज जननी अब मेरी।विनय करूं बहु भांति घनेरी॥
मैं अनाथ तेरी अवलंबा।कृपा करउ जय जय जगदंबा॥
मधु कैटभ जो अति बलवाना।बाहुयुद्ध विष्णू ते ठाना॥
समर हजार पांच में घोरा।फिर भी मुख उनसे नहिं मोरा॥
मातु सहाय भई तेहि काला।बुद्धि विपरीत करी खलहाला॥
तेहि ते मृत्यु भई खल केरी।पुरवहु मातु मनोरथ मेरी॥
चंड मुण्ड जो थे विख्याता।छण महुं संहारेउ तेहि माता॥
रक्तबीज से समरथ पापी।सुर-मुनि हृदय धरा सब कांपी॥
काटेउ सिर जिम कदली खम्बा।बार बार बिनवउं जगदंबा॥
जग प्रसिद्ध जो शुंभ निशुंभा।छिन में बधे ताहि तू अम्बा॥
भरत-मातु बुधि फेरेउ जाई।रामचन्द्र बनवास कराई॥
एहि विधि रावन वध तुम कीन्हा।सुर नर मुनि सब कहुं सुख दीन्हा॥
को समरथ तव यश गुन गाना।निगम अनादि अनंत बखाना॥
विष्णु रूद्र अज सकहिं न मारी।जिनकी हो तुम रक्षाकारी॥
रक्त दन्तिका और शताक्षी।नाम अपार है दानव भक्षी॥
दुर्गम काज धरा पर कीन्हा।दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा॥
दुर्ग आदि हरनी तू माता।कृपा करहु जब जब सुखदाता॥
नृप कोपित जो मारन चाहै।कानन में घेरे मृग नाहै॥
सागर मध्य पोत के भंगे।अति तूफान नहिं कोऊ संगे॥
भूत प्रेत बाधा या दुःख में।हो दरिद्र अथवा संकट में॥
नाम जपे मंगल सब होई।संशय इसमें करइ न कोई॥
पुत्रहीन जो आतुर भाई।सबै छांड़ि पूजें एहि माई॥
करै पाठ नित यह चालीसा।होय पुत्र सुन्दर गुण ईसा॥
धूपादिक नैवेद्य चढावै।संकट रहित अवश्य हो जावै॥
भक्ति मातु की करै हमेशा।निकट न आवै ताहि कलेशा॥
बंदी पाठ करें शत बारा।बंदी पाश दूर हो सारा॥
मोहे जान अज्ञनी भवानी।कीजै कृपा दास निज जानी ॥
॥ दोहा ॥
माता सूरज कांति तव, अंधकार मम रूप।डूबन ते रक्षा करहु, परूं न मैं भव-कूप॥
बल बुद्धि विद्या देहुं मोहि, सुनहु सरस्वति मातु।मुझ अज्ञानी अधम को, आश्रय तू ही दे दातु ॥॥
सरस्वती चालीसा के लाभ
मान्यता है कि सरस्वती चालीसा का पाठ करने से ज्ञान के मार्ग खुलते हैं। इससे मन शांत एवं एकाग्रचित्त रहता है। विद्यार्थियों को इसका पाठ जरूर करना चाहिए। सरस्वती चालीसा के पाठ से कुंडली में बुध ग्रह मजबूत होता है।बुध ग्रह बुद्धि , वाणी , संगीत, व्यापार को प्रदर्शित करते हैं। सरस्वती चालीसा का पाठ करने वाले व्यक्ति का तेज बढ़ता है। उसे हर क्षेत्र में यश और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।