लखनऊ। धरती की कोख सूख रही है। गंगा, यमुना एवं सरयू जैसी सदानीरा नदियों वाले उत्तर प्रदेश में ऐसा न हो इसके लिए राज्य की योगी सरकार ने खेत तालाब (Ponds) और अमृत सरोवर (Amrit Sarovar) जैसी योजनाएं प्रारम्भ की है। खासकर बुंदेलखंड एवं विंध्य क्षेत्र का वह इलाका जहां औसत से कम बारिश होती है और भूगर्भ जल भी अपेक्षाकृत नीचे है। इस क्षेत्र को केंद्र में रखकर बनायी गयी है खेत तालाब योजना।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार वित्तीय वर्ष 2022-23 में राज्य में 10 हजार खेत तालाब (Farm Ponds) निर्माण का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। लक्ष्य के सापेक्ष माह दिसम्बर तक 4895 खेत तालाबों का निर्माण कार्य पूर्ण हो चुका है। 1874 खेत तालाबों का पक्की संरचनाओं का कार्य प्रगति पर है। योजना के तहत अब तक लगभग 25000 से अधिक तालाब खुद चुके हैं। इनमें से अधिकांश (80 फीसद) बुंदेलखंड, विंध्य, क्रिटिकल एवं सेमी क्रिटिकल ब्लाकों में हैं। अगले पांच साल का लक्ष्य 37,500 खेत तालाब निर्माण की है। इनका निर्माण कराने वाले किसानों को सरकार 50 फीसद का अनुदान देती है। इस समयावधि में इन पर 457.25 करोड़ रुपये खर्च करने का लक्ष्य है।
राज्य सरकार के एक प्रवक्ता का कहना है कि प्रदेश में अमृत सरोवर, गंगा तालाब एवं बड़ी नदियों के किनारे बहुउद्देश्यीय तालाब योजना भी चल रही है। इन योजनाओं से एक साथ कई मकसद पूरे हो रहे हैं। भूगर्भ जल तो ऊपर उठ ही रहा है।
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प्रवक्ता ने बताया कि बात चाहे लुप्तप्राय हो रही नदियों के पुनरुद्धार की हो या अमृत सरोवरों के निर्माण की, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इन सबको जनता से जोड़कर जनांदोलन बनाने की बात करते रहे हैं। अमृत सरोवरों की रिकॉर्ड संख्या के निर्माण के पीछे यही वजह है। इसी के बूते पहले हर जिले में एक अमृत सरोवर के निर्माण का लक्ष्य था। बाद में इसे बढ़ाकर हर ग्राम पंचायत में दो अमृत सरोवरों का निर्णय लिया गया है। इस सबके बनने पर इनकी संख्या एक लाख 16 हजार के करीब हो जाएगी।
उन्होंने कहा कि भविष्य में ये सरोवर अपने अधिग्रहण क्षेत्र में होने वाली बारिश की हर बूंद को सहेजकर स्थानीय स्तर पर भूगर्भ जल स्तर को बढ़ाएंगे। बारिश के पानी का उचित संग्रह होने से बाढ़ और जलजमाव की समस्या का भी हल निकलेगा। यही नहीं सूखे के समय में यह पानी सिंचाई एवं मवेशियों के पीने के काम आएगा। भूगर्भ जल की तुलना में सरफेस वाटर से पंपिंग सेट से सिंचाई कम समय होती है। इससे किसानों का डीजल बचेगा। कम डीजल जलने से पर्यावरण संबंधी होने वाला लाभ बोनस होगा।