कानपुर के 1984 सिख दंगा की जांच कर रही एसआईटी ने फोरेंसिक टीम के साथ 36 साल बाद कानपुर के गोविंद नगर थानाक्षेत्र के दबौली में एक बंद मकान से खून के धब्बे और शव जलाने का साक्ष्य जुटा लिया है। दंगे में अपनों के मारे जाने के बाद से परिवार पंजाब के जालांधर में शिफ्ट हो गया था।
एसआईटी टीम के अधिकारियों ने बताया कि एक नवंबर 1984 को गोविंद नगर इलाके में सिख दंगे के दौरान कारोबारी तेज प्रताप सिंह (45) और बेटे सत्यवीर सिंह (22) की घर में हत्या करने के बाद शव जला दिया गया था। इस मामले में गोविंद नगर थाने में मुकदमा पंजीकृत है। पूछताछ में चरन जीत ने बताया कि गोविंद नगर थाने में पिता और भाई के हत्या की एफआईआर दर्ज कराई गई थी। इसके साथ आज भी दबौली एल-ब्लॉक मकान संख्या-28 आज भी बंद पड़े मकान की जांच की गई है। इसके बाद एसआईटी ने घटना के चश्मदीद चरणजीत सिंह की मौजूदगी में फोरेंसिक टीम के साथ दबौली स्थित पुराने घर में दाखिल हुई। एसआईटी के एसएसपी बालेंदु भूषण ने बताया कि फोरेंसिक टीम को मौके से खून के धब्बे और हत्या के बाद शव जलाने का साक्ष्य मिला है। इसके बाद एसआईटी ने तेज सिंह के जीवित बेटे चरणजीत सिंह का कोर्ट में बयान भी करा दिया।
चरणजीत ने बताया कि दंगे में पिता और भाई की नृशंस हत्या के बाद वह अपनी पत्नी और परिवार के साथ पंजाब के जालंधर में शिफ्ट हो गए हैं। इसके साथ ही दिल्ली में भी एक मकान बनाया है। तेज सिंह की पत्नी का कुछ साल पहले निधन हो गया था।
एसआईटी अधिकारियों के मुताबिक नवंबर 1984 को, भीड़ ने तेज सिंह के घर में घुसकर उन्हें और सतपाल को पकड़ लिया, क्योंकि परिवार के अन्य सदस्य छिप गए थे। दोनों की हत्या करने के बाद घर में लूटपाट की थी। इसके बाद मकान को फूंक दिया था।