नई दिल्ली। कोरोना महामारी के कारण वित्तीय संकट में आए कर्जदारों को लोन पुनर्गठन (रिस्ट्रक्चरिंग) कराने में शर्तों और शुल्क की दोहरी मार पड़ रही है। सेबी पंजीकृत निवेश सलाहकार जितेंद्र सोलंकी ने हिन्दुस्तान को बताया कि लोन पुनर्गठन कराना से आम लोगों पर वित्तीय बोझ बढ़ेगा।
अगर संभव हो लोन पुनर्गठन नहीं कराकर ईएमआई का भुगतान भविष्य निधि फंड (पीएफ), सावधि जमा (एफडी) या गोल्ड लोन लेकर कर सकते हैं। आप पीएफ से कर्ज लेकर कम ब्याज पर लोन की ईएमआई चुका सकते हैं। बाद में आप पीएफ में वह पैसा जमा कर सकते हैं।
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लोन पुणर्गठन कराने के लिए बैंकों ने सैलरी स्लिप, इनकम का डिक्लेरेशन, नौकरी जाने के मामले में डिस्चार्ज लेटर, अकाउंट का स्टेटमेंट आदि समेत कई दस्तावेज मांगे हैं।
लोन मोरेटोरियम सुविधा 31 अगस्त खत्म होने के बाद आरबीआई के नए दिशानिर्देशों के अनुसार बैंक खुद नियम और शर्तें बनाकर कर्जदारों को लोन पुनर्गठन के लिए पेशकश कर रहे हैं। हर बैंक अपने अनुसार नियम बना रहे हैं। इससे कर्जदारों को दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। सेंट्रल बैंक की वेबसाइट के अनुसार, वह अपने ग्राहकों से लोन पुनर्गठन के लिए एक हजार से 10 हजार रुपये चार्ज करेगा।
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लोन पुनर्गठन कराने में अतिरिक्त ब्याज लागत के साथ-साथ लोन अवधि के संभावित विस्तार पर भी ध्यान दें। अगर आप नौकरीपेशा हैं और रिटायरमेंट के करीब हैं तो लोन पुनर्गठन विकल्प से लोन चुकाने की अवधि में संभावित विस्तार बेहद जोखिमभरा हो सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि पुनर्गठन लोन की अवधि आपके रिटायरमेंट के बाद के सालों तक जाएगी, जहां आपकी आय के माध्यम कम होंगे। इसलिए फैसला लेने से पहले लोन की बढ़ी हुई अवधि में रिपेमेंट की संभावना का आकलन जरूर कर लें।