इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने प्रदेश की सभी निचली अदालतों को निर्देश दिया कि वे आरोपी व्यक्तियों की जमानत याचिकाओं पर निर्णय करते समय उनके आपराधिक इतिहास पर ध्यान दें और यदि आरोपी का कोई आपराधिक इतिहास है तो उसका संपूर्ण ब्योरा भी दें। इसने कहा कि यदि आरोपी का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है, तो अदालतें इस तथ्य को रिकॉर्ड में रखें।
फिरोजाबाद निवासी उदय प्रताप उर्फ दाऊ ने उच्च न्यायालय के समक्ष दायर अपनी जमानत याचिका में यह दावा किया कि उसका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है, लेकिन राज्य सरकार के वकील ने पुलिस अधिकारियों से प्राप्त सूचना के आधार पर बताया कि आवेदक सात अन्य आपराधिक मामलों में शामिल है।
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अदालत ने इस मामले को बड़ी गंभीरता से लिया। न्यायमूर्ति समित गोपाल ने उदय प्रताप की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि निचली अदालतें जमानत याचिका खारिज करते समय आरोपी के आपराधिक इतिहास के बारे में मौन रहती हैं, लेकिन अपर महाधिवक्ता या प्राथमिकी दर्ज करने वाले व्यक्ति से मिली सूचना से पता चलता है कि आरोपी का पिछला आपराधिक इतिहास है।
अदालत ने कहा कि जब आरोपी के वकील से इस बारे में पूछा जाता है तो यह उसके लिए असमंजस की स्थिति पैदा करता है और साथ ही आरोपी द्वारा आपराधिक इतिहास के बारे में खुलासा नहीं करने से जमानत की अर्जी पर निर्णय करने में बाधा पैदा होती है।
उन्होंने कहा कि यद्यपि आरोपी का आपराधिक इतिहास, उसकी जमानत याचिका पर निर्णय करने में एकमात्र और निर्णायक कारक नहीं है, लेकिन सीआरपीसी की धारा 439 के तहत जमानत के लिए आवेदन पर निर्णय करने में इस पर विचार किया जाना आवश्यक है। अदालत ने महानिबंधक को राज्य के सभी जिला और सत्र न्यायाधीशों को इस आदेश की जानकारी उपलब्ध कराने का निर्देश दिया जो अपने-अपने क्षेत्र में इस आदेश को तत्काल प्रभाव से लागू करना सुनिश्चित करेंगे।