धर्म डेस्क। प्रदोष व्रत भगवान शिव की आराधना के लिए रखा जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रदोष व्रत प्रत्येक माह में दो बार आता है। यह व्रत हर माह में शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है। मार्गशीर्ष माह में कृष्ण पक्ष का प्रदोष व्रत 12 दिसंबर शनिवार को रखा जाएगा। शनिवार के दिन पड़ने के कारण इसे शनि प्रदोष कहा जाएगा। आइए जानते हैं प्रदोष व्रत का महत्व और पूजा विधि…
प्रदोष व्रत पूजा विधि
प्रदोष व्रत करने के लिए जल्दी सुबह उठकर सबसे पहले स्नान करें और भगवान शिव को जल चढ़ाकर भगवान शिव का मंत्र जपें। इसके बाद पूरे दिन निराहार रहते हुए प्रदोषकाल में भगवान शिव को शमी, बेल पत्र, कनेर, धतूरा, चावल, फूल, धूप, दीप, फल, पान, सुपारी आदि चढ़ाएं।
प्रदोष व्रत का धार्मिक महत्व
प्रदोष व्रत भगवान शिव के साथ चंद्रदेव से भी जुड़ा है। मान्यता है कि प्रदोष का व्रत सबसे पहले चंद्रदेव ने ही किया था। माना जाता है शाप के कारण चंद्र देव को क्षय रोग हो गया था। तब उन्होंने हर माह में आने वाली त्रयोदशी तिथि पर भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत रखना आरंभ किया था। जिसके शुभ प्रभाव से चंद्रदेव को क्षय रोग से मुक्ति मिली थी।
पौराणिक मान्यता के अनुसार प्रदोष व्रत करने वाले साधक पर सदैव भगवान शिव की कृपा बनी रहती है और उसका दु:ख दारिद्रता दूर होती है और कर्ज से मुक्ति मिलती है। प्रदोष व्रत में शिव संग शक्ति यानी माता पार्वती की पूजा की जाती है, जो साधक के जीवन में आने वाली सभी बाधाओं को दूर करते हुए उसका कल्याण करती हैं।
प्रदोष व्रत के लाभ
प्रदोष व्रत अलग-अलग कामनाओं की पूर्ति के साथ किया जाता है। अगर किसी को सुख सौभाग्य और धन लाभ चाहिए तो हर माह की त्रयोदशी तिथि पर शुक्रवार के दिन व्रत रखना शुभ होता है। लंबी आयु की कामना के लिए रविवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत रखना चाहिए। वहीं अगर आपके मन में संतान प्राप्ति की इच्छा है तो शनिवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष के दिन उपवास रखना शुभ फलदायक रहता है। कर्जों से मुक्ति के लिए सोमवार प्रदोष व्रत रखना श्रेष्ठ होता है।