होली के बाद मां दुर्गा के ही एक रूप शीतला माता (sheetla ashtami) की पूजापाठ से जुड़ा यह त्योहार काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। बच्चों को बीमारियों से दूर रखने के लिए और उनकी खुशहाली के लिए इस त्योहार को मनाने की परंपरा बरसों से चली आ रही है। कुछ स्थानों पर शीतला अष्टमी (Sheetal Ashtami ) को बासौड़ा भी कहा जाता है। इस दिन माता शीतला की बासी भोजन का भोग लगाने की परंपरा है और स्वयं भी प्रसाद के रूप में बासी भोजन ही करना होता है। इस वर्ष शीतलाष्टमी 25 मार्च, शुक्रवार को पड़ रही है।
पूजा का महत्व
भगवती शीतला की पूजा-अर्चना का विधान भी अनोखा होता है। शीतला अष्टमी के एक दिन पूर्व उन्हें भोग लगाने के लिए विभिन्न प्रकार के पकवान तैयार किए जाते हैं।अष्टमी के दिन बासी पकवान ही देवी को नैवेद्ध के रूप में समर्पित किए जाते हैं। लोकमान्यता के अनुसार आज भी अष्टमी के दिन कई घरों में चूल्हा नहीं जलाया जाता है और सभी भक्त ख़ुशी-ख़ुशी प्रसाद के रूप में बासी भोजन का ही आनंद लेते हैं। इसके पीछे तर्क यह है कि इस समय से ही बसंत की विदाई होती है और ग्रीष्म का आगमन होता है,इसलिए अब यहाँ से आगे हमें बासी भोजन से परहेज करना चाहिए।
शीतला माता के पूजन के बाद उस जल से आँखें धोई जाती हैं। यह परंपरा गर्मियों में आँखों का ध्यान रखने की हिदायत का संकेत है। माता का पूजन करने के बाद हल्दी का तिलक लगाया जाता है, घरों के मुख्यद्वार पर सुख-शांति एवं मंगल कामना हेतु हल्दी के स्वास्तिक बनाए जाते हैं। हल्दी का पीला रंग मन को प्रसन्नता देकर सकारात्मकता को बढ़ाता है, भवन के वास्तु दोषों का निवारण होता है।
कुछ माताएं बच्चों की दीर्घायु और उन्हें रोगमुक्त रखने के लिए इस दिन व्रत भी रखती हैं। स्कंद पुराण में शीतला माता को चेचक, खसरा और हैजा जैसी संक्रामक बीमारियों से बचाने वाली देवी के रूप में माना गया है। कहते हैं कि इस दिन बासी भोजन का भोग लगाने और उसे अपने बच्चों के ऊपर से उतारकर काले कुत्ते को खिलाने से बच्चे इन मौसमी बीमारियों से दूर रहते हैं।
मां की उपासना मंत्र
स्कंद पुराण में वर्णित माँ का यह पौराणिक मंत्र ‘ॐ ह्रीं श्रीं शीतलायै नमः‘ भी प्राणियों को सभी संकटों से मुक्ति दिलाकर समाज में मान सम्मान पद एवं गरिमा की वृद्धि कराता है। जो भी भक्त शीतला माँ की भक्तिभाव से आराधना करते हैं माँ उन पर अनुग्रह करती हुई उनके घर-परिवार की सभी विपत्तिओं से रक्षा करती हैं। माँ का ध्यान करते हुए शास्त्र कहते हैं कि, ‘वन्देఽहंशीतलांदेवीं रासभस्थांदिगम्बराम्।मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम् || अर्थात- मैं गर्दभ पर विराजमान, दिगम्बरा, हाथ में झाडू तथा कलश धारण करने वाली,सूप से अलंकृत मस्तक वाली भगवती शीतला की वंदना करता हूं।
इस वंदना मंत्र से यह पूर्णत: स्पष्ट हो जाता है कि ये स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी हैं।ऋषि-मुनि-योगी भी इनका स्तवन करते हुए कहते हैं कि ”शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत्पिता।शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै नमो नमः अर्थात- हे माँ शीतला ! आप ही इस संसार की आदि माता हैं, आप ही पिता हैं और आप ही इस चराचर जगत को धारण करतीं हैं अतः आप को बारम्बार नमस्कार है।
शीतला अष्टमी का शुभ मुहूर्त
चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि प्रारंभ : 25 मार्च, 2022 को आधी रात के बाद 2 बजकर 39 मिनट से शुरू
चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि समापन : 26 मार्च, 2022 को दोपहर 12 बजकर 34 मिनट पर समापन