धूम्रपान करने से सोराइसिस का खतरा दोगुना हो जाता है,क्योंकि निकोटिन के चलते त्वचा की निचली परत में रक्त संचार बाधित हो जाता है। इस कारण त्वचा को ऑक्सीजन कम मिलती है।
निकोटिन रक्त को त्वचा की निचली परत में जाने से रोकता है, इसलिए त्वचा को कम मिलती है ऑक्सीजन
यह जानकारी स्पेशल इंटरेस्ट ग्रुप, सोराइसिस, इंडियन असोसिएशन ऑफ डम्रेटोलॉजिस्ट्स वेनेरीयोलॉजिस्ट्स लेप्रोलॉजिस्ट्स (आईएडीवीएल) इंडिया के राष्ट्रीय संयोजक डॉ. अबीर सारस्वत ने दी। उन्होंने बताया कि निकोटिन रक्त को त्वचा की निचली परत में जाने से रोकता है, इसलिए त्वचा को कम ऑक्सीजन मिलती है। डॉ. अबीर सारस्वत ने बताया कि इससे कोशिका उत्पादन की गुणवत्ता प्रभावित होती है, जिससे सोराइसिस जैसे रोग होते हैं।
सर्वे के अनुसार, दुनिया में 12.5 करोड़ लोग इस रोग से पीड़ित
सोराइसिस पर हुए सर्वे के अनुसार, दुनिया में 12.5 करोड़ लोग इससे पीड़ित हैं। हालिया एक अध्ययन में बताया गया है कि भारत में करीब चार से पांच फीसदी लोग इस रोग से पीड़ित हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि सोराइसिस का कोई एक कारण नहीं है, लेकिन यदि आपके परिवार के किसी सदस्य को रोग है, तो आपको भी इसका खतरा हो सकता है।
स्किन बायोप्सी या स्क्रैपिंग से इस रोग का लगाया जा सकता है पता
अर्टेमिस हॉस्पिटल, गुरुग्राम में डर्मेटोलॉजी एंड कॉस्मेटोलॉजी की विभागाध्यक्ष डॉ. मोनिका बंब्रू ने सोराइसिस का लक्ष्ण बताते हुए कहा कि में त्वचा लाल हो जाती है और सफेद दाग उभर आते हैं। यह सिर, कुहनी, घुटने और पेट की त्वचा पर हो सकता है। स्किन बायोप्सी या स्क्रैपिंग से इस रोग का पता लगाया जा सकता है। सोराइसिस की स्थिति और शरीर के कितने हिस्से पर इसका प्रभाव है, इसे देखते हुए कई प्रकार के उपचार उपलब्ध हैं। टॉपिकल थेरैपी और दवाएं लाभकारी होती है, लेकिन गंभीर स्थिति के लिए बायोलॉजिक्स जैसी एडवांस्ड थेरेपी की सलाह दी जाती है।
सोराइसिस का पूर्ण उपचार नहीं, जीवनशैली में बदलाव कर रोगी की स्थिति में कर सकते हैं सुधार
शोध में पाया गया कि मोटापे और सोराइसिस के बीच संबंध है और अत्यधिक भार वाले लोगों की त्वचा में घर्षण और पसीने से घाव होने से सोराइसिस हो सकता है। जिन्हें पहले से सोराइसिस है, उनकी त्वचा कटने या छिलने से स्थिति बिगड़ सकती है। सोराइसिस के रोगियों को शराब नहीं पीने की विशेषज्ञ सलाह देते हैं, क्योंकि इससे स्थिति विकट हो सकती है। इसका पूर्ण उपचार नहीं हो सकता, लेकिन जीवनशैली में बदलाव करने और प्रभावी उपचार लेने से रोगी की स्थिति में सुधार दिखता है।