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तालिबान ने महिला मेयर सलीमा मजारी को बनाया बंधक, महिला एंकरों पर लगाया बैन

अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद तालिबान एक तरफ सरकार बनाने में जुटा है। दूसरी ओर वॉरलॉर्ड्स को ढूंढ-ढूंढकर पकड़ रहा है। पहले तालिबान ने वॉरलॉर्ड्स इस्माइल खान को पकड़ा था। अब इसके लड़ाकों ने अफगानिस्तान की पहली महिला गवर्नर सलीमा मजारी को पकड़ लिया है। मजारी बल्ख प्रांत की चारकिंत जिले की गवर्नर हैं। तालिबान से लड़ने के लिए उन्होंने अपनी आर्मी बनाई थी और खुद भी हथियार उठाए थे। सलीमा आखिरी वक्त तक तालिबान का सामना करती रहीं।

बता दें कि वॉरलॉर्ड्स उन्हें कहा जाता है, जिन्होंने अफगानिस्तान में अमेरिका की मदद से खुद को तैयार किया और तालिबान से खुली लड़ाई लड़ी।

जब अफगानिस्तान में तालिबान कत्लेआम मचा रहा था और बाकी के नेता देश छोड़कर भाग रहे थे या फिर सरेंडर कर रहे थे, तब अपने लोगों को बचाने के लिए महिला गवर्नर सलीमा मजारी अपनी सेना खड़ी कर रही थीं। वह लोगों को साथ आने की अपील कर रही थीं। सलीमा ने अपने लोगों को बचाने के लिए तालिबान से डंटकर मुकाबला किया। पकड़े जाने से पहले तक बंदूक उठाकर अपने लोगों की रक्षा की।

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उनकी फौज में शामिल लोग अपनी जमीन और मवेशी बेच कर हथियार खरीद रहे थे और उनकी सेना में शामिल हो रहे थे। सलीमा मजारी खुद पिकअप की फ्रंट सीट पर बैठती थीं और जगह-जगह जाकर लोगों से अपनी सेना में शामिल होने को कहती थीं।

बता दें कि सलीमा मजारी अफगानिस्तान में पहली महिला गवर्नरों में से एक रही हैं। उन्हें कुछ साल पहले ही बल्ख के चाहत किंत जिले का गवर्नर चुना गया था। पिछले महीने ही जब तालिबान ने एक के बाद एक सभी प्रांतों पर धावा बोलना शुरू किया, तो सलीमा ने भागने के बजाय मुकाबला करने का फैसला किया। हालांकि, उनके जिले के तालिबान द्वारा घेरे जाने के बाद आखिरकार बल्ख को भी सरेंडर करना पड़ा।

महिला न्यूज एंकरों को हटा, अपने लोगों को सौंपी चैनल की जिम्मेदारी: काबुल को अपने कब्जे में करने के बाद तालिबान ने अब धीरे-धीरे सरकारी दफ्तरों के साथ निजी संस्थानों को निशाना बनाना भी शुरू कर दिया है। न्यूज चैनलों में अब महिला एंकरों को बैन कर दिया गया है। इसकी जगह तालिबान ने अब अपने लोगों को प्रेजेंटर की जिम्मेदारी सौंपी है। नौकरी से निकाले जाने के बाद एक अफगान न्यूज एंकर खदीजा अमीना ने कहा, ‘मैं अब क्या करूंगी, अगली पीढ़ी के पास कोई काम नहीं होगा। 20 साल में जो कुछ भी हासिल किया है वह सब चला जाएगा। तालिबान तालिबान है, वे नहीं बदले हैं।

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बामियान में फिर दोहराई मूर्ति गिराने की घटना: इतना ही नहीं तालिबान के लड़ाकों ने पहले की तरह अल्पसंख्यकों के प्रतीकों और चिह्नों को भी हटाना जारी रखा है। जहां 20 साल पहले तालिबान के कट्टरपंथियों ने बामियान में बुद्ध की मूर्ति को विस्फोटकों से उड़ा दिया था, वहीं इस बार संगठन के लड़ाकों ने हजारा नेता अब्दुल अली मजारी की बामियान में लगी मूर्ति को गिरा दिया है। बता दें कि मजारी की 1995 में तालिबान से जंग के दौरान मौत हो गई थी।

बता दें कि हजारा मुख्य तौर पर शिया मुस्लिम होते हैं, जिन पर सुन्नी मुस्लिमों का हमला जारी रहा है। हालांकि, अब्दुल अली मजारी तालिबान के खिलाफ आवाज उठाने वाले प्रमुख नेताओं में शामिल थे और तालिबान ने उनकी बढ़ती लोकप्रियता के चलते ही उन्हें अगवा कर उनकी हत्या कर दी थी।

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