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शब-ए-बराअत कब, इस दिन रखा जाएगा रोजा

Shab-e-Baraat

Shab-e-Baraat

जैसे हिंदू धर्म में पंचांग को देखकर त्योहार मनाए जाते हैं। ठीक वैसे ही इस्लाम धर्म में भी अपना अलग कैलेंडर होता है। इस्लामिक कैलेंडर रमजान की तरह माह-ए-शाबान को भी बेहद पाक और मुबारक महीना माना गया है। शाबान का महीना इस्लामिक कैलेंडर का 8वां महीना होता है, जिसमें शब-ए-बराअत (Shab-e-Baraat) मनाई जाती है।

हर साल शाबान की की 14वीं और 15वीं दरमियान की रात को मुसलमान शब-ए-बराअत (Shab-e-Baraat) मनाते हैं। इसलिए इसे निस्फ़ शाबान भी कहा जाता है। यह मुबारक रात शाबान की 14वीं तारीख को सूरज ढलने से शुरू होती है और शाबान की 15वीं तारीख को सुबह खत्म हो जाती है। इस दिन लोग अल्लाह की इबादत करते हैं और अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं।

ऐसा कहते हैं कि शब-ए-बराअत (Shab-e-Baraat) की रात को गई इबादत का बहुत ज्यादा सवाब मिलता है और हर गुनाह माफ हो जाता है। इस साल शब-ए-बराअत की तारीख को लेकर कंफ्यूजन बनी हुई है। ऐसे में आपका यह कंफ्यूजन दूर करते हुए आपको बताते हैं कि शब-ए-बराअत कब मनाई जाएगी।

शब ए बराअत (Shab-e-Baraat) 2025 इस्लामिक कैलेंडर

इस साल शब-ए-बराअत (Shab-e-Baraat) 13 फरवरी 2025 की रात को होने की उम्मीद है। मौलाना मुफ्ती सलाऊद्दीन ने बताया कि शब-ए-बराअत 13 की रात को मनाई जाएगी यानी 13 की रात को शब-ए-बराअत की इबादत की जाएगी और 14 तारीख को शब-ए-बराअत का रोज़ा रखा जाएगा। हालांकि, सटीक तारीख शाबान, 1446 के चांद के दिखने पर निर्भर है।

शब-ए-बराअत (Shab-e-Baraat) क्यों मनाई जाती है?

शब-ए-बराअत (Shab-e-Baraat) की रात को मग़फिरत की रात या गुनाहों से बरी होने की रात कहा जाता है। शब-ए-बराअत की रात अल्लाह तआला इंसान के पिछले आमालों को ध्यान में रखकर उसके आने वाले सालों की किस्मत लिखता है। इस रात में हर उस इंसान का रिकॉर्ड बनाया जाता है जो पैदा होगा और जो इस साल मर जाएगा।

इस रात की इतनी ज्यादा फज़ीलत होने की वजह से यग इस्लाम की सबसे मुबारक और पाक रातों में से एक है। शब-ए-बराअत की नमाज रोजाना की नमाज से अलग नहीं होती है। लेकिन बहुत से लोग शाबान की 15वीं रात को सलातुत्तसबीह नमाज पढ़ते हैं, जिसका तरीका आम नमाज से थोड़ा अलग होता है।

शब-ए-बराअत (Shab-e-Baraat) का रोजा क्यों रखा जाता है?

शब-ए बराअत की रात मुसलमान नमाज पढ़ते हैं और अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं। शब-ए-बराअत के दिन कई मुस्लिम रोजा भी रखते हैं लेकिन इस दिन रोजा रखना जरूरी नहीं माना गया है। शब-ए-बराअत का रोजा नफ्ली रोजा होता है यानी इसे रखना न रखना आपके ऊपर निर्भर करता है।

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