हिंदू पंचांग के अनुसार हर महीने में त्रयोदशी तिथि दो बार पड़ती है. पहली शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि और दूसरी कृष्ण पक्ष की. दोनों त्रयोदशी तिथियां भगवान शिव को समर्पित होती हैं. इस तिथि पर भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है. इन्हें प्रदोष (Pradosh) के नाम से भी जाना जाता है. वैशाख माह का पहला प्रदोष (Pradosh) व्रत 28 अप्रैल को था और अब दूसरा प्रदोष व्रत 13 मई को पड़ रहा है. शुक्रवार के दिन त्रयोदशी तिथि होने के कारण इसे शुक्र प्रदोष व्रत कहा जाएगा.
प्रदोष व्रत (Pradosh) का महत्व
हिन्दू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व बताया गया है. इस दिन पूरी निष्ठा से भगवान शिव की अराधना करने से मनुष्य के सारे कष्ट दूर हो सकते हैं. मृत्यु के बाद उसे मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है. पुराणों के अनुसार, एक प्रदोष व्रत करने का फल दो गायों को दान जितना होता है.
इस व्रत के महत्व को वेदों के महाज्ञानी सूतजी ने गंगा नदी के तट पर शौनकादि ऋषियों को बताया था. उन्होंने कहा था कि कलयुग में जब अधर्म का बोलबाला रहेगा. लोग धर्म के रास्ते को छोड़ अन्याय की राह पर जा रहे होंगे. उस समय प्रदोष व्रत एक माध्यम बनेगा जिसके जरिए वो शिव की अराधना कर अपने पापों का प्रायश्चित कर पाएंगे.
प्रदोष व्रत (Pradosh) का शुभ मुहूर्त
वैशाख माह के दूसरे प्रदोष व्रत की पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 07 बजकर 04 मिनट से लेकर रात 09 बजकर 09 मिनट तक रहेगा. इस दिन शाम करीब 3 बजकर 45 मिनट से सिद्धि योग लग रहा है और हस्त नक्षत्र रहेगा. ये दोनों ही मांगलिक एवं शुभ कार्यों के लिए अच्छे माने जाते हैं.
सोम प्रदोष व्रत (Pradosh) की पूजा विधि
किसी भी प्रदोष व्रत में भगवान शिव की पूजा सूर्यास्त से 45 मिनट पहले और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक की जाती है. सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. हल्के लाल या गुलाबी रंग का वस्त्र धारण करना शुभ रहता है. चांदी या तांबे के लोटे से शुद्ध शहद एक धारा के साथ शिवलिंग पर अर्पण करें. उसके बाद शुद्ध जल की धारा से अभिषेक करें तथा ॐ सर्वसिद्धि प्रदाये नमः मन्त्र का 108 बार जाप करें. आज के दिन महामृत्युंजय मंत्र का जाप जरूर करना चाहिए.