पितृ पक्ष (Pitru Paksha) जारी हैं जहां सभी अपने पितरों का श्राद्ध (Shraddha) कर ब्राह्मणों और जानवरों को भोजन कराते हैं। इनका किया गया भोजन पितरों को लगता हैं। श्राद्ध में भोग के अनुसार भोजन बनाया जाता हैं। लेकिन श्राद्ध के भोजन से जुड़े भी कुछ नियम हैं जिनका पालन किया जाना जरूरी है अन्यथा श्राद्ध कर्म का फल प्राप्त नहीं होता हैं। आज इस कड़ी में हम आपके लिए उन नियमों की जानकारी लेकर आए हैं जिन्हें जानकर आप पूर्ण विधिपूर्वक श्राद्ध (Shraddha) कर पाएंगे और पितरों का आशीर्वाद मिलेगा। तो आइये जानते हैं इन नियमों के बारे में।
– भोजन के लिए उपस्थित अन्न अत्यंत मधुर, भोजनकर्त्ता की इच्छा के अनुसार तथा अच्छी प्रकार सिद्ध किया हुआ होना चाहिए। पात्रों में भोजन रखकर श्राद्धकर्त्ता को अत्यंत सुंदर एवं मधुरवाणी से कहना चाहिए कि हे महानुभावों! अब आप लोग अपनी इच्छा के अनुसार भोजन करें। फिर क्रोध तथा उतावलेपन को छोड़कर उन्हें भक्ति पूर्वक भोजन परोसते रहना चाहिए।
– ब्राह्मणों को भी दत्तचित्त और मौन होकर प्रसन्न मुख से सुखपूर्वक भोजन कराना चाहिए।
– वायु पुराण के अनुसार, लहसुन, गाजर, प्याज, करम्भ यानी कि दही मिला हुआ आटा या अन्य भोज्य पदार्थ, ऐसी वस्तुएं जो रस और गंध से युक्त हैं श्राद्धकर्म में निषिद्ध हैं।
– मनुस्मृति के अनुसार ब्राह्मण को चाहिए कि वह भोजन के समय कदापि आंसू न गिराए, क्रोध न करें, झूठ न बोलें, पैर से अन्न को न छुएं। आंसू गिराने से श्राद्धान्न भूतों को, क्रोध करने से शत्रुओं को, झूठ बोलने से कुत्तों को, पैर छुआने से राक्षसों को और उछालने से पापियों को प्राप्त होता है।
– मनुस्मृति में बताया गया है कि जब तक अन्न गरम रहता है और ब्राह्मण मौन होकर भोजन करते हैं, भोज्य पदार्थों के गुण नहीं बतलाते तब तक पितर भोजन करते हैं। सिर में पगड़ी बांधकर या दक्षिण की ओर मुंह करके या खड़ाऊं पहनकर जो भोजन किया जाता है उसे राक्षस खा जाते हैं।
– भोजन करते हुए ब्राह्मणों पर चाण्डाल, सुअर, मुर्गा, कुत्ता, रजस्वला स्त्री की दृष्टि नहीं पड़नी चाहिए। होम, दान, ब्राह्मण-भोजन, देवकर्म और पितृकर्म को यदि ये देख लें तो वह कर्म निष्फल हो जाता है।
– मनुस्मृति में बताया गया है कि सूअर के सूंघने से, मुर्गी के पंख की हवा लगने से, कुत्ते के देखने से श्राद्धान्न निष्फल हो जाता है।
– वायु पुराण में बताया गया है कि श्राद्धकर्म में जूठे बचे हुए अन्नादि पदार्थ किसी को नहीं देना चाहिए। ऐसा करने से भोजन पितरों को नहीं मिल पाता है।