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न्यायपालिका ठान लें तो बदल सकता है समाज

Desk by Desk
17/01/2022
in Main Slider, उत्तराखंड, ख़ास खबर, राष्ट्रीय, विचार
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CS Upadhyay
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सियाराम पांडेय ‘शांत’

उन्नाव में दुष्कर्म पीड़िता को जलाकर मार डालने का विरोध उत्तर प्रदेश ही नहीं, देश भर में हो रहा है। सभी दल इस घटना की आलोचना कर रहे हैं। बलात्कारियों को सजा देने के लिए कठोर कानून बनाने, यहां तक कि मृत्युदंड दिए जाने तक की मांग की जा रही है। न्याय व्यव्स्था से जुड़े लोग ऐसे मामले में अपनी विवशता संसाधनों और तंत्र की कमी का रोना रोकर जाहिर करते रहे हैं लेकिन इसी उत्तर प्रदेश में दो ऐसे भी निर्णय हुए हैं, अगर उनका संज्ञान भर लिया गया होता तो सामान्य छेड़छाड़ से भी लोग दूरी बनाते। बलात्कार और उसके बाद हत्या की तो वे सोचते भी नहीं। ऐसा करने से पहले उनकी रूह थर्रा उठती।

न्यायपालिका ठान लें तो बदल सकता है समाज

न्याय की आसंदी पर बैठे जो लोग यह कहते हैं कि न्यायपालिका सिर्फ फैसले देती है, वह समाज को नहीं बदल सकती। वे अर्ध सत्य बोल रहे हैं। न्यायपालिका ठान लें तो समाज बदल भी सकता है और सही मुकीम पर चल भी सकता है। उत्तरप्रदेश के दो जजों ने इस मिथक को तोड़ा भी है। इसके लिए उन्हें आज के पचास साल पहले और 19 साल पहले छेड़छाड़ के मामले में हुए दो फैसलों पर गौर करना होगा। 1969 में कानपुर में तैनात मुंसिफ खलीफा अब्दुल कादरी ने छेड़छाड़ के दोषी को न केवल अर्थदंड से दंडित किया था  बल्कि कानपुर के सभी थानों में आरोपी की फ़ोटो भी लगवा दी थी । अपने निर्णय में उन्होंने पुलिस को हिदायत दी कि वह चरित्र सत्यापन के लिए किसी भी थाने में आए तो उसमें इस बात का जिक्र जरूर करें । बाद में वे हाई कोर्ट जज भी बने और वहां से सेवानिवृत्त भी हुए। उनके इस निर्णय का असर यह हुआ कि कानपुर में छेड़छाड़  की घटनाओं में अप्रत्याशित रूप से कमी आई थी।

चरित्र प्रमाण पत्र में करें कृत्यों का जिक्र

कुछ ऐसा ही बड़ा और विचारपूर्ण निर्णय वर्ष 2000 में लखनऊ में तैनात तत्कालीन द्वितीय विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी चंद्रशेखर उपाध्याय ने छेड़छाड़ के दोषी आलमबाग निवासी आशीष दास उर्फ गोपू को 2 माह की कैद और 400 रुपये के  जुर्माने की सजा सुनाई थी। उन्होंने  पुलिस को  निर्देश दिया था कि वह  उसकी तस्वीर थानों में लगाए और वह जब भी चरित्र  सत्यापन कराने थानों में आए तो उस पर स्पष्ट रूप से उसके कृत्य का जिक्र किया जाए। लखनऊ के तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक  बीबी बक्शी ने एक प्रेस वार्ता में बताया था कि चंद्रशेखर उपाध्याय के इस निर्णय का असर यह रहा कि  हजरतगंज, अमीनाबाद, चौक, भूतनाथ के भीड़भाड़ वाले  क्षेत्रों यहां तक लविवि परिसर और यहां तक के उसके आसपास के इलाकों में भी 60 प्रतिशत तक कि कमी आ गई थी।

निर्णय को नहीं मिला अपेक्षित फैलाव

यह और बात है कि इस निर्णय को अपेक्षित फैलाव नहीं मिल पाया। अगर इस नवोन्मेषी सोच को देश और प्रदेशों के अन्य जजों ने भी आगे बढ़ाया होता तो छेड़छाड़ की घटनाएं निश्चित रूप से नगण्य हो जातीं। छेड़छाड़ करने वालों को सरकारी सेवाओं में जाने से रोकने, उन्हें सरकारी योजनाओं से वंचित करने के छोटे-छोटे निर्णय  छेड़छाड़ की घटनाओं पर अंकुश लगा सकते है। उन्नाव की घटना से आहत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने  महिलाओं के प्रति होने वाले  अपराधों की सुनवाई के लिए उत्तरप्रदेश में 218 नई अदालतें आरम्भ करने की बात कही है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पुलिसिंग सिस्टम को ठीक करने का सुझाव दिया है लेकिन यह जरूर समझा जाना चाहिए कि महिलाओं के प्रति अपराध की शुरुआत छेड़छाड़ से ही होती है ।

नारी स्वतंत्रता पर प्रश्नचिन्ह

इस पर प्रतिबंध के लिए न्यायिक रचनात्मक  प्रयोग बहुत जरूरी है। चंद्रशेखर उपाध्याय ने  न्याय संहिता में संशोधन के अनेक सुझाव सरकारों पर दे रखे हैं अगर उन पर अमल किया जाए तो बाहर हद तक देश और समाज को अपराधमुक्त करने में मदद मिल सकती है। छेड़छाड़ और बलात्कार की बढ़ती घटनाओं ने देश में नारी स्वतंत्रता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है। बलात्कारियों को सजा देने के लिए कानून को और सख्त बनाने की मांग उठने लगी है। दुराचारियों को फांसी देने की सर्वत्र वकालत हो रही है। नवंबर 2017 में मध्यप्रदेश की तत्कालीन शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने बलात्कारियों को फांसी की सजा देने की न केवल घोषणा की थी बल्कि कानून में संशोधन का प्रस्ताव भी केंद्र सरकार को भेज दिया था।  छत्तीसगढ़, झारखण्ड, हरियाणा और राजस्थान  की तत्कालीन भाजपा सरकारों ने भी फांसी की सजा पर विचार करने की बात की  थी।

चिंता का सबब हैं बलात्कार के मामले 

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने भी केंद्र को पत्र लिखने की बात कही  थी। देश में छेड़खानी और बलात्कार के बढ़ते मामले पूरे देश के लिए चिंता का सबब बने हुए हैं। दिल्ली में हुए निर्भया कांड, तेलंगाना में पशु चिकित्सक को सामूहिक दुष्कर्म के बाद बर्बरतापूर्वक जिंदा जला दिए जाने की घटना से पहले ही देश में भारी आक्रोश था। राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों के प्रदर्शन हो रहे थे तभी उन्नाव में एक और बलात्कार पीड़िता की जिंदा जलाकर हत्या कर दी गई है। इसे लेकर देश भर में बावेला मचा है। देश के अन्य कई राज्यों से भी बलात्कार और हत्या की घटनाएं प्रकाश में आ रही हैं। 15 साल पहले  अगस्त 2004  को कोलकाता की अलीपुर जेल में धनंजय चटर्जी को 15 साल की एक छात्रा से दुष्कर्म के मामले में फांसी पर लटका दिया गया था। तब से आज तक किसी भी अभियुक्त को दुष्कर्म के मामले में सजा हीं हुई है। यह मामला भी 15 साल तक चला। इसके बाद ही उसे फांसी की सजा हो पाई थी।

बलात्कार रोकने के लिए नहीं है कोई कानून

बलात्कार को रोकने के लिए ऐसा नहीं कि देश में कानून नहीं है। सजा के प्रावधान नहीं है लेकिन इन सबके बावजूद अगर इस तरह की घटनाओं पर अंकुश नहीं लग पा रहा है तो उस पर मंथन किए जाने की जरूरत है।   उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि नाबालिग से दुष्कर्म पर फांसी का प्रावधान करने की बात कही थी। उन्होंने  यह भी कहा था कि सभी जिलों के एसपी, डीएम जिले की शैक्षणिक संस्थाओं, व्यापार मंडल, एनजीओ को साथ लेकर जागरूकता फैलाएं। लोगों में सुरक्षा भाव पैदा करने का प्रयास करें। स्कूलों, चौराहों पर सार्वजनिक स्थलों पर सीसीटीवी लगाए जाएं। प्रदेश की महिला हेल्पलाइन 1090 और डायल 100 के बीच समन्वय बढ़ाया जाए।

डॉक्टरों को दो जाये संवेदनशीलता की ट्रेनिंग

डॉक्टरों को रेप जैसे मामलों में मेडिकल करते समय संवेदनशीलता बरतने की ट्रेनिंग दी जाए। ऐसे मामलों की क़ानूनी प्रक्रिया पर पैनी निगरानी  रखी जाए और उसका फॉलोअप किया जाए। साथ ही ऐसे मनोवृति वाले लोगों में भय पैदा करने के लिए सार्वजनिक स्थानों पर फुट पेट्रोलिंग हो। डायल 100 के वाहन भी सक्रिय रहें। ऐसी घटनाओं में कांस्टेबल से लेकर अधिकारी तक सबकी जवाबदेही तय होगी। सीएम ने कहा कि एडीजी और आईजी जिलों में जाएं और ज़मीन पर जाकर हालात का जायज़ा लें और कार्रवाई सुनिश्चित करें। यह देखा जाए कि समाज में ऐसी मनोवृत्ति क्यों बढ़ रही है और कैसे इस पर अंकुश किया जाए।

सजा में वृद्धि के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई थी

मध्य प्रदेश सरकार ने 12 साल या उससे कम उम्र की लड़कियों के साथ बलात्कार के दोषियों को फांसी की सजा देने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी थी। दण्ड संहिता की धारा 376 एए और 376 डीए के रूप में संशोधन किया गया और सजा में वृद्धि के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई थी। इसके अलावा लोक अभियोजन की सुनवाई का अवसर दिए बिना जमानत नहीं होगी। सरकार ने बलात्कार मामले में सख्त फैसला लेते हुए आरोपियों के जमानत की राशि बढ़ाकर एक लाख रुपये कर दी है।  मध्य प्रदेश देश का पहला राज्य बन गया है, जहां बलात्कार के मामले में इस तरह के कानून के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई है।

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को ऐसा कानून लाने का सुझाव दिया है

शादी का प्रलोभन देकर शारीरिक शोषण करने के आरोपी को सजा के लिए 493 क में संशोधन करके संज्ञेय अपराध बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई है। महिलाओं के खिलाफ आदतन अपराधी को धारा 110 के तहत गैर जमानती अपराध और जुर्माने की सजा का प्रावधान किया गया है। महिलाओं का पीछा करने, छेड़छाड़, निर्वस्त्र करने, हमला करने और बलात्कार का आरोप साबित होने पर न्यूनतम जुर्माना एक लाख रुपए लगाया जाएगा। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को ऐसा कानून लाने का सुझाव दिया है जिससे नाबालिगों से दुष्कर्म करने वाले को मृत्युदंड दिया जाए ताकि ऐसे अपराध के खिलाफ सख्त कार्रवाई का संदेश जाए। न्यायमूर्ति राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति आलोक सिंह की पीठ ने पिछले साल निचली अदालत द्वारा एक व्यक्ति को सुनाई गई मौत की सजा को बरकरार रखते हुए यह टिप्पणी की। जून 2016 में आठ वर्षीय बच्ची से दुष्कर्म और उसकी हत्या के लिए व्यक्ति को सजा सुनाई गई थी।

मामलों के निस्तारण के लिए एक टाइम फ्रेम जरूरी

प्रश्न यह है कि फांसी की सजा का प्रावधान बना देने भर से क्या ये घटनाएं बंद हो जाएंगी ? हत्या के आरोप में फांसी की सजा का प्रावधान तो है लेकिन क्या इससे हत्याएं होना बंद हो सकीं? एक बार संसद में पूर्व गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने कहा था कि क़ानून चाहे जितने बना लिए जायें, जब तक मामलों के निस्तारण के लिए एक टाइम फ्रेम नहीं तय होगा तब तक कुछ नहीं हो सकता। दिल्ली के निर्भया काण्ड में जिन लोगों को सजा मिली, क्या उस पर अमल हो सका ?

1996 में 16 साल की बच्ची के साथ 37 लोगों ने किया था बलात्कार 

1996 का सूर्यनेल्ली बलात्कार मामला तो रोंगटे खड़ा कर देने वाला है। 16 साल की स्कूली छात्रा को अगवा कर 40 दिनों तक 37 लोगों ने बलात्कार किया था।  इस मामले में कांग्रेस नेता पीजे कुरियन का नाम भी उछला था। नौ साल बाद 2005 में केरल हाईकोर्ट ने मुख्य आरोपी के अलावा सभी को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। विरोध हुआ, सुप्रीम कोर्ट ने मामले की दोबारा सुनवाई के आदेश दिए, इस बार सात को छोड़ ज़्यादातर को सजा हुई, लेकिन कई आरोपी अभी भी कानून की पहुंच से बाहर हैं। 1996 में दिल्ली में लॉ की पढ़ाई कर रही प्रियदर्शनी मट्टू की उसी के साथी ने बलात्कार कर नृशंस हत्या कर दी थी। अपराधी संतोष सिंह जम्मू-कश्मीर के आईजी पुलिस का बेटा है। बेटे के खिलाफ मामला दर्ज होने के बावजूद उसके पिता को दिल्ली का पुलिस ज़्वाइंट कमिश्नर बना दिया गया।

सबूतों के आभाव में बरी हो जाते हैं आरोपी

जांच में पुलिस ने इतनी लापरवाही बरती कि चार साल बाद सबूतों के अभाव में निचली अदालत ने उसे बरी कर दिया। जब तक मामला हाईकोर्ट पहुंचा, संतोष सिंह खुद वकील बन चुका था और उसकी शादी भी हो चुकी थी, जबकि प्रियदर्शनी का परिवार उसे न्याय दिलाने के लिए अदालतों के बंद दरवाजों को बेबसी से खटखटा रहा था। ग्यारहवें साल में हाईकोर्ट ने संतोष सिंह को मौत की सजा सुनाई, जिसे 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने उम्र कैद में तब्दील कर दिया। उसके बाद भी संतोष सिंह कई बार पैरोल पर बाहर आ चुका है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि साल 2016 में देश की विभिन्न अदालतों में चल रहे बलात्कार के 152165 नए-पुराने मामलों में केवल 25 का निपटारा किया जा सका, जबकि इस एक साल में 38947 नए मामले दर्ज किए गए।

आक्रोश के बाद भी नहीं रुक रहे दुष्कर्म के मामले 

यह केवल दुष्कर्म के आंकड़े हैं, बलात्कार की कोशिश, छेड़खानी जैसी घटनाएं इसमें शामिल नहीं हैं। साल 2012 में दिल्ली के चर्चित निर्भया गैंगरेप मामले के वक्त भी ऐसा ही माहौल था। लाखों की तादाद में लोग सड़कों पर उतर आये थे। इस खौफनाक मामले के बाद ये जनता के आक्रोश का ही असर था कि वर्मा कमिशन की सिफारिशों के आधार पर सरकार ने नया एंटी रेप लॉ बनाया। इसके लिए आईपीसी और सीआरपीसी में तमाम बदलाव किए गए, और इसके तहत सख्त कानून बनाए गए। साथ ही रेप को लेकर कई नए कानूनी प्रावधान भी शामिल किए गए। लेकिन इतनी सख्ती और इतने आक्रोश के बावजूद रेप के मामले नहीं रुके। आंकड़े यही बताते हैं। दिल्ली में साल 2011 से 2016 के बीच महिलाओं के साथ दुष्कर्म के मामलों में 277 फीसदी की बढ़ोतरी हुई।दिल्ली में साल 2011 में जहां इस तरह के 572 मामले दर्ज किये गए थे, वहीं साल 2016 में यह आंकड़ा 2155 रहा। इनमें से 291 मामलों का अप्रैल 2017 तक नतीजा नहीं निकला था। निर्भया कांड के बाद दिल्ली में दुष्कर्म के दर्ज मामलों में 132 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। साल 2017 में अकेले जनवरी महीने में ही दुष्कर्म के 140 मामले दर्ज किए गए थे। मई 2017 तक दिल्ली में दुष्कर्म  836 मामले दर्ज किए गए। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की 2014 की रिपोर्ट के साल 2014 में देश भर में कुल 36975 दुष्कर्म के मामले सामने आए हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में बलात्कार के मामले 2015 की तुलना में 2016 में 12.4 फीसदी बढ़े हैं।

आरोपियों का सामाजिक बहिष्कार हो 

2016 में 38,947 बलात्कार के मामले देश में दर्ज हुए। 4,882 मामले मध्य प्रदेश में दर्ज हुए। उत्तर प्रदेश में 4,816 बलात्कार के मामले दर्ज हुए जबकि महाराष्ट्र में बलात्कार के 4,189 मामले दर्ज हुए। महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों को रोकने के लिए जरूरी है कि ऐसे लोगों का सामाजिक बहिष्कार किया जाए। उन्हें हर तरह की सरकारी सुविधाओं से वंचित किया जाए। उनके चित्र हर कहीं सार्वजनिक स्थानों पर लगाए जाएं लेकिन यह सब तभी किया जाए जब दोष प्रमाणित हो जाए। ऐसा कर हम देश की आधी आबादी के सम्मान और स्वतंत्रता की रक्षा कर सकते हैं ।

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