नई दिल्ली। ड्रैगन की चालबाजियों में फंसकर श्रीलंका काफी नुकसान उठा चुका है। अब श्रीलंका को यह बात समझ में आ गई है चीन के साथ पोर्ट डील उसकी बड़ी गलती थी।
इतना ही नहीं अब पड़ोसी देश श्रीलंका ने यह भी कहा है कि आगे से वह इंडिया फर्स्ट की नीति पर ही चलेगा। तो वहीं दक्षिण एशिया मामलों के जानकारों का कहना है कि आने वाले समय में नेपाल, बांग्लादेश जैसे देशों को भी श्रीलंका की तरह पछतावा हो सकता है, जो अभी चीन के आगे नतमस्तक हैं।
श्रीलंका के विदेश सचिव जयानाथ कोलोमबाजे ने कहा है कि श्रीलंका तटस्थ विदेश नीति पर चलना चाहता है, लेकिन रणनीतिक और सुरक्षा मामलों में ‘इंडिया फर्स्ट’ की नीति पर चलेगा। एक श्रीलंकाई टीवी चैनल से बात करते हुए कोलोमबाजे ने कहा कि राष्ट्रपति (गोटबाया राजपक्षे) ने कहा कि रणनीतिक सुरक्षा मामले में हम इंडिया फर्स्ट नीति पर चलेंगे।
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हम भारत के लिए रणनीतिक खतरा नहीं बन सकते हैं और हमें ऐसा नहीं करना है। हमें भारत से लाभ मिलेगा। राष्ट्रपति ने साफ कहा है कि जहां तक सुरक्षा की बात है आप हमारी पहली प्राथमिकता हैं, लेकिन मुझे आर्थिक समृद्धि के लिए दूसरों के साथ भी डील करना है।
विदेश सचिव ने कहा कहा कि तटस्थ विदेश नीति के साथ श्रीलंका भारत के रणनीतिक हित की रक्षा करेगा। इस दौरान उन्होंने एक और बड़ी बात कही और स्वीकार किया कि हम्बनटोटा बंदरगाह को 99 साल के लिए चीन को लीज पर देना गलती थी।
राजपक्षे की चुनाव में जीत के बाद विदेश मंत्री एस जयशंकर ने हाल ही में अपने समकक्ष गुनाववर्धने से बात की थी। गृह युद्ध के दौरान विवादित रक्षा सचिव रहे 70 वर्षीय गोटबाया राजपक्षे की जीत भारत के लिए विशेष मायने रखती है क्योंकि भारत को उम्मीद है कि कोलंबो का नया प्रशासन नई दिल्ली के रणनीतिक हितों के खिलाफ विदेशी शक्ति को अनुमति नहीं देगा। दशकों तक श्रीलंका के वैश्विक शक्तियों से राजनयिक संबंधों पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों को भरोसा है कि गोटबाया क्षेत्र में अमेरिकी हितों के अधिक खिलाफ कोई नीति नहीं अपनाएंगे।
गौरतलब है कि राजपक्षे के भाई महिंदा राजपक्षे जब श्रीलंका के राष्ट्रपति थे। तब चीन ने श्रीलंका की आधारभूत संरचना परियोजनाओं में बड़े पैमाने पर निवेश किया था। यह निवेश तब हुआ जब श्रीलंका लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई) से जारी गृहयुद्ध को निर्मम तरीके से कुचलने की वजह से अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में अलग-थलग पड़ गया था। महिंदा की वजह से देश ‘चीनी कर्ज जाल’ में फंसा और चीन की ओर से विकसित हम्बनटोटा बंदरगाह को 99 साल के लिए चीन को पट्टे पर देना पड़ा।