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भाजपा के बिछाए जाल में फंसते गए ‘समाजवादी’

Samajwadi

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लखनऊ। देश में जिस प्रकार से भारतीय जनता पार्टी (BJP) के बिछाए जाल में विपक्ष फंस कर चुनाव-दर-चुनाव हारता जा रहा है, उसी प्रकार उप्र में सामजवादी पार्टी (Samajwadi Party) भाजपा प्रवक्ताओं के ट्रैप में फंस गयी है। उपमुख्यमंत्रियों ने सपा की पूर्ववर्ती सरकार पर सवाल उठाए तो इस पर समाजवादी पार्टी के मीडिया सेल के आधिकारिक ट्वीटर अकांउट से बहुत ही कड़े और असंसदीय शब्दों का प्रयोग किया गया। इस पर भाजपा प्रक्ताओं ने सपा को सधे हुए शब्दों में घेरना शुरू किया तो समाजवादी पार्टी मीडिया सेल अपना आपा खोता गया और व्यक्तिगत टिप्पणियां शुरू कर दी। सियासी गलियारे में इसकी आलोचना हो रही है।

दरअसल उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव के बीच विधान सभा में नोक-झोक हुई। उपमुख्यमंत्री ने कहा कि विपक्ष की बातों से ऐसा लग रहा है कि मानो सड़क बनाने के लिए पैसा सैफई से लाए हैं। केशव की यह बात अखिलेश को इतनी चुभी कि वह केशव के पिता तक पहुंच गए। उसके बाद से सपा की तरफ से केशव को लेकर ऐसे शब्दों का चयन किया जाने लगा जिसका जिक्र हम यहां नहीं कर सकते। हां इतना जरूर है कि सपा के मीडिया सेल के ट्वीटर हैण्डल पर जाकर इससे रूबरू हुआ जा सकता है।

केशव पर ऐसे हमलों से नाराज होकर भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी, आलोक अवस्थी और प्रदेश मीडिया सहसम्पर्क प्रमुख नवीन श्रीवास्तव ने मोर्चा संभाल लिया। इसके बाद क्या पूछना, सपाई मीडिया सेल की तरफ से उपमुख्यमंत्री के साथ इन नेताओं पर भी हमला शुरू हुआ। 17 नवम्बर को सपा की तरफ से प्रदेश भाजपा अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी पर ट्वीट आया तो भाजपा के एक अन्य प्रवक्ता मनीष शुक्ला की भी इंट्री हो गयी। अब क्या पूछना था। चार भाजपाईयों ने सधी हुई जुबान में समाजवादी पार्टी मीडिया सेल को जवाब देना शुरू किया। इससे सपाई संतुलन बिगड़ गया। सपा के मीडिया सेल की तरफ से इन (भाजपाईयों) पर व्यक्तिगत हमला किया जाने लगा। भाजपा प्रवक्ताओं के हर ट्वीट में अखिलेश यादव को केन्द्र में रखा गया। भाजपाईयों ने भाषा का खास ख्याल रखा ताकि उन पर कोई सवाल न उठे। यह सिलसिला अब भी जारी है। भाजपा प्रवक्ता मनीष शुक्ला ने तो ट्वीटर पर यह बात कई बार कही है कि अखिलेश यादव के निर्देश पर ही सपा के मीडिया सेल की तरफ से इस प्रकार अभद्र भाषा का इस्तेमाल कर ट्वीट किया जा रहा है। यह जनता देख रही है। इसका जवाब उन्हें जनता देगी।

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वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक रतिभान त्रिपाठी कहते हैं कि समाजवादी होने का अर्थ अराजकता नहीं होता है। जो अपने को तथाकथिक समाजवादी कहते हैं, ऐसी भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं, वह सच्चे समाजवादी नहीं हो सकते। हम कितने भी बड़े नेता हो जाएं, पत्रकार हो जाएं, समाजसेवी हो जाएं, अगर भाषा में संयम और संस्कार नहीं है तो वह स्वीकारने योग्य नहीं है। वह समाज के हित में नहीं है। इस समय सपा में जो कार्यकर्ता हैं, उनमें अधिकांश संस्कारहीन हैं। सपा, भाजपा या कोई और दल हो, जिसकी भी भाषा ऐसी होगी, वह संस्कारहीन ही कहलाएगा।

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