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कोरोना  को लेकर दहशत फैलाते अध्ययन

coronaviraus

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कोरोना वायरस पर इतने अध्ययन हो गए हैं कि आम जनमानस भ्रमित हो गया है। किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया है कि वह क्या करे और क्या न करे। अध्ययन लोगों को जागरूक करने के लिए होते हैं लेकिन जब अध्ययन ही लोगों को  डराने लगें। उनके दिलों की घड़कनें बढ़ाने लगें तो इसे क्या कहा जाएगा। टीकाकरण को लेकर  जिस तरह के दावे-प्रतिदावे अध्ययन के नाम पर हो रहे हैं, उसे लेकर लोग परेशान हैं कि वे टीका लगवाएं या नहीं।  तीसरी लहर आएगी या नहीं आएगी, यह भविष्य का विषय है लेकिन वह बच्चों के लिए घातक होगी, इस तरह का फितूर फैलाना कहां तक न्यायसंगत है। जब कि गुलेरिया जैसे वरिष्ठ चिकित्सक भी इस आशंका को खारिज कर चुके हैं। कोरोना वायरस पानी से फैलता है या नहीं इस संबंध में अभी कोई वैज्ञानिक साक्ष्य नहीं है।

आमतौर पर मान्यता यही है कि पानी में कोरोना नहीं फैलता है। लेकिन जिस तरह कोरोना को लेकर तमाम वैज्ञानिक अध्ययन, अनुसंधान एवं निष्कर्षों को बार-बार बदलना पड़ रहा है, बार-बार अपने बहुरुपिए स्वभाव के चलते कोरोना महामारी का वायरस वैज्ञानिक अध्ययनों एवं निष्कर्षों को धता बता रहा है उससे यह आशंका तो पैदा हो ही गयी है कि अगर शहर के पानी तक कोरोना की पहुंच हो गयी है तो फिर कैसे इसके फैलाव को रोका जायेगा। कोरोना हवा में फैलता है इस पर काफी समय तक विवाद हुआ। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी पहले इस तथ्य को खारिज कर दिया था कि कोरोना एयरबोर्न इन्फेक्शन हैं, लेकिन जब कई अध्ययन में यह साबित हो गया कि कोरोना वायरस लंबे समय तक हवा में टिका रहता है और लोगों को संक्रमित कर सकता है तो विश्व स्वास्थ्य संगठन ने फिर से अध्ययन किया जिसमें इस बात की पुष्टि हुई कि सांस लेते समय या फिर छींक अथवा खांसी के समय मुंह-नाक से निकलने वाले एयरसोल इतने हल्के होते हैं कि लंबे समय तक हवा में बने रहते हैं और आठ-दस मीटर दूर खड़े व्यक्ति को भी संक्रमित कर सकते हैं।

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कई बार के हां एवं न के बाद अब यह स्थापित एवं प्रामाणिक तथ्य है कि कोरोना हवा के जरिए फैलता है। अपने बहुरुपिए स्वभाव के कारण कोरोना बार-बार वैज्ञानिक अध्ययनों एवं विशेषज्ञों के निष्कर्षों को धता भी बताता रहा है। इसलिए शहरों के सीवेज में कोरोना की मौजूदगी गंभीर चिंता का विषय है। इससे कोरोना फैलता है या नहीं इस पर अध्ययन हो रहे हैं लेकिन फिर भी हमे पानी की स्वच्छता  सुनिश्चित करने के साथ ही इसमें वायरस के पहुंचने के स्रोतों की पहचान कर रोक थाम के उपाय करने चाहिए। दरअसल कई प्रामाणिक अध्ययन में कोरोना शहरों के पानी मे पाया जा चुका है। फ्रांस में पिछले साल जब कोरोना चरम पर था तब नदी के जल में इसके वायरस पाये गये थे। इसी तरह मुंबई और हैदराबाद के पानी में भी कोरोना वायरस पाया जा चका है।

देश में आईसीएमआर और डब्ल्यूएचओ साझा तौर पर कोरोना वायरस का अध्ययन कर रहे हैं और शहरों के सीवेज सैंपल को लेकर उसमें कोरोना की मौजूदगी का पता लगा रहे हैं। इसी कड़ी में एसजी-पीजीआई लखनऊ के माइक्रो बॉयोलॉजी विभाग ने शहर के तीन जगहों से सीवेज का सैंपल लिया और इसकी जांच की गयी तो जांच में पाया  कि एक सैंपल में कोरोना का वायरस मौजूद है। यह गंभीर चिंता का विषय है। क्योंकि इस तरह पानी में अगर कोरोना पाया जाता है तो इससे पशु-पक्षी, मनुष्य भी चपेट में आ सकते हैं। हालांकि अभी तक मान्यता यही है कि कोरोना पानी से नहीं फैलता है लेकिन फिर भी इस विषय पर और अधिक स्पष्टता के लिए व्यापक और प्रामाणिक अध्ययन की जरूरत है। सरकार को इसकी जांच कराने के साथ ही कोरोना के बचाव के उपायों में पानी को भी संक्रमित होने से बचाने को शामिल करना चाहिए।

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अगर कोरोना वायरस शौचालयों के जरिए सीवेज सिस्टम तक पहुंच रहा है ऊिर तो देश का एक भी इंसान इसके मारक प्रभाव से वंचित नहीं रहेगा। हर कोरोना संक्रमित के लिए अलग शौचालय बनवाना पड़ेगा फिर तो पृथक वास की अवधारणा ही धराशायी हो जाएगी। अस्पतालों में हर मरीज के लिए पृथक शौचालय तो होते नहीं। संक्रमण तो कहीं से भी फैल सकता है। अध्ययन होने तो चाहिए लेकिन सारे अध्ययन जनता तक पहुंचे यह जरूरी तो नहीं। सरकार, औषधि विज्ञानियों को जो चीजें जाननी चाहिए, उसे जनता भी जाने, यह क्या जरूरी है। ऐसे में मीडिया को भी सतर्क और सहज भूमिका निभानी चाहिए। यही मौजूदा समय की मांग भी है।

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