इटावा। उत्तर प्रदेश के इटावा में चंबल क्षेत्र के खूंखार दस्यु सरगना जगजीवन परिहार (daku Jagjivan) ने पंद्रह साल पहले अपने गांव में ऐसी खूनी होली खेली थी, जिसे आज भी गांव वाले भूल नहीं पाये हैं। घटना को याद कर आज भी चम्बल क्षेत्र में सिहरन पैदा हो जाती है।
इटावा में थाना बिठौली क्षेत्र के अंतर्गत चौरला गांव में 16 मार्च 2006 को हुई घटना ने हर किसी को झकझोर दिया था। चूंकि मुलायम सिंह यादव उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और वे होली के दिन अपने गांव सैफई में होलिका समारोह में शामिल होने के लिए आये थे। पुलिस के बड़े अफसर भी मुख्यमंत्री की वजह से आये थे, जैसे उनको इस खूनी होली की खबर लगी वैसे ही अधिकारियों ने घटनास्थल की ओर पीड़ित की मदद के लिए दौड़ लगा दी।
16 मार्च 2006 को होली की रात जगजीवन गिरोह के डकैतों ने आंतक मचाते हुये चौरैला गांव में अपनी ही जाति के जनवेद सिंह को जिंदा होली में जला दिया और उसे जलाने के बाद ललुपुरा गांव में चढ़ाई कर दी थी। करन सिंह को बातचीत के नाम पर गांव में बने तालाब के पास बुलाया और मौत के घाट उतार दिया था। इतने में भी डाकुओं को सुकुन नहीं मिला तो पुरारामप्रसाद में सो रहे दलित महेश को गोली मार कर मौत की नींद सुला दिया था। इन सभी को मुखबिरी के शक में डाकुओं ने मौत के घाट उतार दिया था।
चौरैला गांव के रधुपत सिंह बताते हैं कि होली वाली रात जगजीवन परिहार गैंग के हथियार बंद डाकुओं ने गांव में धावा बोला तो किसी को भी इस बात की उम्मीद नहीं थी कि डाकुओं का दल गांव में खूनी वारदात करने के इरादे से आये हुए हैं क्योंकि अमूमन जगजीवन परिहार का गैंग गांव के आसपास आता रहता था लेकिन होली वाली रात जगजीवन परिहार गैंग ने सबसे पहले उनके घर पर गोलीबारी की। डाकुओं ने उनके घर पर बेहिसाब गोलियां चलाई।
बताया कि डाकुओं का इरादा उनकी हत्या करना था, लेकिन डाकू दल घर का दरवाजा नहीं तोड़ पाये, इससे वह बच गए। लेकिन उसके और दूसरे गांव के तीन लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया तथा दो अन्य लोगों को गोली मार कर मरणासन्न कर दिया गया था। आज भी उस खूनी होली को याद से मन सिहर उठता है।
उस समय इस सनसनीखेज घटना की गूंज पूरे देश में सुनाई दी थी। इससे पहले चंबल इलाके में होली पर कभी भी ऐसा खूनी खेल नहीं खेला गया था। इस कांड की वजह से सरकारी स्कूलों में पुलिस और पीएसी के जवानों को कैंप कराना पड़ा था। क्षेत्र के सरकारी स्कूल अब डाकुओं के आंतक से पूरी तरह से मुक्ति पा चुके हैं। इलाके में अब कई प्राथमिक स्कूल खुल चुके हैं। इसके साथ ही कई जूनियर हाईस्कूल भी खोले जा रहे हैं। जिनमें गांव के मासूम बच्चे पढ़ने के लिये आते हैं और पूरे समय रहकर करके शिक्षकों से सीख लेते हैं।
ललूपुरा गांव के बृजेश कुमार बताते हैं कि जगजीवन के मारे जाने के बाद पूरी तरह से सुकुन महसूस हो रहा है। उस समय गांव में कोई रिश्तेदार नहीं आता था। लोग अपने घरों के बजाय दूसरे घरों में रात बैठ करके काटा करते थे। उस समय डाकुओं का इतना आंतक था कि लोगों की नींद उड़ी हुई थी। पहले किसान खेत पर जाकर रखवाली करने में भी डरते थे। आज वो अपनी फसलों की भी रखवाली आसानी से करते हैं।
कभी स्कूल में चपरासी रहा जगजीवन एक वक्त चंबल में आंतक का खासा नाम बन गया था। चंबल घाटी के कुख्यात दस्यु सरगना के रूप मे आंतक मचाये रहे जगजीवन परिहार ने अपने ही गांव चैरैला गांव के अपने पड़ोसी उमाशंकर दुबे की छह मई 2002 को करीब 11 लोगों के साथ मिलकर धारदार हथियार से हत्या कर दी थी। डाकू उसका सिर और दोनों हाथ काटकर अपने साथ ले गये थे।
उमाशंकर दुबे की हत्या के बाद डाकू जगजीवन को लेकर एक चर्चा भी बीहड़ों में प्रचारित हुई थी कि उसके ब्राह्मण जाति के 101 लोगों के सिर कलम करने का ऐलान किया है, लेकिन इस बात की पुष्टि उसके मारे जाने तक भी नहीं हो सकी। जगजीवन अपना प्रण पूरा कर पाता उससे पहले ही 14 मार्च 2007 को मध्यप्रदेश में पुलिस ने मुठभेड़ में जगजीवन समेत गिरोह के आठ डकैतों का खात्मा कर दिया था।
इटावा पुलिस ने इसी कांड के बाद जगजीवन को जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिये पांच लाख का इनाम घोषित किया था। जगजीवन परिहार चंबल घाटी का नामी डकैत बन गया था। एक समय जगजीवन परिहार के गिरोह पर उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान पुलिस ने करीब आठ लाख का इनाम घोषित किया था।
मध्यप्रदेश,उत्तर प्रदेश और राजस्थान में आतंक का पर्याय बन चुके करीब 8 लाख रुपये के इनामी डकैत जगजीवन परिहार गिरोह का मुठभेड़ में खात्मा हुआ। साथ ही पनाह देने वाला ग्रामीण हीरा सिंह परिहार भी मारा गया। जगजीवन परिहार और उसके गैंग के डाकुओं के मारे जाने के बाद चंबल में अब पूरी तरह से शांत का माहौल बना हुआ है।