काशी हिंदू विश्व विद्यालय के महिला महाविद्यालय की एक महिला टीचर की मुहिम रंग लाई। अब किसी भी महिला टीचर को अपने नाम से पहले अपनी वैवाहिक स्थिति की पहचान बनाने के लिए सुश्री या श्रीमती जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं करना होगा। मतलब अनिवार्य नहीं होगा, अगर वो अपनी मर्जी से करना चाहें तभी ऐसा करें। दरअसल पिछले साल BHU के महिला महाविद्यालय की समाजशास्त्र की अध्यापिका डॉ. प्रतिमा सिंह ने कुलपति को पत्र लिखकर इस बदलाव की मांग की थी। कुलपति ने इस मांग को सराहा भी था। लेकिन कोरोना के चलते बंद पड़े संस्थानों में यह लागू नहीं हो सका।
हलांकि इसका असर सबसे पहले अब इसी BHU के महिला महाविद्यालय में दिखने लगा है, जहां महिला टीचर के नाम के पहले सुश्री या फिर श्रीमती लिखा हुआ नहीं देखा जा रहा है। इस बारे में महिला महाविद्यालय से मुहिम छेड़ने वाली टीचर डॉ. प्रतिमा गौड़ ने बताया कि अक्सर देखा जा रहा है कि उनके कॉलेज में चाहे नेम प्लेट हो या फिर सीनियरिटी लिस्ट, हर जगह सुश्री या श्रीमति का उपयोग लिखने में होता रहा है। जबकि उनका चयन मेरिट लिस्ट पर उनकी योग्यता से हुआ है। ऐसे में मैरिटल कंडीशन क्यों शो किया जाए? इसको लेकर कुलपति से पिछले वर्ष मुलाकात कर उन्हें अवगत कराया था। उन्होंने इस प्रयास की काफी सराहना भी की थी। कोरोना की वजह से थोड़ी देरी हुई। लेकिन अब हमारे नाम के आगे से मिस या मिसेज लगाना जरूरी नहीं है, यह अच्छी बात भी है।
डॉ. प्रतिमा गौड़ ने इसका श्रेय BHU प्रशासन और सीनियर प्रोफेसर रीता सिंह को भी दिया है। वहीं इस अनूठी पहल में डॉ. प्रतिमा गौड़ का साथ देने वाली समाजशास्त्र विभाग की प्रोफेसर रीता सिंह ने बताया कि यह परिवर्तन की दिशा में बहुत बड़ा कदम होगा। जब यह मुद्दा सामने रखा गया तो उनके विभाग के सारे लोगों ने उनका साथ दिया। वैवाहिक होना जब हमारी योग्यता मानी ही नहीं गई है तो शैक्षणिक क्षेत्र में इसकी कोई जरूरत ही नहीं थी। ऐसे में गैरजरूरी शब्दों को हटना चाहिए। इसके लिए BHU के कुलपति राकेश भटनागर, प्रो. वीके शुक्ला और नीरज त्रिपाठी को इस अनावश्यक चीज को हटाने के लिए मदद की है।
वहीं अपनी महिला टीचर की मुहिम के रंग लाने से इनकी छात्राओं में भी उत्साह है। शोध छात्रा शिवानी पाल ने बताया कि जब पुरुष टीचर के नाम के साथ श्रीमान नहीं लगता तो महिला टीचर के नाम के साथ भी ऐसा नहीं होना चाहिए। किसी भी व्यक्ति की पहचान उसकी योग्यता से होती है, न कि विशेष सूचक शब्द से। छात्राओं के लिए गर्व की बात है कि वह BHU-MMV से जुड़ी हैं।
वहीं एक अन्य शोध छात्रा अर्चना दुबे ने बताया कि यह बदलाव काफी महत्वपूर्ण है। जो पहले वैवाहिक स्थिति को दर्शा रहा था, वे अब सिर्फ महिला टीचर की योग्यता को दर्शाएगा। इसका फायदा आगे चलकर कई छात्राओं को भी होगा। हमें इस उपलब्धि पर काफी गर्व महसूस हो रहा है। वे चाहती हैं कि पूरे देश के शिक्षण संस्थानों में यह बदलाव लाया जाए।