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मोदी मंत्रिमंडल का चौंकाने वाला विस्तार

modi cabinet

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सियाराम पांडेय ‘शांत’

विस्तार और फेरबदल दिखता भी है और देश पर अपना प्रभाव भी छोड़ता है। फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो कोई भी काम ऐसा नहीं करते जो चौंकाने वाला न हो। अनुभव और जोश को साथ लेकर चलने वाला न हो। प्रधानमंत्री के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल के मंत्रिमंडल विस्तार में भी उनकी यह छवि प्रमुखता से उभर कर सामने आई है। यह विस्तार विस्मयकारी तो रहा ही है, कई राजनीतिक कयासों को धता बताने वाला भी रहा है। इसमें सामाजिक, राजनीतिक, जातीय

समीकरणों को तो संतुलित रखने का प्रयास हुआ ही है,क्षेत्रीय और राष्ट्रीय संतुलन का भी पूरा ध्यान रखा गया है। वरुण गांधी के नाम की चर्चा खूब हुए लेकिन विस्तार प्रक्रिया में उनका चेहरा सिरे से गायब मिला। चिराग पासवान की धमकी के बाद भी राम बिलास पासवान के भाई पशुपति कुमार पारस केंद्रीय मंत्री बने।

वर्ष 2019 में प्रधानमंत्री समेत 58 मंत्रियों ने पद और गोपनीयता की शपथ ली थी। किसे पता था कि उनके मंत्रिमंडल का दूसरा विस्तार शीर्ष मंत्रियों के लिए भी किसी झटके जैसा ही होगा। प्रकाश जावड़ेकर, रविशंकर प्रसाद ,डॉ. हषवर्धन, रमेश पोखरियाल निशंक, सदानंद गौड़ा,संतोष गंगवार, देबोश्री चौधरी,राव साहेब दानवे पाटिल, संजय धोत्रे, बाबुल सुप्रियो, रतनलाल कटारिया और प्रताप सारंगी जैसे कद्दावर मंत्रियों के इस्तीफे तो यही बताते हैं कि मोदी सरकार सुधार—परिष्कार के धरातल पर कभी समझौते नहीं करती। केंद्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार से एक दिन पूर्व ही आठ राज्यों के राज्यपाल बदले गए हैं। थावरचंद गहलोत जैसे दलित नेता और केंद्रीय मंत्री को कर्नाटक का राज्यपाल बना दिया गया था। थावर चंद गहलोत ने मंत्री पद और राज्यसभा सदस्य पद से इस्तीफा दे दिया है। सवाल यह उठता है कि जब राज्यपाल बदले या हटाए जा सकते हैं, तो मंत्री क्यों नहीं?

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मंत्रियों के इस्तीफे की वजह जो भी बताई जाए लेकिन जनता के बीच संदेश यही गया है कि नरेंद्र मोदी की सरकार में काम में कोताही की कोई निर्जरा नहीं है। रामबिलास पासवान और सारंगी जैसे मंत्रियों के कोरोनाकाल में निधन के बाद यह जरूरी हो गया था कि मंत्रिमंडल का विस्तार हो। इस निमित्त प्रधानमंत्री ने जिस तरह देश भर का राजनीतिक समीकरण साधने की कोशिश की है, वहीं वर्ष 2022 में जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, उनका  विशेष ध्यान रखा है। उत्तर प्रदेश से सात नए मंत्रियों का चयन इसी ओर इशारा करता है। इसमें  प्रधानमंत्री ने ब्राह्मणों, दलितों, पिछड़ों और महिलाओं को साधने का हर संभव प्रयास किया है। साथ ही यह संदेश देने की भी कोशिश की है कि वह साझ तो बूझ क्या की परंपरा में यकीन रखती है। साझे की सुई सेंगरे पर चले, यह बात उन्हें कतई मंजूर नहीं है। वह दोस्ती और दुश्मनी दोनों ही में सम्मान का भाव देखती है।

शिवसेना से भाजपा में आए नारायण राणे और कांग्रेस से भाजपा में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया को केंद्रीय मंत्री बनाकर उन्होंने प्रतिपक्ष को यह संदेश दिया है कि भाजपा हाथ ही नहीं पकड़ती, संबंध निभाना भी जानती है। असम में हिमंत विस्व सरमा को मुख्यमंत्री बनाकर उसने इस बात का संदेश दे भी दिया है। यह सच है कि सर्बानंद सोनोवाल ने असम में भाजपा की जड़ें जमाने का काम किया था, ऐसा करने से उनका मनोबल न गिरे, इसलिए उन्हें कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ दिलाकर मोदी सरकार ने बड़ा काम किया है। जिन मंत्रियों ने अपने विभाग में अच्छा काम किया है, उन्हें प्रोन्नत करने का भी काम किया है। जिन 43 लोगों को मंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई है, उनमें नारायण तातु राणे, सर्बानंद सोनोवाल,डॉ. वीरेंद्र कुमार, ज्योतिरादित्य सिंधिया, आरपी सिंह, अश्विनी वैष्णव, पशुपति कुमार पारस, किरेन रिजीजू, आर के सिंह, हरदीपसिंह पुरी, मनसुख मांडविया, भूपेंद्र यादव, पुरुषोत्तम रूपाला, जी. किशन रेड्डी, अनुराग सिंह ठाकुर, अनुप्रिया पटेल,सत्यपाल सिंह बघेल, राजीव चंद्रशेखर,शोभा कारंदलजे, भानुप्रताप वर्मा, श्रीमती दर्शना विक्रम जरदोश, श्रीमती मीनाक्षी लेखी, श्रीमती अन्नपूर्णा देवी, ए. नारायणस्वामी, कौशलकिशोर, अजय भट्ट, बनवारी लाल वर्मा, अजय कुमार, चौहान देवु सिंह,भगवंथ खुबा,कपिल मोरेश्वर पाटिल , सुश्री प्रतिमा भौमिक,डॉ. सुभाष सरकार,भागवत कृष्ण राव कारद, राजकुमार रंजन सिंह, डॉ. भारती प्रवीन पवार,विशेष्वर ताडु, शंतनु ठाकुर, डॉ. मुंजापरा महेंद्रभाई, जॉन बरला,डॉ. एल. मुरगन और निशीथ प्रमाणिक शामिल हैं। इस विस्तार में उत्तर प्रदेश और बंगाल को विशेष रूप से फोकस किया गया है। कर्नाटक, अरुणाचल प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, आंध्रप्रदेश, पंजाब आदि राज्यों को भी इस मंत्रिमंडल विस्तार में प्रतिनिधित्व साफ नजर आता है। उत्तर प्रदेश में पंजाबी, दलित, पिछड़ों को तो साधने का प्रयास हुआ ही है, मंत्रिमंडल विस्तार में 5 महिलाओं को बतौर मंत्री शपथ दिलाकर नरेंद्र मोदी सरकार ने आधी आबादी को भी रिझाने की कोशिश की है।

दूसरी बार मोदी मंत्रिमंडल का हिस्सा बनी अपना दल (एस) अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल

2003 के संविधान संशोधन में यह तय हुआ था कि केंद्र में मंत्रियों को संख्या  15 प्रतिशत यानी 81 के निर्धारित मानक से अधिक नहीं होगी। प्रधानमंत्री ने विस्तार के क्रम में  इस बात का पूरा ध्यान रखा है। वर्ष  2014 में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने थे तो उनके मंत्रिमंडल में केवल महज 45 मंत्री शामिल थे। तब प्रधानमंत्री ने मिनिमम गवर्नमेंट— मैक्जिमम गवर्नेंस का नारा दिया था।यह और बात है कि तीन साल बाद ही उन्हें मंत्रियों की संख्या बढ़ाकर 76  करनी पड़ी थी।

गौरतलब है कि 2019 में जब नई सरकार का गठन हुआ तो उस वक्त प्रधानमंत्री समेत कुल 58 मंत्रियों ने शपथ ली थी। अकाली दल की हरसिमरत कौर बादल, शिवसेना के अरविंद सावंत मंत्री पद छोड़ चुके हैं। दोनों ही पार्टियां अब राजग का अंग नहीं हैं। वहीं, लोजपा के रामविलास पासवान के निधन के बाद उनकी जगह भी कोई मंत्री नहीं बनाया गया। सुरेश अंगड़ी का कोरोना से निधन हो गया था। मंगलवार को कैबिनेट मंत्री थावरचंद गहलोत को राज्यपाल बनाया गया। गहलोत के मंत्री पद छोड़ने के बाद कैबिनेट में कुल 53 मंत्री रह गए थे। 12 और मंत्रियों ने पद छोड़कर विस्तार की राह आसान कर दी और केंद्र सरकार जंबो जेट मंत्रिमंडल के गठन से बच गई।

1990 के दशक के आखिर के वर्षों में और 2000 के शुरुआती सालों में केंद्र और कई राज्यों में इस तरह के जम्बो मंत्रिमंडल हुआ करता था।इसकी बड़ी वजह गठबंधन सरकारों का होना भी हुआ करती थी। वर्ष 2003 में 15 प्रतिशत  वाला संविधान संशोधन किया गया उस वक्त कई राज्यों में जम्बो  मंत्रिमंडल वाली सरकारें चल रही थीं।

उत्तर प्रदेश की विधानसभा में सदस्यों की संख्या 403 थी। उस वक्त समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे। यादव की सरकार में 98 मंत्री थे। यानी कुल सदस्य संख्या का करीब  एक चौथाई। यूपी में जम्बो कैबिनेट बनने की शुरुआत 1997 में कल्याण सिंह सरकार से शुरू हुई थी। उस वक्त कल्याण सिंह की कैबिनेट में 93 मंत्री थे। उनके बाद राम प्रकाश गुप्ता सरकार में भी 91 मंत्री थे। राजनाथ सिंह की सरकार में भी 86 मंत्री थे। मायावती की सरकार में 87 मंत्री थे।  बिहार में राबड़ी देवी की सरकार में 82 मंत्री थे। महाराष्ट्र की सुशील कुमार शिंदे सरकार में 69 मंत्री थे जबकि केंद्र में तत्कालीन अटल सरकार में 80 मंत्री थे।1 जनवरी 2004 को नया संविधान संशोधन लागू होने के बाद 2009 के लोकसभा चुनाव के बाद मनमोहन सिंह की सरकार में 79 मंत्री थे।

मौजूदा मंत्रिमंडल विस्तार के जरिये सरकार ने देश को कई संदेश देने की कोशिश की है और एक तरह से ऐसा कर उसने विपक्ष की रणनीति को झटका भी दिया है। कुछ बड़े मंत्रियों के इस्तीफे पर विपक्ष मोदी सरकार को घेर भी सकता है लेकिन जो मंत्रिमंडल में फेरबदल और विस्तार की मौजूदा कवायद देश की राजनीति को नई दिशा देगी, इस बात को नकारा नहीं जा सकता।

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