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सीता नवमी : कन्या दान और चारधाम तीर्थ के बराबर है यह व्रत, जानें पूजा-विधि

Sita Navami

Sita Navami

वैशाख महीने के शुक्लपक्ष के नौवें दिन यानी नवमी तिथि को सीता जयंती मनाई जाती है। इस पर्व को जानकी नवमी भी कहा जाता है। इस बार जानकी नवमी या सीता जयंती 21 मई को है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार जनक नंदिनी एवं प्रभु श्रीराम की अर्द्धांगिनी सीताजी की उत्पत्ति बैसाख मास में शुक्ल पक्ष की नवमी को हुई थी। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन प्रभु श्रीराम और माता जानकी को विधि-विधान पूर्वक पूजा आराधना करने से व्रती को अमोघ फल की प्राप्ति होती है।

सीता जन्म कथा

वाल्मीकि रामायण के मुताबिक, राज जनक की कोई संतान नहीं थी। इसलिए उन्होंने यज्ञ करने का संकल्प लिया। जिसके लिए उन्हें जमीन तैयार करनी थी। वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुष्य नक्षत्र में जब राजा जनक हल से जमीन को जोत रहे थे, उसी समय पृथ्वी में उनके हल का एक हिस्सा फंस गया। उस जगह खुदाई करने पर मिट्‌टी के बर्तन में उन्हें कन्या मिली। जोती हुई भूमि और हल की नोक को सीत कहा जाता है, इसलिए उसका नाम सीता रखा गया।

सीता नवमी महत्व

यह व्रत करने से कन्यादान या चारधाम तीर्थ यात्रा समतुल्य फल की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि सीता नवमी के दिन सुहाग की वस्तुएं दान करने से व्रती को कन्या दान के समान फल प्राप्त होता है। ऐसे में इस दिन कुमकुम, चूड़ी, बिंदी आदि चीज़ों का दान जरूर करें। इसके साथ ही जानकी नवमी के दिन विशेष रूप से पूजा आराधना करने से मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है। अगर आप अपने जीवन में सुख सौभाग्य चाहते हैं तो जानकी माता को सोलह श्रृंगार अर्पित करें। अगर आप पुत्र प्राप्ति की कामना करते हैं तो इसके लिए सीता स्त्रोत का पाठ करें।

सीता नवमी पूजा विधि

सीता नवमी पर व्रती सुबह जल्दी उठकर स्नान करें।

इसके बाद माता जानकी को प्रसन्न करने के लिए व्रत और पूजा का संकल्प लें।

फिर एक चौकी पर माता सीता और श्रीराम की मूर्ति या तस्वीर रखें।

राजा जनक और माता सुनयना की पूजा के साथ पृथ्वी की भी पूजा करनी चाहिए।

इसके बाद श्रद्धा अनुसार दान का संकल्प लेना चाहिए।

कई जगहों पर मिट्‌टी के बर्तन में धान, जल या अन्न भरकर दान दिया जाता है।

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