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जोखिम भरे दृश्य को बड़े परदे पर हेमा मालिनी ने नहीं उनकी बॉडी डबल रेशमा पठान ने निभाया

Desk by Desk
04/05/2019
in मनोरंजन
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कि 'भाग धन्नो भाग... आज तेरी बसंती की इज़्ज़त का सवाल है'।

कि 'भाग धन्नो भाग... आज तेरी बसंती की इज़्ज़त का सवाल है'।

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15 अगस्त 1975 को रिलीज़ हुई फ़िल्म शोले को कौन भूल सकता है? इस फ़िल्म का एक मशहूर दृश्य है, जिसमें बसंती के पीछे गब्बर सिंह के डाकू पड़ जाते हैं और बसंती अपनी घोड़ी ‘धन्नो’ से कहती है कि ‘भाग धन्नो भाग… आज तेरी बसंती की इज़्ज़त का सवाल है’। और तब बसंती यानी हेमा मालिनी अपने तांगे को बहुत तेज़ दौड़ाती हैं और पत्थर से टकराकर तांगा टूट जाता है।
इस जोखिम भरे दृश्य को बड़े परदे पर हेमा मालिनी ने नहीं उनकी बॉडी डबल रेशमा पठान ने निभाया था। इस दृश्य को निभाते वक़्त वो सच में तांगे के नीचे आ गई थीं और मरते-मरते बची थीं। फ़िल्मों में बॉडी डबल होते हैं जो हीरो और हीरोइन के लिए मुश्किल स्टंट्स को अंजाम देते हैं। रेशमा ने कई ख़तरनाक स्टंट किए हैं जैसे, कमज़ोर पहियों के साथ तांगा चलाना, घुड़सवारी, ऊँची इमारतों से नीचे गिरना, तलवारबाज़ी, फ़ाइट सीन, रस्सी पर चढ़ना और चलती गाड़ी से कूदना और सांड और शेर से लड़ाई।

रेशमा बताती हैं, “तांगे वाले सीन में पहिया पत्थर से टकराता है और दोनों पहिये टूट जाते हैं और हेमाजी नीचे गिर जाती हैं लेकिन हुआ कुछ अलग। बात ये थी कि जिसने तांगा बनाया था उसे पहियों को मज़बूती से नहीं जोड़ना था लेकिन उन्होंने ग़लती से एक पहिये को लोहे की कील से मज़बूत बना दिया

जिसके चलते पत्थर से टकराने के बावजूद एक पहिया नहीं टूटा और घोड़ा दौड़ाने और घोड़े की रस्सी खोलने के बाद तांगा टूटा नहीं बल्कि पत्थर से टकराकर उलट गया और पूरा तांगा मेरे ऊपर आ गया।” “ये घटना इतनी ज़ोर से हुई कि वहां मौजूद लोगों को लगा कि मैं अपनी जान से हाथ धो चुकी हूँ, लेकिन जब लोग मुझे बचाने आए तो सबने मिलकर तांगा सीधा किया और देखा कि मेरी साँसें चल रही हैं। मुझे जल्दी से अस्पताल ले जाया गया।”

रेशमा कहती हैं, “आज कई महिलाएं फ़िल्मों के लिए स्टंट करती हैं लेकिन जब मैंने शुरू किया था 50 साल पहले तब इतना आसान नहीं था। इस लाइन को बहुत बुरा समझा जाता था। लड़कियां तो दूर अच्छे परिवार के लड़कों को भी मंज़ूरी नहीं मिलती थी काम करने की।” “मैं सिर्फ़ 14 साल की थी जब मैंने फ़िल्मों के लिए स्टंट करना शुरू किया था। मुझे आज भी याद है जब हमारे पास एक वक़्त के खाने के लिए भी कुछ नहीं था।

मेरे पिता अक्सर बीमार रहते थे और मेरी माँ अक्सर घर में ही रहती थीं। हमेशा पर्दा करती थीं। “मुझे सबसे पहले मौक़ा देने वाले स्टंट डायरेक्टर अज़ीम गुरु जी थे जिन्होंने मेरे हालात और मेरी क़ाबिलियत देखी। सबसे पहला काम मैंने अभिनेत्री लक्ष्मी छाया जी के लिए किया था और जब मैंने अपने पिता को अपनी पहली कमाई 100 रुपये दिए तब मेरे उन्होंने मुझे और मेरी माँ को बहुत मारा था।

मैंने अपने हाथों के छाले उन्हें दिखाए और उन्हें समझाया कि मैंने ज़ख़्म लेकर खून बहाकर पैसे कमाए हैं कुछ ग़लत काम करके नहीं। तब उन्होंने मुझे और मेरे काम को अपनाया।”

फ़िल्म ‘ज्योति’ में उन्होंने हेमा की बॉडी डबल बनकर सांड से लड़ाई का सीन किया। फ़िल्म में एक सीन है जहां एक छोटी बच्ची खड़ी है और उस बच्ची को मारने सांड आ जाता है। उन्होंने फ़िल्मों में आग के बीच खड़े रहने जैसे कई ख़तरनाक स्टंट किये हैं। वो कहती हैं, “हेमा उन्हें बहुत प्यार देती थीं। जया उन्हें पसंद करती थीं। फिर रेखा, नीतू, मुमताज़, निरुपमा रॉय, मीना कुमारी, शर्मीला टैगोर, आशा पारीख, डिंपल कपाड़िया, मीनाक्षी जैसी कई हीरोइनों के लिए काम किया और सबने ख़ूब इज़्ज़त भी दी।”

लेकिन अभिनेत्री राखी को वो पसंद नहीं करती थीं। इसकी वजह बताते हुए वो कहती हैं, “मैंने उनकी कई फ़िल्मों के लिए स्टंट किए हैं उनकी जगह जोखिम भी उठाया है। उनकी फ़ैन भी थी। लेकिन जब मैंने उनकी फ़िल्म ‘कसमें वादे’ की शूटिंग के दौरान उनके लिए स्टंट कर रही थी तो उस वक़्त 40 फुट नीचे गिर गई तब शूटिंग बंद करके लोगों ने मुझे बाहर निकाला। मेरा पैर टूट चुका था और बहुत ज़्यादा सूज गया था।”

“अमिताभ बच्चन साहब को जब पता चला तो वो अपना सीन छोड़कर मुझे देखने आ गए। हमारी ही लोकेशन से थोड़ी दूरी पर हेमा जी शूट कर रही थीं। फ़िल्म ‘मीरा’ के लिए वो भी मुझसे मिलने आ पहुंचीं, दोनों ने मुझे समझाया अपना ख़याल रखो। अस्पताल ले जाने के लिए कहा और मेरे लिए चिंता करने लगे।”

“लेकिन जिस अभिनेत्री के लिए मैंने ये स्टंट किया वो मुझसे मिलने तक नहीं आईं और जब एक स्पॉट बॉय ने उन्हें बताया तो उन्होंने मेरे सामने ही कह दिया कि ‘मैं क्या करूं’ और गाड़ी में बैठकर चली गईं। मुझे बहुत बुरा लगा। बहुत दुःख हुआ।”

ज़ी फ़ाइव ने हाल ही जांबाज़ स्टंट वुमन रेशमा पठान के हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री में 50 सालों का सफ़र पूरा करने और उनकी बहादुरी को देखते हुए बायोपिक फ़िल्म ‘द शोले गर्ल’ बनाई और उसे रिलीज़ भी किया है। इसके ज़रिए गुमनामी में जीने वाला चेहरा सारी दुनिया के सामने आया। ऐसे में रेशमा पठान, जो कि कई अभिनेत्रियों के स्टंट की तारीफ़ों के पीछे की मुख्य कारण रही हैं, उन्हें थोड़ी तवज्जो मिली।

नाम की तरह रेशमा की जिंदगी में कुछ भी रेशम सा नहीं रहा, बल्कि उन्होंने काफ़ी मुश्किलों से हासिल किया। मगर अपने सरनेम की तरह ही पठानों वाला स्वभाव और ज़िद उनमें कूट-कूट के भरा था। उनकी इस बायोपिक फ़िल्म में उनका किरदार अभिनेत्री बिदिता बेग ने निभाया है और इसके बाद हाल ही में उन्हें जाने-माने गीतकार जावेद अख़्तर और निर्देशक रमेश सिप्पी के हाथों सीसीएफ़ए की ओर से लाइफ़ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से नवाज़ा गया।

पिछले साल उन्होंने ‘गोलमाल रिटर्न्स’ में छोटा सा क़िरदार निभाया तो दूसरी तरफ़ उन्होंने स्टार प्लस के शो ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में भी दादी के किरदार के लिए स्टंट किया था। 65 साल की उम्र में भी उसी जोश के साथ काम करने वाली रेशमा को बस अफ़सोस है तो इतना कि जब वो पहले के दौर में स्टंट किया करती थीं तो पूरा क्रेडिट सिर्फ हीरोइन को ही दिया जाता था स्टंट करने वाले का ज़िक्र तक नहीं होता था।

वो कहती हैं, “इस बात से वो दुखी ज़रूर होती थी लेकिन इस सच्चाई को भी मानती थी कि जो दिखता है वही बिकता है। इसलिए चुपचाप काम करती रही।
आज स्टंट करने वाले महिलाओं और पुरुषों के लिए कई तकनीकी सुविधाएं हैं। आज पहले जान की सलामती और फिर काम देखा जाता है लेकिन हमारे दौर में ऐसा नहीं था।” “ना कोई मज़बूत केबल वाली रस्सी होती थी और ना ही कोई और बड़ी सुविधा, ना ही कोई साफ़ सुथरी जगह। ऊपर से छलांग लगाते वक़्त नीचे चार-पांच आदमी नेट लेकर खड़े रहते थे और उसी नेट में कूदना होता था और अगर किसी से थोड़ी चूक हुई तो हड्डी पसली एक हो जाती थी।” वो कहती हैं, “हमारे वक़्त ऐसा था पहले काम, बाद में सुरक्षा।

लेकिन उस दौर की अपनी ही बात थी। मैं आज भी स्टंट करने को तैयार हूँ। ये मेरा काम नहीं जुनून है। जो मेरे मरते दम तक मेरे साथ रहेगा।”

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