हिन्दू धर्म में पितृ श्राप से मुक्ति एवं उनके आशीर्वाद प्राप्ति की सर्वाधिक महत्वपूर्ण तिथि माना जाता है। इस वर्ष ये तिथि चैत्र अमावस्या 12 अप्रैल, सोमवार को है। आश्विन माह के पितृपक्ष की तरह ही चैत्र कृष्ण पक्ष को भी श्राद्ध-तर्पण के लिए श्रेष्ठ माना गया है और चैत्र माह की अमावस्या को पितृ विसर्जन की ही तरह श्रेष्ठ फलकारक माना गया है। इस तिथि के दिन संयोगवश सोमवार हो तो यह अद्भुत पुण्यफल देने वाली तिथि बन जाती है। ज्योतिषीय के अनुसार आत्मा के स्वामी सूर्य और मन के स्वामी चंद्र जब एक ही राशि में आ जाते हैं तो अमावस्या होती है।
इसी तिथि के दिन प्राणियों में सहज वैराग्य का भाव जागृत होता है क्योंकि मन और आत्मा के एकाकार होने से चित्त कुछ पलों के लिए निर्मल और एकाग्र हो जाता है तभी इन तिथियों को साधना के लिए श्रेष्ठ कहा गया है। सूर्य और चन्द्र के संयोग से ही पूर्णिमा और अमावस्या की तिथियों का निर्धारण होता है। जब ये दोनों ग्रह भ्रमण करते हुए परस्पर 180 अंश पर तब पूर्णिमा होती है और एक साथ आ जाते हैं तो अमावस्या होती है।
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भगवान शिव ने कृष्ण पक्ष से लेकर अमावस्या तक का अधिभार पितरों को एवं शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक का अधिभार देवों को दिया हैं। इसीलिए पितृ से सम्बंधित सभी श्राद्ध-तर्पण आदि कार्य अमावस्या तक और सकाम अनुष्ठान अथवा बड़े यज्ञ आदि कार्य शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तक के मध्य किये जाते हैं। इन सभी युतियों में आश्विन अमावस्या और चैत्र की अमावस्या में सूर्य एवं चन्द्र का मिलन श्रेष्ठ माना गया है।
इस तिथि के दिन संयोगवश सोमवार भी तो प्राणी मात्र के लिए ये किसी वरदान से कम नहीं है। इस महापुण्यदायक तिथि के दिन हमारी वाणी के द्वारा किसी के लिए अशुभ शब्द न निकले इसका सदैव ध्यान रखना चाहिए। उसका कारण यह है कि इस दिन मन, कर्म तथा वाणी के द्वारा भी किसी के लिए अशुभ नहीं सोचना चाहिए।