पद्मविभूषित प्रख्यात पर्यावरणविद, गांधीवादी और चिपको आंदोलन के नेता सुंदरलाल बहुगुणा की अस्थियां देवप्रयाग संगम स्थल पर गंगा में प्रवाहित की गईं। इससे पूर्व सिल्यारा आश्रम घनसाली से उनका अस्थि कलश देवप्रयाग पहुंचा। तीर्थनगरी के लोगों ने अलकनंदा-भागीरथी संगम पर बहुगुणा को अंतिम विदाई दी।
पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा का 22 मई को ऋषिकेश एम्स में देहांत हो गया था। अस्थि कलश को उनकी कर्मभूमि सिल्यारा आश्रम में रखा गया था। मंगलवार को अस्थिकलश गंगा तीर्थ देवप्रयाग पहुंचा। हिमालय बचाओ आंदोलन संयोजक समीर रतूड़ी, विनोद नौटियाल, सोनू धारी आदि अस्थि कलश को लेकर देवप्रयाग पहुंचे। तीर्थवासियों ने बहुगुणा को विदाई दी।
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समाजसेवी समीर रतूड़ी ने कहा कि 25 मई अमर शहीद श्रीदेव सुमन की जयंती भी है। बहुगुणा श्रीदेव सुमन के शिष्य रहे थे। साथ ही उनकी मां गंगा के प्रति गहरी आस्था थी। इस पावन दिवस को उनकी अस्थियां गंगा में प्रवाहित करने के लिए चुना गया। बहुगुणा की अंतिम इच्छा गंगोत्री और देवप्रयाग में अस्थियां प्रवाहित किये जाने की थी। उनका पूरा जीवन जल, जंगल, जमीन के लिये समर्पित रहा। बहुगुणा के सभी आंदोलन उत्तरकाशी से टिहरी तक गंगा तट से ही शुरू हुये थे। यह गंगा के प्रति उनकी गहरी आस्था व प्रेम का प्रमाण था। उनकी पत्नी विमला देवी ने भी उनकी अंतिम इच्छा पूरी करने की बात कही थी, जिसमें उनकी अंतिम क्रिया गंगा तट पर किये जाने की थी।
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उन्होंने बताया कि बहुगुणा ने 1979 में प्रण किया था कि वह अपनी कर्मस्थली सिल्यारा तभी आयेंगे जब टिहरी बांध का काम रुकेगा। मगर उनके जीते जी बांध का काम नही रुक पाया। तीन दशक बाद उनका अस्थि कलश ही सिल्यारा आ पाया। इस मौके पर ललित पांडे, मुकेश बड्थवाल, अचल नेगी, राज्य आंदोलनकारी हरेकृष्ण भट्ट, संजय भट्ट, डॉ. प्रभाकर जोशी व राजेश भट्ट आदि मौजूद रहे। पंडित संतोष भट्ट ने विधि-विधान के साथ संगम पर अस्थि विसर्जन किया।