हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत अति महत्वपूर्ण माना गया है। पूरे साल में चौबीस एकादशियां आती हैं लेकिन जब अधिकमास या मलमास पड़ता है तब एकादशी कुल मिलाकर 26 के करीब हो जाती हैं। ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) या भीमसेनी एकादशी कहा जाता है। इस व्रत की महत्ता बाकी की एकादशी से अधिक बतायी जाती है।कहा जाता है कि इस की एकादशी सभी एकादशी के व्रत करने के बराबर होती है यानि ये एक एककादशी व्रत रखने से आपको पूरी 24 एकादशी का फल मिल जाता है।
निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) जैसा कि नाम से ही विदित है कि इस व्रत में जल के बिना रहा जाता है। इस व्रत में भोजन और जल ग्रहण करना निषेध है। वैसे तो शास्त्रों के अनुसार इस व्रत में पानी का पीना वर्जित है इसिलिये इस निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) कहते हैं लेकिन शास्त्रानुसार एक तय नियम और तय समय में आप जल ग्रहण कर सकते हैं।चलिए आपको बताते हैं वो नियम…
इस नियम से पानी पीने से नहीं टूटता व्रत
वैसे तो ऐसी मान्यता है कि निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) व्रत का पूर्ण फल तभी प्राप्त होता है जब अगले दिन व्रत का पारण करके जल को ग्रहण किया जाये, लेकिन अगर आप इस व्रत में स्नान आचमन के समय नियमानुसार अगर आप पानी पीते हैं तो व्रत भंग नहीं होता है और इस व्रत से अन्य तेईस एकादशियों का पुण्य का लाभ भी आपको मिल जाता है। यानि जिस वक्त आप नहाने जायें उस वक्त पहले जल का आचमन करें और फिर उसी समय पानी पी लें।
पौराणिक कथा भी प्रचलित
इस नियम के पीछे एक पौराणिक कथा भी प्रचलित है एक बार महर्षि व्यास पांडवो से भीम ने पूछा कि महर्षि ये बताइए कि युधिष्ठर, अर्जुन, नकुल, सहदेव, माता कुन्ती और द्रौपदी सभी एकादशी का व्रत करते हैं लेकिन अपनी उदर अग्नि के चलते ये व्रत नहीं कर पाता तो क्या कोई ऐसा व्रत है जो मुझे चौबीस एकादशियों का फल एक साथ दे सके ?
महर्षि व्यास जानते थे कि भीम भोजन के बिना नहीं रह सकते, तब व्यास जी ने भीम से कहा कि तुम ज्येष्ठ शुक्ल निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) का व्रत रखो क्योंकि इस व्रत में स्नान आचमन के समय जल ग्रहण से दोष नहीं लगता और सभी 24 एकादशियों का फल व्रत करने वाले को मिल जाता है।