राकेश यादव
लखनऊ। जब अधीक्षक मौज करेंगे और जेलर जेल चलाएंगे तो घटनाएं होगी ही। एटा जेल में रंगदारी मांगने की घटना ने जेल में चल रही अधिकारियों की मनमानी वसूली और मस्ती का खुलासा कर दिया। अधिकारियों की हीलाहवाली की वजह से कैदी ने रंगदारी मांगने वाले बंदी की गैर रजिस्टर्ड फ़ोन नंबर पर बात करा दी। मामला सुर्खियों में आने के बाद अब अधिकारी मामले पर लीपापोती करने में जुटे है।
कोरोना कॉल में प्रदेश की जेलो में बंदियों की परिजनों से मुलाकात की व्यवस्था पूरी तरह से बंद है। लंबे समय तक परिजनों से संपर्क नही हो पाने के कारण बंदी अवसाद में न खाने पाए इसके लिए जेल प्रशासन ने बंदियों की परिजनों से फ़ोन पर बात कराए जाने की व्यवस्था की है। इसके लिके बंदी की जेल में आमद होने के समय उससे परिवार एवम करीबी रिश्तेदार के दो टेलीफोन नंबर लिए जाते है। जेल प्रशासन के पास दर्ज (रजिस्टर्ड) कराए गए इन्ही नम्बरों पर बंदी की बात कराये जाने का नियम है। सुविधा शुल्क के चलते यह नियम सिर्फ कागजो में सिमट कर रह गया।
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सूत्रों का कहना है जेल के अंदर से बंदियों की परिजनों से फ़ोन पर बात करने की जिम्मेदारी प्रभारी डिप्टी जेलर की होती है। किन्तु अधिकारी यह काम जेल के नम्बरदार कैदियों से करवाते है। बताया गया है कि जेल में बंदियों की परिजनों के बातचीत कराने के नाम पर जमकर वसूली की जाती है। एक कॉल करने के लिए डेढ़ से दो सौ रुपये तक वसूल किये जाते है। गैर रजिस्टर्ड नंबर पर बात करने के लिए मोटी रकम वसूल की जाती।
सूत्र बताते है कि जेल प्रशासन की अवैध वसूली का लाभ उठाकर बंदी फ़ोन से रंगदारी मांगने में सफल हो गया। सूत्रों की माने तो एक विशेष वर्ग का अधिकारी होने के नाते अधीक्षक घूमने व लखनऊ में बने रहने की खातिर अवकाश पर रहते है। अवकाश के समय जेल की जिम्मेदारी जेलर के पास ही रहती है। उधर इस संबंध में एटा जेल अधीक्षक पीपी सिंह से (सीयूजी नंबर 9454418186) बात करने की कोशिश की गई तो उनका फ़ोन ही नही मिला।
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डीआईजी जेल संजीव को नही मिलते दोषी अधिकारी
आईपीएस डीआईजी जेल को घटना में दोषी अधिकारी मिल जाते है किंतु विभागीय डीआईजी जेल को घटनाओ में कोई दोषी अधिकारी ही नही मिलता। एटा जेल से रंगदारी मांगने की घटना की जांच आगरा-मेरठ रेंज के आईपीएस डीआईजी जेल अखिलेश कुमार ने की। जांच रिपोर्ट पर डिप्टी जेलर को निलंबित कर दिया गया। वही राजधानी की आदर्श कारागार से दिनदहाड़े खूंखार कैदी के फरार होने की जांच लखनऊ रेंज व मुख्यालय के विभागीय डीआईजी जेल संजीव त्रिपाठी को दी गयी। इस घटना में उन्हें कोई दोषी ही नही मिला। यही नही रायबरेली जेल से दो बंदियों की फरारी की घटना में कोई दोषी अधिकारी नही मिला।