धर्म डेस्क। पितृपक्ष चल रहा है। इन दिनों लोग पितरों का श्राद्ध करते हैं। वैसे तो परिवार के पुरुष ही श्राद्धकर्म करे हैं लेकिन अगर परिवार में पुरुष न हों तो महिलाएं भी श्राद्धकर्म कर सकती हैं। इसका वर्णन धर्म सिंधु ग्रंथ के साथ-साथ मनुस्मृति, मार्कंडेय पुराण और गरुड़ पुराण में भी किया गया है।
इन दिनों महिलाओं को तर्पण और पिंड दान करने का अधिकार प्राप्त है। इन पुराणों के अलावा वाल्मिकी रामायण में भी बताया गया है कि राजा दशरथ के लिए सीताजी ने पिंडदान किया था। ऐसा इसलिए है जिससे व्यवस्था बनी रहे और लोग अपने पितरों को न भूलें। आइए इस बारे में ज्योतिषाचार्य पं. गणेश प्रसाद मिश्र से विस्तार से जानते हैं।
मार्कंडेय पुराण और गरुड़ पुराण:
मार्कंडेय पुराण में बताया गया है कि अगर किसी व्यक्ति का पुत्र नहीं है तो उसकी पत्नी भी श्राद्ध कर्म कर सकती है। यह श्राद्ध बिना मंत्रों के किया जाता है। वहीं, अगर पत्नी भी न हो तो कुल के किसी भी व्यक्ति द्वारा श्राद्ध किया जा सकता है। अन्य ग्रंथों में बताया गया है कि एक बहू भी सास का पिंडदान कर सकती है। ऐसा तब होता है जब परिवार और कुल में कोई पुरुष न हो।
गरुड़ पुराण में बताया गया है कि अगर घर में कोई बुजुर्ग महिला है तो श्राद्ध कर्म पर परिवार में मौजूद युवा महिला से पहले अधिकार बुजुर्ग महिला का होगा। इस पुराण के ग्यारहवें अध्याय में बताया गया है कि ज्येष्ठ पुत्र या कनिष्ठ पुत्र के अभाव में बहू, पत्नी को श्राद्ध करने का अधिकार होता है। यह अधिकार ज्येष्ठ पुत्री या एकमात्र पुत्री का भी होता है। वहीं, अगर व्यक्ति की पत्नी भी जीवित न हो तो सगा भाई अथवा भतीजा, भानजा, नाती, पोता आदि कोई भी श्राद्ध कर्म संपन्न कर सकता है। अगर उपरोक्त सभी का अभाव हो तो शिष्य, मित्र, कोई भी रिश्तेदार अथवा कुल पुरोहित मृतक का श्राद्ध कर सकता है।
विवाहित महिलाओं कर सकती हैं श्राद्ध कर्म:
सफेद या पीले कपड़े पहनकर महिलाएं श्राद्ध कर सकती हैं। केवल विवाहित महिलाओं को ही श्राद्ध करने का अधिकार होता है। श्राद्ध करते समय महिलाओं को कुश और जल के साथ तर्पण नहीं करना चाहिए। इसके अलावा काले तिल से भी तर्पण नहीं करना चाहिए। यह भी महिलाओं का अधिकार नहीं होता है।
जब सीताजी ने किया था राजा दशरथ का पिंडदान:
वनवास के दौरान जब श्रीराम लक्ष्मण और माता सीता, राजा दशरथ का श्राद्ध करने पितृ पक्ष के दौरान पहुंचे तो उन्हें श्राद्ध के लिए कुछ सामग्री लेने जाना पड़ा। उसी दौरान माता सीता को राजा दशरथ के दर्शन हुए। राजा दशरथ ने माता सीता से पिंड दान की कामना की। फिर माता सीता ने फल्गु नदी, वटवृक्ष, केतकी फूल और गाय को साक्षी मानकर बालू का पिंड बनाकर फल्गु नदी के किनारे श्री दशरथ जी महाराज का पिंडदान कर दिया। इससे सीता जी को आशीर्वाद मिला और राजा दशरथ की आत्म प्रसन्न हुई।