ईपीसी भारत
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125 वीं जयंती आज यानी की 23 जनवरी को बड़े पैमाने पर पूरे देश में मनायी जा रही है। वह भले ही आज हमारे बीच नहीं है,लेकिन उनके द्वारा किये गये कार्य आज भी देश विदेश के लोगों को स्वाभिमान के साथ जिने की प्रेरणा देते हैं।
यह नेताजी के अंदाज व तेवर ही थे,जो देश की आजादी में मील का पत्थर साबित हुये। आज उन्हीं की बात, किस्सा उस दौर का जब महात्मा गांधी भी नेता जी से हार मान गये थे।
नेताजी सुभाष चंद्र के तेवरों से अंगे्रज अधिकारी भयभीत रहते थे। यह उनका ही तरीका था जिससे ब्रिटिश राज्य हिलकर रह गया था। सुभाष चन्द्र ने भारत की आजादी में अपना अहम योगदान दिया। इसी के कारण उन्हें नेताजी कह कर बुलाया जाता है।
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बताया जाता है कि उस दौर में भी राजनीति चरम पर थी,जिसके कारण सुभाष चन्द्र बोस को अपनी अलग पार्टी बनाकर चुनाव लडऩा पड़ा था। नेताजी का चुनाव लडऩा अपने आप में ऐतिहासिक घटना थी।
साल 1937 में वाम राजनीति अपने चरम पर थी,उस समय सरकार कांग्रेस की थी,इतना ही नहीं कांग्रेस पार्टी जमीन पर काम भी जम कर रही थी। यह वह दौर था जब अक्सर कहा जाता था कि अंगे्रजों को भारत छोडऩे पर इसी समय मजबूर किया जा सकता है।
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फिर आया साल 1939 उस समय नेताजी कांग्रेस में ही हुआ करते थे और कांग्रेस अध्यक्ष के लिए चुनाव होना था। जिसके लिए नेताजी ने अपना नाम घोषित कर दिया,यह बात गांधी जी को अखर गयी। गांधी जी ने उम्मीदवार के तौर पर सीतारामैया का नाम पेश किया और उन्हें ही चुनाव खुलकर लड़ाया
लेकिन वह चुनाव हार गये,वहीं सुभाष चन्द्र बोस चुनाव जीत गये। जिस पर महात्मा गांधी ने कहा था कि यह मेरी हार है।