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सीजफायर के बाद शेयर बाजार में धमाल, Sensex चढ़ा 2243 पॉइंट

Share Market

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भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम की सहमति से क्षेत्र में तनाव कम होने से उत्साहित निवेशकों की स्थानीय स्तर पर हुई चौतरफा दमदार लिवाली की बदौलत आज शेयर बाजार (Share Market) में करीब तीन प्रतिशत की तूफानी तेजी रही।

बीएसई का तीस शेयरों वाला संवेदी सूचकांक सेंसेक्स शुरुआती कारोबार में 2269.18 अंक अर्थात 2.86 प्रतिशत की छलांग लगाकर करीब पांच महीने बाद 81 हजार अंक के मनोवैज्ञानिक स्तर के पार 81723.65 अंक पर पहुंच गया। यह 16 दिसंबर 2024 को 81,748.57 अंक पर रहा था। इसी तरह नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) का निफ्टी 691.55 अंक यानी 2.88 प्रतिशत उछलकर 24699.55 अंक पर रहा।

कारोबार की शुरुआत में सेंसेक्स 1349 अंक तेजी के साथ 80,803.80 अंक पर खुला और खबर लिखे जाने तक 81,830.65 अंक के उच्चतम जबकि 80,651.07 अंक के निचले स्तर पर रहा। इसी तरह निफ्टी भी 412 अंक की मजबूती के साथ 24,420.10 अंक पर खुला और 24,737.80 अंक के उच्चतम जबकि 24,378.85 अंक के निचले स्तर पर रहा।

विश्लेषकों के अनुसार, हाल के दिनों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई) में विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की निरंतर खरीददारी प्रमुख पहचान बनकर उभरी है। 08 मई को समाप्त हुए 16 कारोबारी सत्रों में एफआईआई ने एक्सचेंजों के माध्यम से कुल 48,533 करोड़ रुपये की इक्विटी खरीदी। हालांकि, 09 मई को भारत-पाक तनाव के चलते 3,798 करोड़ रुपये की बिक्री दर्ज की गई। लेकिन, अब जबकि युद्धविराम की घोषणा हो चुकी है तो बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि एफआईआई द्वारा भारत में इक्विटी निवेश की गति एक बार फिर तेज हो सकती है।

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गौरतलब है कि वर्ष 2025 की शुरुआत में एफआईआई का रुख बिक्री की ओर था। जनवरी में डॉलर सूचकांक के 111 तक पहुंचने के बाद उन्होंने 78,027 करोड़ रुपये की भारी बिकवाली की। हालांकि मार्च के बाद से बिकवाली की तीव्रता में कमी आई और अप्रैल में एफआईआई 4,243 करोड़ रुपये शुद्ध लिवाल रहे, जिससे एक सकारात्मक संकेत मिला।

विश्लेषकों का कहना है कि वैश्विक स्तर पर डॉलर में गिरावट और अमेरिका तथा चीन की अर्थव्यवस्थाओं में मंदी जैसे कारकों के साथ-साथ घरेलू स्तर पर उच्च सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि, घटती महंगाई और ब्याज दरें भारतीय इक्विटी बाजार में एफआईआई प्रवाह को बढ़ावा देने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं। इसके विपरीत ऋण प्रवाह में कमी देखी जा रही है और निकट भविष्य में इसके कम रहने की संभावना जताई जा रही है।

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