Site icon 24 GhanteOnline | News in Hindi | Latest हिंदी न्यूज़

ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ सन्यासियों ने किया था पहला प्रतिरोध : प्रो हिमांशु

Prof Himanshu

Prof Himanshu

गोरखपुर। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के आचार्य व पूर्व अध्यक्ष प्रो हिमांशु चतुर्वेदी (Prof Himanshu) ने कहा कि ब्रिटिशर्स के खिलाफ पहला प्रतिरोध सन्यासी प्रतिरोध है। इस प्रतिरोध में नाथ संप्रदाय के संतो-अनुयायियों, दसनामी तथा नागा साधुओं की बड़ी भूमिका रही। इतना ही नहीं 1857 की क्रांति में कमल व रोटी का जो संदेश गांव-गांव पहुंचा, वह 1856 के हरिद्वार कुम्भ में संतों द्वारा ही प्रतिपादित किया गया।

प्रो चतुवेर्दी (Prof Himanshu) गुरुवार अपराह्न महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय, आरोग्यधाम बालापार गोरखपुर के प्रथम स्थापना दिवस (28 अगस्त) के उपलक्ष्य में युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज एवं राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज स्मृति सप्तदिवसीय व्याख्यानमाला के चौथे दिन ‘स्वतंत्रता संग्राम में सन्यासी’ विषय पर विचार व्यक्त कर रहे थे। उन्होंने कहा कि 1767 में ब्रिटिशर्स के खिलाफ पहले प्रतिरोध का संयोजन तमकुहीराज के तत्कालीन स्थानीय जमीदार फतेह बहादुर शाही ने किया था। फतेह बहादुर शाही की सेना में प्रमुख रूप से नाथ पंथ के सन्यासी उनके अनुयायी, दसनामी साधुओं से संबद्ध गोंसाई तथा नागा साधु प्रमुख रूप से शामिल थे। 1803 तक चले इस प्रतिरोध में हजारों की संख्या में साधु-सन्यासी वीरगति को प्राप्त हुए। 1835 में प्रयागराज में प्रयागवाला संत समुदाय ने भी अंग्रेजों के अन्याय के विरुद्ध मोर्चा खोला थाम 1857 की क्रांति की भूमिका भी इसके एक साल पहले हरिद्वार कुम्भ में संतों ने ही तैयार की थी।

स्वाधीनता आंदोलन में गोरक्षपीठ की संरक्षक व मददगार की भूमिका

प्रो चतुर्वेदी (Prof Himanshu) ने कहा कि गोरखपुर सिर्फ साधना उपासना का केंद्र नहीं है बल्कि यह राष्ट्रीयता व सांस्कृतिक पुनर्जागरण का भी प्रकाश स्तंभ है। राष्ट्रीयता की भावना को पोषण देने के लिए गोरखनाथ मंदिर ने स्वाधीनता आंदोलन में क्रांतिकारियों के संरक्षक व मददगार की भूमिका का निर्वहन किया। 1857 से लेकर 1880 तक गोरखनाथ मंदिर के संत महंत गोपालनाथ जी निरंतर क्रांतिकारियों की मदद करते रहे। उनके बाद यह जिम्मेदारी योगीराज गंभीरनाथ जी और महंत दिग्विजयनाथ जी ने उठाई।

ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ ही थे चौरीचौरा जनाक्रोश के चिमटहवा बाबा

प्रो हिमांशु चतुर्वेदी ने बताया कि 4 फरवरी 1922 को हुए ऐतिहासिक चौरीचौरा जनाक्रोश की अगुवाई जिस चिमटहवा बाबा ने की थी, वह कोई और नहीं बल्कि ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज थे। जनाक्रोश में जब उनका नाम आया तो उनके लिए मदन मोहन मालवीय जी खड़े हुए और साक्ष्य के अभाव में उन्हें बरी कर दिया गया। उन्होंने कहा कि भारत के बंटवारे का भी ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी ने विरोध किया था।

अपनी मूल सभ्यता में जीवित भारत एकमात्र देश

प्रो चतुर्वेदी ने बताया कि 1973 में यूनेस्को ने एक स्वतंत्र शोध कराया था जिसमें 43 प्राचीन सभ्यताओं की सूची बनाकर विशद अध्ययन किया गया। इसके निष्कर्ष में पाया गया कि इनमें से 42 सभ्यताओं को म्यूजियम में ही देखा जा सकता है। अपनी मूल सभ्यता में जीवित सिर्फ भारत की सभ्यता पाई गई। उन्होंने कहा कि भारत में महमूद गजनवी के आक्रमण से लेकर अंग्रेजों के आने तक यहां की मूल सभ्यता को समाप्त करने की कोशिश की गई। लेकिन, हमारी भारतीयता मूल रूप में बनी रहे तो इसके पीछे सबसे बड़ी भूमिका संत परंपरा से जन-जन तक समयानुकूल होते रहे सांस्कृतिक व सामाजिक जागरण की रही। संतो द्वारा दिए गए मौलिक दर्शन से ही भारत विश्व गुरु बनने की ओर अग्रसर है। कार्यक्रम की अध्यक्षता महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय के कुलपति मेजर जनरल डॉ अतुल वाजपेयी ने तथा आभार ज्ञापन साध्वीनन्दन पांडेय ने किया।

स्वर्णप्राशन पर रिसर्च को प्रेरित किया सीएम योगी ने

प्रातःकालीन सत्र के व्याख्यान में वरिष्ठ आयुर्वेदिक चिकित्सक वैद्य अभय नारायण तिवारी ने स्वर्णप्राशन विषय पर सारगर्भित जानकारी दी। उन्होंने कहा कि स्वर्णप्राशन षोडश संस्कारों में से एक है। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने को आयुर्वेद का अनुपम उपहार है। उन्होंने बताया कि 2017 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्वर्णप्राशन पर रिसर्च करने के लिए प्रेरित किया। इसके बाद गोरखपुर में स्वर्णप्राशन का अभियान शुरू किया गया। जापानी इंसेफेलाइटिस से प्रभावित रहे जनपद के भड़सार गांव में बच्चों को स्वर्णप्राशन कराने के शानदार परिणाम प्राप्त हुए। वैद्य श्री तिवारी ने बताया कि कई शोध अध्ययनों से आधुनिक मानकों पर स्वर्णप्राशन की उपयोगिता सिद्ध हो चुकी है।

खेतों की उर्वरकता बढ़ाने के लिए हुई है बायोगैस प्लांट की स्थापना

व्याख्यानमाला में महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ प्रदीप कुमार राव, गुरु गोरक्षनाथ कॉलेज ऑफ नर्सिंग की प्राचार्या डॉ डीएस अजीथा गुरु श्रीगोरक्षनाथ इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (आयुर्वेद कॉलेज) के प्रो गणेश बी पाटिल डॉ प्रज्ञा सिंह, डॉ सुमित कुमार, डॉ दीपू मनोहर, डॉ पीयूष वर्षा, डॉ एसएन सिंह, डॉ जसोबेन, डॉ प्रिया नायर आदि की सक्रिय सहभागिता रही।

मंच संचालन वैभव दूबे व जाह्नवी राय ने किया। व्याख्यान का शुभारंभ बीएएमएस की छात्राओं साक्षी सिंह, मंपी राय व दीक्षा द्वारा प्रस्तुत धनवंतरी वंदना एवं सरस्वती वंदना से तथा समापन साक्षी श्रीवास्तवा, मधुलिका सिंह, अंशिका जायसवाल, कहकशा, आसमा खातून के वंदे मातरम गान से हुआ। इस अवसर पर सभी शिक्षक व बीएएमएस प्रथम वर्ष के विद्यार्थी उपस्थित रहे।

शुक्रवार का व्याख्यान

महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय में सप्तदिवसीय व्याख्यानमाला के अंतर्गत 26 अगस्त को अपराह्न 3 बजे से ‘भारतीय सेना में नारी’ विषय पर राष्ट्रीय कैडेट कोर के कमांडर ब्रिगेडियर दीपेंद्र रावत तथा भारतीय वायुसेना की सेवानिवृत्त स्क्वाड्रन लीडर श्रीमती राखी अग्रवाल का व्याख्यान होगा।

Exit mobile version