दिल्ली की तीन बार मुख्यमंत्री और कांग्रेस की सीनियर नेता के तौर पर दुनिया को 2019 में अलविदा कहने वाली शीला दीक्षित का जीवन उलटबांसियों से भरा रहा। राजनीतिक जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखने वाली दीक्षित को कुछ जानकार दिल्ली की बेताज मल्लिका कहते रहे तो कुछ दिल्ली को टीनेजर की तरह चाहने वाली नेता मानते रहे। 1998 से 2013 तक दिल्ली की सीएम रहते हुए दीक्षित ने अनोखा कीर्तिमान यह भी रचा था कि भारत के किसी भी राज्य में सबसे लंबे समय तक सीएम रहने वाली महिला वही रही थीं।
शीला दीक्षित के राजनीतिक जीवन में कई मोड़ अहम रहे, जिनमें से दो मोड़ खास तौर पर याद आते हैं। एक 1990 में जब उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव सरकार थी, तब महिलाओं के खिलाफ अत्याचारों को लेकर दीक्षित ने आंदोलन छेड़ा था। तब उन्हें 82 अन्य के साथ 23 दिनों के लिए जेल में डाल दिया गया था। उलटबांसी थी कि 2017 में अखिलेश यादव को सीएम के चेहरे के तौर पर प्रोजेक्ट किए जाते वक्त दीक्षित ने उनके समर्थन में सीएम पद की दावेदारी छोड़ने का ऐलान कर दिया था।
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इसी तरह, दूसरी उलटबांसी भी आपको याद आ गई होगी। 1990 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों के विरोध में आंदोलन छेड़ने वाली दीक्षित के कार्यकाल में 2012 में दिल्ली का बेहद चर्चित गैंगरेप कांड हुआ। इस कांड के बाद खड़े हुए आंदोलन के कारण ही दीक्षित के हाथों से सत्ता चली गई थी। एक नज़र में दीक्षित की बेहद दिलचस्प राजनीतिक यात्रा देखिए।
1962 तक : 31 मार्च 1938 को पंजाब के कपूरथला में कपूर परिवार में जन्मीं शीला ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से इतिहास में एमए किया था। 1962 में उनकी शादी विनोद दीक्षित के साथ हुई थी, जो स्वतंत्रता सेनानी और पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल उमाशंकर दीक्षित के बेटे थे और आईएएस अफसर। ससुर उमाशंकर दीक्षित की छत्रछाया में ही शीला का राजनीतिक सफर एक तरह से शुरू भी हुआ और परवान भी चढ़ा।
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1989-1998 तक : उत्तर प्रदेश के कन्नौज संसदीय क्षेत्र से 1984 में संसद पहुंच चुकीं दीक्षित ने संयुक्त राष्ट्र के महिलाओं को लेकर कमीशन में भारत का प्रतिनिधित्व किया। यही नहीं, 1986 से 89 तक केंद्रीय राज्य मंत्री के तौर पर भूमिका निभाई। 1990 के आंदोलन के बाद बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम दीक्षित के जीवन में तब हुआ, जब 1998 के संसदीय चुनाव में पूर्व दिल्ली क्षेत्र से भाजपा के लालबिहारी तिवारी के हाथों उन्हें शिकस्त मिली। इसके बाद कांग्रेस ने उन्हें राज्य की राजनीति का चेहरा बनाया और गोल मार्केट सीट से उन्होंने विधानसभा चुनाव जीता और 1998 में ही दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं।
2009 और 2010 : पहले तो दिल्ली के लोकायुक्त द्वारा भ्रष्टाचार के मामले में जांच के केस ने दीक्षित के खिलाफ काफी सुर्खियां पाई थीं, लेकिन लोकायुक्त ने उन्हें बरी कर दिया था. 2009 में ही हत्या के दोषी करार दिए गए मनु शर्मा को पैरोल दिए जाने के विवाद में दीक्षित घिरी थीं, जिसमें हाईकोर्ट ने भी उनकी भूमिका की आलोचना की थी। इसके बाद 2010 में कॉमनवेल्थ गेम्स के आयोजन के लिए दिल्ली की सूरत बदलने वाले कई कदम उठाए गए थे, लेकिन बाद में दीक्षित पर इसमें भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे।
2019 तक : साल 2012 में दिल्ली का चर्चित निर्भया कांड हुआ, जिससे दीक्षित सरकार के खिलाफ एक लहर बनी। वहीं, भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अन्ना हज़ारे के आंदोलन के चलते वैकल्पिक राजनीति खड़ी हो रही थी। विधानसभा चुनाव में दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस हारी और अरविंद केजरीवाल की नई सरकार 28 दिसंबर 2013 को बनी। 2019 में एक इंटरव्यू में दीक्षित ने निर्भया केस को अपने राजनीतिक उतार का मोड़ बताते हुए कहा था अब भी ऐसे कई कांड होते हैं। आप ज़्यादातर रेप की घटनाओं को नज़रअंदाज़ करते हैं। वो सिर्फ एक खबर की तरह होकर रह जाते हैं, लेकिन एक खबर को राजनीतिक स्कैंडल बना दिया गया।