सियाराम पांडेय ‘शांत’
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राज्य में देश की सबसे खूबसूरत फिल्म सिटी का निर्माण करने की बात कही है। उनकी इस घोषणा की कुछ फिल्म अभिनेताओं और अभिनेत्रियों ने सराहना भी की है और यह उचित भी है। सद्प्रयासों की सराहना तो होनी ही चाहिए। फिल्म निर्माता मधुर भंडारकर भी मुख्यमंत्री से मिल चुके हैं। वैसे भी जब कभी भी फिल्मनगरी की चर्चा होती है तो मुंबई का नाम प्रमुखता से उभरता है। वहां पहले से स्थापित हो चुके नामचीन नए चेहरों को मौका नहीं देते और कदाचित देते भी हैं तो सकी अपनी वजहें होती हैं। उसकी तह में जाए और विषयांतर हुए बगैर यह कहना ज्यादा मुनासिब होगा कि फिल्म सिटी तो हर राज्य में बननी चाहिए थी ताकि हर राज्य की प्रतिभाएं अपनी कला का जादू दिखा सकें। अगर ऐसा होता तो सभी राज्यों का भला होता लेकिन जब जागे तभी सबेरा।
उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य को बहुत पहले ही अपने यहां फिल्म सिटी बनाने का काम करना चाहिए था। इतने बड़े राज्य की कला संस्कृति को मुंबई के भरोसे तो नहीं छोड़ा जा सकता। उत्तर प्रदेश में फिल्म सिटी के निर्माण की योजना नई बिल्कुल भी नहीं है। यहां की फिल्म नीति तो 2001 में ही बन गई थी। 19 साल बाद भी अगर वह मुकम्मल अमली-जामा नहीं पहन सकी तो इसके लिए जिम्मेदार कौन है? इसलिए यथाशीघ्र फिल्म सिटी निर्माण योजना पर अमल आरंभ किया जाना चाहिए। अब इसमें न तो विलंब होना चाहिए और न ही इसके निर्माण में ‘ अब न चूक चौहान’ के ध्येय वाक्य से पीछे हटना चाहिए।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि देश को एक अच्छी फिल्म सिटी की जरूरत है। उत्तर प्रदेश इस जिम्मेदारी को लेने के लिए तैयार है। हम एक उम्दा फिल्म सिटी तैयार करेंगे। फिल्म सिटी के लिए नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेस वे का क्षेत्र बेहतर होगा। यह फिल्म सिटी फिल्म निर्माताओं को एक बेहतर विकल्प उपलब्ध कराएगी। साथ ही, रोजगार सृजन की दृष्टि से भी यह अत्यंत उपयोगी प्रयास होगा। देखा जाए तो फिल्म सिटी बनने के फायदे ही फायदे हैं फिर भी यह योजना वर्षों तक क्यों लटकी रही,यह सवाल पूछना तो बनता ही है। योगी आदित्यनाथ ने बतौर मुख्यमंत्री इस दिशा में भूमि के विकल्पों के साथ यथाशीघ्र कार्ययोजना तैयार करने के भी निर्देश दिए हैं।
गौरतलब है कि भारत की फिल्म इंडस्ट्री फिलहाल विवादों की जद में है। अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत से वॉलिवुड में नेपोटिज्म की जंग चल रही है है। बॉलीवुड में ड्रग्स को लेकर थाली में छेद की संभावनाएं जताई जा रही हैं। पंजाब में उड़ता पंजाब पर फिल्म बन सकती है, लेकिन उ़ती मुंबई फिल्म सिटी के आरोप बड़े-बड़ों को भी अपच पैदा कर रहे हैं। सचाई तो यह है कि बड़े फिल्म निर्माताओं के कार्यव्यवहार और चाल-चलन पर भी अंगुलियां उठ रही हैं। ऐसे में मेरठ मंडल के विकास कार्यों की समीक्षा के क्रम में अगर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश में फिल्म सिटी और वह भी सबसे भव्य फिल्म सिटी बनाने की बात कही है तो इसके अपने राजनीतिक निहितार्थ हैं।
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मुख्यमंत्री के इस बयान के बाद ही फिल्म सिटी कहां बनेगी, इसे लेकर कयासों का बाजार गर्म हो गया है। ज्यादातर संभावना इस बात की है कि फिल्म सिटी नोएडा या ग्रेटर नोएडा में बन सकती है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जब अपने श्रीमुख से फिल्म सिटी के लिए नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेस-वे के क्षेत्र को बेहतर बता चुके हैं तो उसमें मीन—मेख तलाशने की गुंजाइश ही कहां बचती है? विकथ्य है कि अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद उत्तर भारत में फिल्म इंडस्ट्री बनाने की मांग तेज हो गई है। सोशल मीडिया पर इसे लेकर कई प्रतिक्रियाएं आती रही हैं। फिल्म जगत से जुड़े उत्तर भारत के लोग इस बावत जहां अपनी मांग बुलंद कर रहे हैं, वहीं हाल में ही संसद में भोजपुरी अभिनेता व गोरखपुर के सांसद रवि किशन व समाजवादी पार्टी की नेत्री जया बच्चन के बीच बयानबाजी के चलते भी यह मामला बेहद सरगर्म हो गया है।
कंगना रनौत ने भी योगी आदित्यनाथ की इस घोषणा की प्रशंसा करते हुए कहा है कि लोगों की धारणा है कि भारत में सर्वश्रेष्ठ फिल्म उद्योग हिंदी फिल्म इंडस्ट्री हैं यह गलत है। तेलुगु फिल्म उद्योग ने खुद को शीर्ष स्थान पर पहुंचा दिया है। अब वह पूरे भारत में कई भाषाओं में फिल्मों को पहुंचा रहे हैं। कई हिंदी फिल्मों की शूटिंग हैदराबाद के रामोजी में की गई है। हमें फिल्म उद्योग में कई सुधारों की आवश्यकता है। भोजपुरी अभिनेता और गोरखपुर के सांसद रविकिशन ने कहा है कि यूपी में फिल्म सिटी बनने की घोष्णा से भोजपुरी फिल्मों को लेकर चल रहा उनका संघर्ष सफल हो गया है।
उत्तर प्रदेश फिल्म विकास परिषद के अध्यक्ष राजू श्रीवास्तव ने कहा था कि उत्तर प्रदेश में अब भोजपुरी ही नहीं, अवधी में भी फिल्में बनेंगी। क्षेत्रीय भाषाओं में फिल्म बनाने के लिए मुंबई न जाना पड़े, इसलिए नोएडा, वाराणसी और लखनऊ में फिल्म सिटी बनेगी। वाराणसी में फिल्म सिटी बनाने का प्रस्ताव सरकार ने स्वीकार कर लिया है। उनका मानना है कि यूपी में दो फिल्म सिटी बनने से यहां के तकरीबन एक लाख लोगों को रोजगार मिलेगा। सवाल यह है कि जब वाराणसी में फिल्म सिटी बनाने के प्रस्ताव को योगी सरकार पहले ही स्वीकार कर चुकी है।
तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ग्रेटर नोएडा और नोएडा का ही नाम क्यों लिया? क्या वाराणसी और लखनऊ उनकी वरीयता सूची में अब नहीं हैं? इसी साल 2 जून को अपर मुख्य सचिव सूचना अवनीश कुमार अवस्थी ने यूपी फिल्म पालिसी-2018 के संबंध में कहा था कि यूपी में में फिल्म निर्माण के क्षेत्र में अपार सम्भावनाएं हैं। बड़ी संख्या में फिल्म निर्माता व निर्देशक उत्तर प्रदेश आ रहे हैं। राज्य में फिल्म निर्माण को बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी दी जा रही है। मुख्यमंत्री के निर्देशों के क्रम में प्रोसेसिंग यूनिट तथा फिल्म सिटी की स्थापना के संबंध में कार्रवाई की जाएगी।
गौरतलब है कि गौतम बुद्ध नगर में फिल्म निर्माताओं को लुभाने के लिए सेक्टर-16 में फिल्म सिटी पहले ही बसाई जा चुकी है। फिल्म सिटी में एक तरफ जहां मीडिया चैनलों की भरमार है। वहीं, टी-सीरीज, मारवाह समेत कई स्टूडियो मौजूद हैं। ऐसे में यहां नए सिरे से फिल्म सिटी बनाने की जरूरत क्यों पड़ गई, यह सवाल हर आम और खास को सोचने पर विवश तो करता ही है। प्रदेश की नब्ज से सरोकार रखने वालों को पता है कि अखिलेश राज में एक करोड़ की सब्सिडी फिल्म निर्माताओं को भी दी गई। माधुरी की नई फिल्म ‘डेढ़ इश्किया’ की शूटिंग और सैफ अली खान की फिल्म ‘बुलेट राजा’ की शूटिंग भी उत्तर प्रदेश में हुई थी। इसीलिए तत्कालीन अखिलेश सरकार ने इन दोनों फिल्मों के निर्माताओं को एक करोड़ रुपये की सब्सिडी दी थी।
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यह बताना शायद गलत नहीं होगा कि मई 2015 में यूपी में फिल्म उद्योग को बढ़ावा देने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने ‘फिल्म बंधु’ नाम की वेबसाइट और ‘फिल्म नीति -2015’ किताब का विमोचन किया था। इसके लॉन्चिंग प्रोग्राम में बोनी कपूर, मुजफ्फर अली, दिव्या दत्ता और रवि किशन जैसी फिल्मी हस्तियां मौजूद थीं। अखिलेश यादव ने मुजफ्फर अली को फिल्म जानिसार के लिए 2.25 करोड़, बोनी कपूर को तेवर के लिए दो करोड़ और पवन तिवारी को दोजख के लिए 59 लाख 53 हजार रुपये का अनुदान भी दिया था। साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि हम हम नवाबों की तरह राजमहल नहीं बना सकते, लेकिन उन्होंने जो हमें दिया है, उसे सुरक्षित
तो रख ही सकते हैं। हम ऐसी फिल्म सिटी बनाना चाहते हैं, जहां दुनिया भर के फिल्मकार आकर शूटिंग करें। अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री की हैसियत से दो फिल्म शहरों के निर्माण की घोषणा भी की थी।उन्होंने कहा था कि पहली फिल्म सिटी उत्तरप्रदेश सरकार की बहुप्रतीक्षित परियोजना लखनऊ-आगरा ग्रीनफील्ड एक्सप्रेस वे के अंर्तगत होगी वहीं दूसरी उन्नाव के हाईटेक सिटी प्रोजेक्ट में बनाई जाएगी। इस प्रोजेक्ट से 600 करोड़ से भी ज्यादा के निवेश की संभावना भी उन्होंने जताई थी। उन्होंने इस बात की भी घोषणा की थी कि हिन्दी फीचर फिल्मों को 25 प्रतिशत और यूपी में शूट होने वाली सभी फिल्मों को 50 प्रतिशत तक की छूट दी जाएगी। इस अवसर पर फिल्म सिटी की स्थापना से संबंधित सहमति पत्र पर हस्ताक्षर भी हुए थे।
उन्होंने कहा था कि यूपी में उनकी कोशिश यह होगी कि अगर फिल्म सिटी बन रही है तो अधिक से अधिक लोग यहां आकर फिल्मों की शूटिंग करें। इससे पहले 28 अगस्त 2014 को अखिलेश सरकार ने अपनी फिल्म नीति में बदलाव करने की योजना बनाई थी। इसके तहत यूपी में फिल्म शूट करने पर दो करोड़ की आर्थिक मदद और फिल्म में राज्य के कलाकार होने पर 25 लाख रुपये की अतिरिक्त मदद देने की भी घोषणा की थी।
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने के बाद यह उम्मीद जगी थी कि उत्तर प्रदेश देश में फिल्मों की शूटिंग का नया ठिकाना बन सकता है। राज्य सरकार ने अंग्रेजी सहित किसी भारतीय भाषा में फिल्म की शूटिंग राज्य में करने पर 50 लाख रुपये की प्रोत्साहन राशि देने की घोषणा की थी। इसके जरिए सरकार की योजना आगरा में ताज महल, वाराणसी के गंगा के घाटों सहित अपने पर्यटन स्थलों को बढ़ावा देने की थी। योगी आदित्यनाथ की सरकार ने इसके लिए फिल्म की शूटिंग से जुड़े नियम-कायदों में बदलाव भी किया था। यही नहीं, नकद प्रोत्साहन राशि का दायरा भी बढ़ा दिया था। पहले यह राशि सिर्फ हिंदी या यूपी की क्षेत्रीय भाषाओं अवधी और भोजपुरी में बनने वाली फिल्मों के लिए ही उपलब्ध थी लेकिन योगी सरकार ने नियमों में बदलाव कर प्रोत्साहन राशि अंग्रेजी व अन्य भारतीय भाषाओं में बनने वाली फिल्मों के लिए भी दिए जाने की घोषणा कर दी थी।
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उत्तर प्रदेश में ‘फिल्म बंधु’ के चेयरमैन अवनीश के अवस्थी ने कहा था कि भारतीय संविधान में दर्ज सभी भाषाएं अब हमारी फिल्म नीति का हिस्सा हैं। यदि यूपी में कोई तमिल या अंग्रेजी फिल्म बनती है, तो उसे लाभ क्यों नहीं मिलना चाहिए। दूसरी भाषा की फिल्म भी यूपी की संस्कृति को दर्शाती है और इससे आपसी संबंध मधुर होते हैं। अवस्थी ने योगी सरकार की इस प्रयास को ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ अभियान का हिस्सा बताया था। यूपी सरकार ने दावा किया था कि लखनऊ, आगरा और वाराणसी में फिल्म शूटिंग के लिए अलग सुविधाएं विसित की जाएंगी । फिल्म की शूटिंग और प्रचार के लिए हर जिले में सुविधाएं बढ़ाई जाएंगी।
सवाल यह है कि जब उत्तर प्रदेश में सारे इंतजाम पहले से ही थे, इसके बाद भी यहां फिल्म उद्योग पनप क्यों नहीं सका? क्या इसके पीछे नौकरशाहों की लापरवाही है या सरकार पैसा ख्र्च करने के बाद भी फिल्म इंडस्ट्री को अपनी ओर आकृष्ट कर पाने में विफल रही। उत्तर प्रदेश में अनेक फिल्मों की शूटिंग हुई है,लॉली एलएलबी, मसान, बरेली की बर्फी आदि अनेक फिल्में इसके श्रेष्ठ उदाहरण हैं। सवाल यह है कि हम फिल्म सिटी के निर्माण को लेकर क्या वाकई गंभीर हैं और यदि जवाब सकारात्मक है तो 19 साल से कर क्या रहे हैं। अगर सक्रियता के 6साल ही मानें तो भी हमारी गति कच्छप जैसी ही है।
सरकार को यह सुस्पष्ट जरूर करना चाहिए कि लखनऊ,वाराणसी, उन्नाव जैसे शहरों को फिल्म सिटी बनाने को लेकर उसका इरादा क्या है और अगर वह नोएडा को ही तरजीह दे रही है तो क्या वह मुंबई को फिल्म सिटी बनाने की देश की भूल जैसी ही बड़ी भूल तो नहीं कर रही है। सच तो यह है कि यूपी में देश की सबसे खूबसूरत फिल्म सिटी बनाने के दावे को अब केवल अमल की दरकार है। उम्मीद की जानी चाहिए कि योगी सरकार इस मुद्दे पर विचार भी करेगी और प्रदेशवासियों के सपनों की फिल्म सिटी बनाकर मुंबई वाली राजनीति का अहंकार भी तोड़ेगी।