आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi) मनाई जाती है। इस दिन व्रत रखा जाता है। पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। इस दिन भगवान गणेश की विधि-विधान से पूजा की जाती है।
विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi) पर गणेश जी की आराधना करने से जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं। इस दिन मुख्य रूप से भगवान गणेश की पूजा और व्रत किया जाता है। चतुर्थी पर चंद्र देव की पूजा का भी महत्व होता है। गणेश जी की कृपा से सुख-समृद्धि का आगमन होता है।
संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi) शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, आश्विन मास की चतुर्थी 2 अक्टूबर को सुबह 7:36 बजे शुरू होकर अगले दिन (3 अक्टूबर) को सुबह 6:11 बजे समाप्त होगी। उदया तिथि के मुताबिक विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी 2 अक्टूबर को मनाई जाती है।
हर्षण योग
विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi) के दिन हर्षण योग बन रहा है। इस योग में भगवान गणेश की पूजा करने से दोगुना फल मिलता है। हर्षण योग में शुभ कार्य करने चाहिए। हालांकि, पितृ पक्ष में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता, इसलिए हर्षण योग में गणेश जी की विधि-विधान से पूजा कर सकते हैं। सोमवार को विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी है।वहीं, सोमवार का दिन भगवान शिव को भी समर्पित माना जाता है। इस दिन शिव के साथ-साथ उनके पूरे परिवार की पूजा करने से हर मनोकामनाएं पूरी होती है।
संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi) दुर्लभ संयोग
ब्रह्म मुहूर्त – 04:37 मिनट से 05:26 मिनट तक
विजय मुहूर्त – दोपहर 02:29 मिनट से 02:56 मिनट तक
गोधूलि मुहूर्त – शाम 06:06 मिनट से 06:31 मिनट तक
अभिजीत मुहूर्त – 11:44 मिनट से 12:30 मिनट तक
निशिता मुहूर्त – रात्रि 11:47 मिनट से 12:34 मिनट तक
अमृत काल – दोपहर 01:49 मिनट से 15:21 मिनट तक
सूर्योदय और सूर्यास्त का समय
सूर्योदय – सुबह 06 बजकर 14 मिनट पर
सूर्यास्त – शाम 06 बजकर 06 मिनट पर
चतुर्थी (Sankashti Chaturthi) पूजा विधि
संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi) के दिन जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं। इसके बाद भगवान गणेश की विधि-विधान से पूजा करें। भगवान गणेश का अभिषेक कर, उन्हें वस्त्र, जनेऊ, चंदन, लाल फूल, माला आदि चढ़ाएं। गणेश जी को मोदक या लड्डू का भोग लगाएं। पूजा के दौरान ओम गं गणपतये नमो नमः मंत्र का जाप करते रहें। रात के समय चंद्र देव की पूजा जरूर करें। चंद्र देव को दूध या जल में अक्षत और सफेद फूल डालकर अर्घ्य दें।