लखनऊ। पूर्व केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री और राज्ससभा के मुख्य सचेतक शिव प्रताप शुक्ल ने अपने इंदिरानगर स्थित आवास पर शनिवार को वरिष्ठ पत्रकार व साहित्यकार सियाराम पांडेय ‘शांत’ के खंडकाव्य ‘सुधन्वा’ का विमोचन किया है। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि भारतीय धर्म ग्रंथों में बहुत कुछ दुर्लभ जनोपयोगी और ज्ञानबर्द्धक सामग्री उपलब्ध है। अगर उसे समाज के सामने लाया जाए तो यह लोकमंगल की दिशा में बड़ा काम होगा।
प्रेरणादायक है आज्ञाकारी, पितृभक्त सुधन्वा का चरित्र : शिव प्रताप शुक्ल
महाभारत युद्धके उपरांत हुए युधिष्ठिर के अश्वमेध यज्ञ के एक प्रसंग को समाज के सामने लाकर सियाराम पांडेय ‘शांत ने बड़ा काम किया है। ‘सुधन्वा ’ जैसा आज्ञाकारी और पिता के मान-सम्मान और वचन की रक्षा करने वाले, अपने प्राण देकर भी उन्हें धर्मसंकट में डालने वाले पुत्र संसार में बहुत कम हुए हैं। सुधन्वा पति, पुत्र, भाई और हरिभक्त के रूप में जितना प्रतिष्ठित है, उतना ही प्रतिष्ठित वह अपने पराक्रम को लेकर भी है। युद्ध में उसने अर्जुन जैसे महान धनुर्धर को भी अपनी बाणविद्या से चमत्कृत किया और परेशान किया।
राजा हंसध्वज ने जहां अपने वचन का मान रखने के लिए अपने पुत्र सुधन्वा को खौलते हुए तेल के कड़ाहे में डलवा दिया, वहीं अपने धर्म और कर्तव्य को लेकर रंच मात्र भी उदासीनता नहीं बरती। यह खंडकाव्य आज के लोकतांत्रिक युग में शीर्ष पर बैठे लोगों को अपने दायित्वों के निर्वहन में अपना-पराया से बचने की सलाह भी देता है। उन्होंने उम्मीद जताई कि यह कृति न केवल समाज का मार्गदर्शन करेगी बल्कि एक आदर्श, सत्यनिष्ठ और मर्यादित व्यवस्था के निर्माण में भी सहायक होगी। उन्होंने कहा कि सुधन्वा का चरित्र समाज के लिए अत्यंत प्रेरणादायक है।
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हिंदुस्थान समाचार के स्टेट ब्यूरो प्रमुख राजेश तिवारी ने कहा कि ‘सुधन्वा’ जैसी कृतियों के सृजन से ही देश को धर्म-नीति के अनुपालन की राह पर ले जाया जा सकता है। सियाराम पांडेय ‘शांत’ ने पत्रकारीय जीवन की आपाधापी के बीच ‘सुधन्वा’ के प्रणयन का गुरुतर दायित्व निभाया है। इस तरह की कृतियों को पढ़ना भी अपने आप में बड़ा सौभाग्य है। सहारा हाॅस्पिटल के लब्धप्रतिष्ठ चिकित्सक डाॅ. मनोज मिश्र ने कहा कि इस कृति का सामने आना यह बताता है कि समाज में बेहतरी के निरंतर अभिनव प्रयास हो रहे हैं।
हर क्षण कुछ नया और अनोखा हो रहा है। देश के सम्यक विकास के लिए आत्ममंथन और आत्म मूल्यांकन जरूरी है। भारतीय संस्कृति और सभ्यता की जड़ों में ही हर मानवीय समस्याओं का समाधान है। परिवार, समाज, राज्य और देश को एकजुट बनाए रखने, उसे सही राह पर ले चलने का काम शंख जैसे आदर्श गुरु ही कर सकते हैं। जो छल-छद्म से दूर हों, लोभ-मोह जिन्हें छू भी न सके, मार्गदर्शन का अधिकार उन्हें ही है।
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हिंदुस्थान समाचार के पीएन द्विवेदी ने कहा कि पहले स्कूली पाठ्यक्रमों में नैतिक शिक्षा एक विषय हुआ करता था। उससे गुरु-शिष्य संबंधों की महान परंपरा को जानने-समझने का अवसर मिलता था, आज छात्रों को दुनिया भर का ज्ञान-विज्ञान पढ़ने को मिल जाता है लेकिन जीवन जीने के लिए जिन मानव मूल्यों, नैतिकता, धार्मिकता, और व्यावहारिकता की आवश्यकता है, उसका शैक्षणिक पुस्तकों में अभाव नजर आता है। देश के शिक्षाविदों और नीतिकारों को इस पर विचार करना चाहिए और सुधन्वा जैसी प्रेरक पुस्तकों को पाठ्य सामग्री का हिस्सा बनाना चाहिए।
छायानट के पूर्व संपादक और जनवीणा प्रकाशन के प्रबंध निदेशक एस. के. गोपाल ने कहा कि ‘सुधन्वा’ को पढ़कर लगा कि इस देश ने कैसी-कैसी महान विभूतियों को हमें दिया है। उनके जीवन का हर लम्हा अनुकरणीय है, मननीय है और वंदनीय है। जिस सुधन्वा के सिर को भगवान शिव अपने मुंडमाल में धारण करें, उसकी महानता का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। यह कृति बेहद अच्छी बन पड़ी है और उम्मीद है कि समाज को इससे नई दिशा मिलेगी।
स्केच मचेंट के प्रबंध निदेशक अखिलेश कुमार मिश्र ने कृति की सराहना की और कहा कि इस तरह की कृतियों की वर्तमान समाज में बहुत जरूरत है। समाज में जिस तरह गिरावट आ रही है, उसे देखते हुए इस तरह की कृतियों का प्रकाशन एक सुखद संकेत है। इस अवसर पर अनेक गणमान्य भी उपस्थित रहे। सुधन्वा के रचयिता सियाराम ‘पांडेय’ ने बताया कि इस कृति पर लिखने के बारे में उन्होंने 1990 में सोचा लेकिन लिख पाए 2014 में और यह छपी 2021 में। कायदतन इसे बहुत पहले आप सबके बीच आ जाना चाहिए लेकिन जब उचित समय आता है तभी चीजें सामने आती हैं। उन्होंने अंत में सभी लोगों के प्रति आभार व्यक्त किया।